आप दिल्ली, मुबंई या देश के किसी भी कोने में हो कल से “कश्मीरियों हाय हाय, खून का बदला खून से लेगे” जैसे नारे लगाते लोगों के झुंड से आपका सामना ज़रूर हुआ होगा। कश्मीरियों को हमने बड़ी आसानी से देशद्रोही बना दिया है, देशभर से कश्मीरी स्टूडेंट्स, व्यापारियों पर हमले की खबरें आनी शुरू हो चुकी हैं। अगर आप कश्मीरियों के पक्ष में कुछ बोल या लिख रहे हैं तो आप भी देशद्रोही और आतंकवादी करार दिए जाएंगे।
अभी तक तो कश्मीरी अपने कश्मीर में असुरक्षित और सहमे हुए थे मगर अब पूरे देश में उनके लिए डर का माहौल बना दिया गया है। वजह, सीआरपीएफ के जवानों की मौत का बदला लोग सारे कश्मीरियों को मार-काट कर लेना चाहते हैं। माफी चाहूंगी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए मगर मौजूदा हालात ऐसे ही हैं।
जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के जेनरल सेक्रेटरी ऐजाज़ अहमद (जो एक कश्मीरी हैं) का कहना है, “पूरे कश्मीरी स्टूडेंट्स में डर का माहौल है, कोई कमरे से भी बाहर नहीं आ रहा है। उनके परिवार वाले बुरी तरह से डरे हुए हैं। जेएनयू में स्थिति थोड़ी ठीक है, यहां पर किसी को कुछ बोला नहीं गया है लेकिन फिर भी यहां भी लोग डरे हुए हैं। जो लोग किराये पर घर लेकर रह रहे हैं उनकी स्थिति तो और भी बुरी है। उनसे कमरे खाली करवाए जा रहे हैं। सोसाइटी में लोग कश्मीरियों से घर खाली करवाने के लिए मीटिंग कर रहे हैं।”
खुलेआम यह कहा जा रहा है कि सीआरपीएफ के जवानों की मौत के ज़िम्मेदार पूरे कश्मीरी हैं, वे आतंकवाद के समर्थक हैं। इस सिलसिले में बात करते हुए कश्मीर के एक सीनियर जर्नलिस्ट ने नाम ना बताने की शर्त पर बताया कि श्रीनगर के लाल चौक पर बिना शक नारेबाज़ी हुई है और मैं वहां मौजूद भी था। वहां लश्कर के समर्थन में नारेबाज़ी हुई है, ज़ाकिर मूसा के समर्थन में नारेबाज़ी हुई है, गो इंडिया, गो बैक के नारे लगाए गए लेकिन इन सबके साथ सच्चाई यह भी है कि उन प्रदर्शनकारियों की संख्या बहुत कम थी। वे लोग 20-25 की संख्या में थे। अब इस 20-25 लोगों के आधार पर पूरे कश्मीरियों को गलत नहीं ठहराया जा सकता है। (पत्रकार ने उस प्रदर्शन की वीडियो भी बनाई है लेकिन कश्मीर में इंटरनेट की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से हमें अभी वह वीडियो नहीं मिल सका है।)
वह पत्रकार बताते हैं कि देशभर में कश्मीरियों को जिस तरह परेशान किया जा रहा है, उसके विरोध में रविवार को ट्रेड यूनियन की तरफ से कश्मीर बंद किया गया था लेकिन इस बंद के दौरान जो प्रदर्शन हुए वे काफी शांतिपूर्ण थे। यह प्रदर्शन पूरी तरह से कश्मीरियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ था।
जम्मू में कश्मीरियों के खिलाफ माहौल
दो दिनों से जम्मू में कश्मीरियों के खिलाफ माहौल बना हुआ है। मुसलमानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। इन सबको देखकर जम्मू में फिलहाल कर्फ्यू लगा हुआ है। जम्मू में उन इलाकों में विरोध प्रदर्शन ज़्यादा देखने को मिल रहे हैं, जहां कश्मीरी लोगों की संख्या ज़्यादा है।
कश्मीरी इकोनॉमिक अलायंस के चेयरमैन मोहम्मद यासिन खान ने YKA से बात करते हुए कहा,
यहां 100 के करीब गाड़ियां जलाई गईं, लोगों को तंग किया जा रहा है, उन्हें घर से बाहर नहीं आने दिया जा रहा है। हमारी मांग है कि अगर इन सभी चीज़ों को नहीं रोका गया तो कश्मीर में जम्मू से बिजनेस को बैन कर दिया जाएगा, हम जम्मू के अलावा हिंदुस्तान की बाकि रियासतों से ही सिर्फ बिजनेस करेंगे।
मोहम्मद यासिन का कहना है कि यह एक सियासी मसला है। यह दो मुल्कों के बीच की लड़ाई है और इसमें जम्मू-कश्मीर के लोग पीसे जा रहे हैं। कश्मीरियों को लेकर एक परसेपशन बना हुआ है हिंदुस्तान में कि ये आंतकवादी हैं मगर ऐसा कुछ नहीं है। हम किसी की भी जान चली जाए उसके खिलाफ हैं, यह कश्मीर का बच्चा-बच्चा जानता है। गांधी जी ने कहा था कि मुझे रौशनी की किरण कश्मीर से दिखाई दे रही थी, यह भी तो सच्चाई है, इस चीज़ को भी तो आप माने। कश्मीर के लोग भी दंगा फसाद पसंद नहीं करते हैं।
अब सोचने वाली बात यह है कि वर्तमान में माहौल ऐसा क्यों बना है, यह सारी चीज़ें क्यों हो रही हैं, इसे कैसे ठीक किया जाए उसपर बात होनी चाहिए। कश्मीर में राष्ट्रपति शासन चल रहा है, जब तक कोई सरकार नहीं बनेगी कैसे बाते होगी?
यासिन ने आगे यह भी बताया,
हमारा यही कहना है कि जो भी कुछ हुआ है उसको लेकर सरकार फैसला ले, सिविलियंस को कोई अधिकार नहीं कि वे मारधार करें। अगर हुकूमत इस मसले पर कुछ कर रही है तो उनको किसी निष्कर्ष पर आने दीजिए। आप आम लोगों को क्यों सज़ा दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि आप किसी को भी मार सकते हैं, हमारे बच्चे वहां पढ़ रहे हैं। हमारा बिज़नेस जम्मू-कश्मीर से बाहर भी है, उसका क्या होगा?
कश्मीर के सीनियर पत्रकार खुर्शिद वानी बताते हैं कि जम्मू में बुरी स्थिति बनी हुई है, कश्मीरियों के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है, किसी को बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है, तो अभी उसका रिएक्शन कश्मीर में होना नैचुरल है। कश्मीर में इंटरनेट स्पीड भी डाउन कर दी गई है कि कश्मीरी देख भी नहीं पाएं कि बाहर क्या हो रहा है। कश्मीरियों को अनअवेयर किया जा रहा है। इसे एक सेट मैनर में जानबूझकर किया जा रहा है।
अगर इस तरह से स्थिति चलती रही तो कश्मीर में हालात और भी बुरे हो सकते हैं। हालांकि आज कल लोग डरे, सहमे हुए हैं। जिन लोगों ने खुद वायलेंस देखा है, उनको यह दर्द महसूस होता है, जब सीआरपीएफ और आर्मी के लोग मरते हैं तो कश्मीरियों को भी दर्द होता है।
सीआरपीएफ के जवानों की मौत से हर कश्मीरी भी दुखी है
ऐजाज़ का कहना है कि कश्मीरियों ने भी सीआरपीएफ जवानों की मौत की निंदा की है, कश्मीरी किसी भी दहशत की घटना के सपोर्ट में नहीं हैं। किसी की भी जान जाए कश्मीरियों को भी दुख होता है कि एक इंसान मर गया है लेकिन यह क्या तरीका कि आप इसके लिए कश्मीरियों से बदला लें? उनपर हमला किया जाए? ज़बरदस्ती यह कहा जाए कि कश्मीरी हिंदुस्तान का हिस्सा नहीं हैं।
मीडिया में वॉर मूवमेंट हो रहा है, उन्हें रिवेंज चाहिए लेकिन रिवेंज किससे चाहिए? अच्छे से पहल करके इस बात का हल निकाला जाना चाहिए लेकिन यहां लोगों को बस रिवेंज चाहिए, कश्मीरियों से रिवेंज।
ऐजाज़ बताते हैं कि कश्मीरी युवा अपने भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हैं, उन्हें भविष्य खतरे में दिख रहा है कि वे कहां जाएंगे। कहां पर नौकरियां मिलेंगी? ना ही कश्मीर में स्थिति ठीक है और ना ही अब कश्मीर के बाहर ही कश्मीरियों के लिए सकारात्मक माहौल है।
ऐजाज़ बताते हैं कि कश्मीर में शिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है। तकनीकी शैक्षणिक संस्थान नहीं हैं, इस वजह से कश्मीरी युवाओं को पढ़ाई के लिए बाहर आना पड़ता है, जैसे कि देश के अन्य क्षेत्रों से लोग बाहर निकलते हैं लेकिन देश में कश्मीरियों के खिलाफ अगर ऐसा माहौल बनाया जाएगा तो उनके भविष्य का क्या होगा?
