देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में ऐसे कई पहलू हैं जो इन दोनों सरकारों में समानताएं दर्शाती हैं। जिस तरह ट्रंप ने सत्ता में आने के लिए कई बड़े-बड़े वादे किए थे, ठीक उसी तरह नरेंद्र मोदी ने भी सत्ता में आने से पूर्व ढेर सारे जुमले फेंके थे।
ट्रंप और मोदी सरकार को शुरुआती दिनों में जिस तरह जनता का अपार समर्थन प्राप्त था, उसमें दिन-प्रतिदिन काफी कमी देखने को मिली है। दोनों सरकारों से जनता की जो अपेक्षाएं थी उन्हें पूरी करने में ये राजनेता काफी हद तक सफल नहीं हुए हैं।
अपने ही मंत्री करते हैं वगावत
यही कारण है कि इन दोनों की सरकारों में शामिल इनके अपने मंत्रीगण कई मुद्दों पर अपनी ही सरकार से अलग राय रखते दिखते हैं। कई बार तो अपनी ही सरकार द्वारा लिए गए फैसलों की भी आलोचना करने से नहीं हिचकते हैं।
दोनों सरकारों में मंत्रियों के अलावा कई प्रशासनिक अधिकारियों ने भी सरकार से जुदा ही अपनी राय रखी है। यही कारण है कि पिछले कुछ समय में इन सरकारों में मंत्रियों या अधिकारियों ने इनसे दूरी बनाकर सरकार या प्रशासन को छोड़ दिया है।
ट्रंप सरकार में कई बड़े मंत्रियों ने ट्रंप का साथ छोड़ दिया जिनमें रक्षा मंत्री जिम मेटिस का नाम प्रमुख तौर पर लिया जा सकता है। उसी तरह भारत में मोदी सरकार में सरकार का साथ छोड़ने वालों की लिस्ट काफी लंबी होती जा रही है। इनमें एनडीए में साझेदार रहे टीडीपी प्रमुख चन्द्र बाबू नायडू एक बड़ा चेहरा हैं।
इसके अलावा अगर आरबीआई गवर्नर की बात करें तो रघुराम राजन का अपना कार्यकाल खत्म होने के पश्चात जिस तरह अगले कार्यकाल को ना कहना और अर्जित पटेल का कार्यकाल बीच में ही छोड़ देना सरकार पर कई बड़े सवालिया निशान खड़े करते हैं। इन सबके बीच शक्तिकांत दास को आरबीआई के नए गवर्नर के तौर पर नियुक्त करना भी काफी कुछ बयान करता है।
काफी कुछ कहता है शाह फैसल का इस्तीफा
इसके बाद जम्मू कश्मीर के युवा आईएएस अधिकारी शाह फैसल का इस्तीफा देना भी मोदी सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करते हैं।शाह फैसल ने केंद्र की मोदी सरकार पर जम्मू कश्मीर को खास तवज्जो ना देने को भी एक कारण बताया है।
इसी कड़ी मै ताज़ा मुद्दा जुड़ा है भारतीय सांख्यिकी आयोग के कार्यवाहक प्रमुख पी सी मोहनन और आयोग की सदस्य जेवी मीनाक्षी का जिन्होंने हाल ही में अपना इस्तीफा दिया है। इनका सरकार पर आरोप है कि सरकार द्वारा इन्हें गंभीरता से नहींं लिया जाता है।
इन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि सरकार ने लगातार बेरोज़गारी के आंकड़ों को छुपाने का काम किया है। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि जिन भारी जन-आकांक्षाओं के साथ ये दोनों नेता सत्ता पर काबिज़ हुए थे उनको पूरा करने में उतने कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं।