दिल्ली में रोज़गार के लिए आए गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर 2 वक्त की रोटी के लिए अपने सुनहरे भविष्य का गला घोंट देते हैं। वे रोज़गार की तलाश में बाल श्रमिक बन जाते हैं या फिर नशे करने लगते हैं जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य को दरकिनार कर भूख मिटाना उनकी प्राथमिकता बन जाती है।
इन सबके बीच हमारे समाज में कई ऐसी संस्थाएं हैं जो लोगों की बेहतरी के लिए काम करते हैं। उन्हीं संस्थाओं में से एक है ‘सुनय फाउंडेशन’ जिनके द्वारा पिछले काफी वक्त से इस दिशा में सराहनीय काम किया जा रहा है।
संस्था की संयोजिका ऋचा प्रसांत वसंत कुंज के बी-2 इलाके में पिछले 10 सालों से फुटपाथ पर गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षित कर रही हैं। वसंत कुंज में 3 अलग-अलग जगहों पर इस फाउंडेशन द्वारा गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम किया जा रहा है। यहां 2 साल से 16 साल तक के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जाता है। सुनय फाउंडेशन रोज़ाना सुबह 8:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक चलता है।
ऋचा प्रसांत ने बताया कि इसकी शुरुआत उन्होंने मात्र 10 बच्चों से की थी और आज करीब 300 बच्चे इस मिशन से जुड़ चुके हैं। वह कहती हैं कि यह सब अकेले संभव नहीं था। यह एक कम्युनिटी मिशन है जिसमें अनेक लोग निःस्वार्थ भाव से अपना योगदान दे रहे हैं। पी.टी.सी नामक फाउंडेशन द्वारा बच्चों के लिए ड्रेस मुहैया कराया जाता है।
वह कहती हैं, “कभी कोई बच्चों को कंबल देते हैं तो कोई खाने पीने की चीज़ें देते हैं। ये वे बच्चे हैं जिनके माँ-बाप दूसरे राज्यों से रोज़गार की तलाश में दिल्ली आए हैं और यहां झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे हैं।”
ऋचा के मुताबिक वे इतने सशक्त नही हैं कि अपने बच्चों को खुद से शिक्षित कर पाएं। इन बच्चों को सरकार द्वारा दिए जाने वाले ईडब्ल्यूएस कोटे का भी लाभ नहीं मिल पाता है। सुनय फाउंडेशन इस बात को सुनिश्चित करता है कि इन बच्चों को शिक्षा मुहैया कराई जाए।
इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है कि संस्था जो सुविधाएं मुहैया करा रही है उसका लाभ बच्चों को सीधे मिले। सड़क किनारे फुटपाथ पर छोटे बच्चों को पढ़ाना अपने आप में विलक्षण कार्य है। इसमें ज़िम्मेदारी भी अधिक है।
गरीब बच्चों को पढ़ाने का विचार तो शायद हम में से बहुत लोगों के ज़हन में आता है लेकिन उस विचार को ज़मीन पर ऋचा प्रसांत जैसे लोग ही ला रहे हैं। ऋचा ना सिर्फ गरीब बच्चों को पढ़ा रही हैं बल्कि समाज के सामने नारी सशक्तिकरण का उदाहरण भी बन रही हैं।