किन परिस्थितियों से गुज़रता है हर एक कश्मीरी
ऐजाज़ का कहना है कि जो स्टीरियोटाइप लोगों ने कश्मीरियों को लेकर दिमाग में बना रखी है कि कश्मीरी देशद्रोही होते हैं उन्हें उसे तोड़ना होगा। कश्मीर में भी आप जैसे लोग ही रहते हैं, कोई आत्मा नहीं रहती है, हमारे भी इमोशन हैं। जिनके बच्चे हैं, वे खुद उस तनाव में 40 साल से फंसे हुए हैं। कश्मीरी कश्मीर में भी वैसे ही रहना चाहते हैं जैसे दिल्ली में लोग रहते हैं। आप किसी चीज़ को वायलेंस से कंट्रोल करेंगे वह सही नहीं है।
कश्मीरनामा किताब के लेखक अशोक कुमार पांडये ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा है, “उनके माँ-बाप उन्हें आतंकवाद की आग से बचाकर नागरिक बनाने के लिए भेजते हैं कश्मीर से बाहर पढ़ने। तुम उन्हें मार पीटकर वापस कश्मीर भेज रहे हो भारत के प्रति ऐसा गुस्सा पैदा करके कि कल वे हथियार ना भी उठाएं तो मन में एक कड़वा एहसास उम्र भर रहेगा। तुम चाहते हो यह हो ताकि तुम लगातार उनके खिलाफ नफरत फैला सको। एक दिन आएगा जब तुम्हारी इन्हीं हरकतों की वजह से वहां जाने में टूरिस्ट भी डरेगा। तुम यही चाहते हो। कश्मीर को भारत से पूरी तरह काट देना।
तुम देश से प्यार नहीं करते। तुम यहां नफरत की खेती करना चाहते हो। तुम्हें शहीदों की मौत का कोई अफसोस नहीं। तुम बस उनकी लाशों पर नृत्य करते चील-कौवों से हो। तुम्हें ना आज की चिंता है ना कल की। तुम जैसों ने ही कश्मीर से लेकर उत्तर पूर्व तक के लोगों को गैर बना दिया।” (इस पोस्ट को फेसबुक ने हटा दिया है)
वहीं, कश्मीर से हालिया यात्रा करके आईं एक युवा पत्रकार कश्मीर की स्थिति पर बात करते हुए बोलती हैं, “कश्मीर के बच्चे ऐसे माहौल में बड़े हुए हैं, जहां उन्होंने सिर्फ खून खराबा देखा है। वे एक वॉर ज़ोन में रह रहे हैं, कश्मीर के बच्चों को चिल्ड्रेन ऑफ वॉर कहना गलत नहीं होगा।
हीबा का केस ही ले लीजिए, वह सिर्फ 18 महीने की है लेकिन जब वह बड़ी हो जाएगी तो उसके दिमाग में क्या चलेगा, मेरी गलती क्या थी, उसका भाई शहादत पूछेगा कि मेरी बहन की गलती क्या थी?
कश्मीर से माता-पिता अपने बच्चों को बाहर शिक्षा और रोज़गार से ज़्यादा इस बात की वजह से भेज रहे हैं कि उनके बच्चे उस माहौल से दूर रहें, आतंकवाद से दूर रहें। उनकी पहली वजह यह नहीं रहती है कि उनका बच्चा पढ़ लिखकर नौकरी कर ले, उनकी वजह यह रहती है कि अगर मेरा बच्चा यहां रहेगा तो उसके साथ कुछ हो सकता है, वह गलत रास्ता पकड़े, मिलिटेंट बने इससे बेहतर है वह बाहर जाए।”
इसलिए ज़रूरी है कि कश्मीरियों को लेकर अपना परसेप्शन बनाने से पहले हम वहां की परिस्थितियों को समझे, उनके लिए देश में कैसा माहौल है उसे जाने, बस घर बैठे हम उनके विरोधी ना हो जाएं।