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“मीडिया का AMU को आतंकवादियों की यूनिवर्सिटी कहना एक कुतर्क है।”

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

अलीगढ़, तालों का शहर, नालों का शहर, सपनों का शहर, डीलरों का शहर, चाय के नशेड़ियों का शहर, आशाओं का और आशावादियों का शहर। जी हां, यहां दर्द और हमदर्द दोनों ही हैं।

यहां रोग और रोगी दोनों ही हैं। इस शहर में बुद्धिजीवी और लुटे हुए आशिक भी हैं। ये सभी रोगी, बुद्धिजीवी, आशावादी और आशिक आपको यहां शाम में किसी भी चाय की टपरी पर चर्चाओं में लिप्त मिल जाएंगे।

यहां की हवाओं और अलीगों में चाय की खुशबू पाए जाने का दावा वैज्ञानिक भी कर चुके हैं। अब यह अलीग कौन हैं? यही ना? चलिए बताती हूं, यहां एमयू में पढ़ने वालों को अलीग कहा जाता है। हैं? क्या कहा आपने? मीडिया हमें आतंकवादी कहती है? अरे।

एएमयू  को जानना ज़रूरी है

चलिए आपको पहले अपने ठिकाने की एक छवि देते हुए अपनी ज़िन्दगी के पांच सबसे खूबसूरत सालों का ब्यौरा देती हूं। एएमयू देश की सबसे पुरानी, खूबसूरत एवं विवादित विश्वविद्यालयों में से एक उच्च कोटि का केंद्रीय विश्वविद्यालय है।

फोटो साभार: Getty Images

यह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज़ पर ब्रिटिश राज के समय बनाया गया पहला उच्च शिक्षण संस्थान था। यह विश्वविद्यालय 30,000 विद्यार्थियों समेत एक सेन्ट्रल लाइब्रेरी को समेटे हुए है। मौलान आज़ाद लाइब्रेरी में 13.50 लाख पुस्तकों के साथ तमाम दुर्लभ पांडुलिपियां भी मौजूद हैं।

यह एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरीज़ में से एक है। यहां शेखी बघारने की ऐसी और भी कई चीज़ें हैं जो आप एमयू के गहन अध्ययन के बाद जान जाएंगे। यह सब बातें मीडिया के आकर्षण का केंद्र कभी नहीं रही हैं। इसके लिए आपको यहां आना पड़ेगा और इस विश्वविद्यालय को जीना पड़ेगा।

एएमयू के मेरे अनुभव

अब मैं कौन हूं? तो नमस्ते मैं एक अलीग हूं और मेरा नाम रश्मि है। मैं एएमयू में विधि संकाय की छात्रा हूं। मैं अपने जीवन के 14 साल विद्या मंदिर में पढ़कर एएमयू आई। यहां आना मेरे लिए उस वक्त किसी सज़ा से कम नहीं था मगर मेरे पिता ने मुझे किसी तरह यहां आने को राज़ी किया और मैं रोते-पीटते, नाक मुंह सिकोड़ते यहां आ पहुंची।

मेरे जैसे संस्कृत भाषी और सुबह उठते ही प्रातः स्मरण गाने वाले बालक के लिए यह कोई और ही देश था जहां ब्रह्ममुहूर्त, फज़र, सूर्यास्त और मगरेब हुआ करते थे, जहां आप किसी भी कोने में हों पांच वक्त की अज़ान आप तक पहुंच जाना निश्चित है।

यहां घूंघट की जगह बुरखे थे और दीदियों की जगह अप्पियों ने ले ली थी। मेरे लिए यह सब प्रॉसेस कर पाना बहुत ही उथल-पुथल से भरा हुआ एक अजीब खूबसूरत अनुभव रहा।

मेरे साथ एएमयू में एडमीशन से लेकर अब तक कई रोचक किस्से हुए हैं जिन्हें बयां कर पाना असंभव है। वैसे असंभव देखा जाए तो यह भी है कि मैं एएमयू को शब्दों में बयां कर पाऊं।

खैर, असंभव तो यह बताना भी है कि इन पांच सालों ने मुझे क्या-क्या दिया, कहां से कहां पहुंचा दिया कि आज जिस तार्किक ढंग से चीज़ों को समझने की शक्ति मुझमें है, वह इसी की बदौलत। यहां आई थी तो बस हिंदी और खड़ी बोली के अलावा कोई और माध्यम नहीं आता था, आज अंग्रेज़ी और उर्दू भी जानती हूं।

फोटो साभार: Getty Images

उर्दू से एक रोचक किस्सा याद आया जिससे शायद बहुत से लोग अनभिज्ञ हों। यहां ग्रेजुएशन में एडमीशन के वक्त अगर आप उर्दू बोर्ड को छोड़कर किसी भी अन्य बोर्ड से हैं तो आपको एलीमेन्ट्री उर्दू लेना कम्पलसरी है, जिसका तीन सालों में एक बार एग्ज़ाम आपको क्लीयर करना होता है।

अब मीडिया इससे पहले यह कहे कि यहां एडमीशन टाइम से ही धर्म परिवर्तन की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं, तो मैं एक और रोचक बात बता दूं कि जो लोग उर्दू मीडियम या उर्दू बोर्ड से होते हैं, उनको यहां एलीमेन्ट्री हिंदी लेना कम्पलसरी है।

उर्दू के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेज़ी भी अनिवार्य

सार स्पष्ट है कि अगर आप एएमयू के ग्रेजुएट हैं, तो आपको हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी आना प्रत्यक्ष है। अब जब एडमीशन के वक्त मुझ जैसे संस्कृत भाषी को इस बात की जानकारी हुई, तब मैंने यहां पढ़ना सिरे से खारिज़ कर दिया फिर मेरे पिता के इमोशनल अत्याचार और कुछ नकाबपोश सीनियरों द्वारा मुझे उर्दू पढ़ा देने के आश्वासन के बाद मैं यहां आ गई।

मुझे उर्दू का अलिफ भी नही आता था मगर साल के अंत में मुझे उस विषय में 74 नंबर मिले थे। खैर, आज पांच साल से मैं यहां पढ़ रही हूं, इन पांच सालों में एएमयू से हज़ारों विद्यार्थियों को निकलते देखा और एलुमनाई मीट में गर्व से अपनी कामयाबी के किस्से सुनाते देखा।

अलीग आतंकवादी नहीं हैं

एएमयू को दूसरे नम्बर पर आते देखा, सर सय्यद डे देखे, एएमयू को विकसित होते देखा, सिरे से गिरते हुए देखा फिर उसी गति से और तेज़ी के साथ उठते देखा, जिन्ना के विवाद को देखा, पाॅलिटिशियन्स का वोट बैंक बनते देखा, क्षेत्रवाद देखा और देखी गंगा जमुना संस्कृति।

इंसान ना किसी धर्म का होता है ना जाति का, ना क्षेत्र का और ना ही भाषा का बल्कि वह अपने कर्मों का होता है। इस तरह बस दो किस्म के इंसान भगवान ने बनाए हैं। पहला- अच्छे इंसान और दूसरा बुरे इंसान। ये अच्छे-बुरे इंसान आपको हर जगह, हर क्षण और हर गली में मिल जाएंगे।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

अलीग आतंकवादी नहीं हैं सर। अलीग भारत रत्न हैं, पद्मभूषण हैं, पदम विभूषण हैं, पद्मश्री हैं, सुप्रीम कोर्ट के जज हैं, वाइस चांसलर हैं, सेना में हैं, ऑफिस में हैं, बिज़नेस में हैं, देश में हैं, विदेशों में हैं, टीवी पर हैं और अलीग विश्व के हर कोने में उभरते सितारे हैं।

मौजूदा हालातों के देखकर लगता है कि एएमयू जैसे ‘तैमूर’ हो गया जिसके छींकने को भी ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर मीडिया सोचता होगा, “हाये रे आज तो बहुत ही प्रोडक्टिव कर लिया हमारे चैनल ने।”

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