मौजूदा वक्त में जातिवाद का दंश काफी व्यापक स्तर पर है, जहां इंसानियत को किनारे रखकर घटिया सोच के सहारे दलितों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। ऊंची जाति के लोग दलितों को अपने पैर की धूल समझते हैं।
इस लेख के ज़रिए मैं एक उदाहरण पेश कर रहा हूं, जो शायद आपकी आत्मा पर असर डाल पाए। मेरे घर के पास ‘रानी’ नाम का एक गाँव है, जहां सभी जाति के लोग रहते हैं। एक बार चौधरी समाज के लोग गाँव में मंदिर स्थापित करा रहे थे, जिसमें शामिल होने के लिए पूरे गाँव के लोगों को न्यौता दिया गया था।
धीरे-धीरे लोगों का पहुंचना आरम्भ हुआ लेकिन जो चीज़ मुझे सबसे घटिया लगी, वह यह कि छोटी जाति के लोगों के लिए अलग खाने का इंतज़ाम था और ऊंची जाति वाले लोगों का खास ध्यान रखा जा रहा था।
पूरे गाँव में यह खबर आग की तरह फैल गई कि छोटी जाति के लोगों के लिए अलग खाने का इंतज़ाम है। उनसे लोग लगातार कह रहे थे कि तुम लोगों के लिए यह खाना नहीं है, तुम्हारे लिए अलग इंतज़ाम है। मुझे तो सोचकर ही अजीब लग रहा था कि उनकी आत्मा को कितनी तकलीफ हो रही होगी।
गाँव में उस रोज़ चीज़ें बस खाने तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि बार-बार उन पर तंज कसते हुए उनके सम्मान की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं। दो तीन समाज के लोगों को इन चीज़ों से काफी ठेस पहुंची और तब वे धर्म के उन ठेकेदारों से जाकर बोले, “आप हम छोटे लोगों का खाना मत बनाना, हम नहीं आएंगे।”
इस पर ऊंची जाति के आयोजक ने जो जवाब दिया, वह बेहद हैरान कर देने वाला था। उन्होंने कहा, “कोई बात नहीं खाना बच ही जाएगा।” खैर, मैं ऐसे समाज के बारे में क्या ही बोलूं। एक तरफ धर्म के नाम पर दिखाने की कोशिश हो रही है कि हम मंदिर निर्माण करा रहे हैं और दूसरी ओर जातिवाद जैसी घटिया मानसिकता को बढ़ावा दे रहे हैं।
पहली बात तो यह कि दलितों और सवर्णों के बीच कोई भेदभाव होनी ही नहीं चाहिए। कोई व्यक्ति अगर दलित है, तो इसमें उसकी क्या गलती? अगर कोई ऊंची जाति से है तो वह सीना चौड़ा करके चले, इसका भी कोई मतलब नहीं है।
गाँव में भेदभाव सिर्फ खाने और खिलाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहां तक कहा जाता है, “ऊंची जाति का बच्चा छोटी जाति के बच्चों के साथ नहीं खेलेगा”।
मैं पेशे से एक शिक्षक हूं और गाँव में जातिगत भेदभाव को काफी करीब से देखा है। मैं यही मानता हूं कि शिक्षा ही इन चीज़ों को खत्म कर सकती है इसलिए मैं अपने स्तर से लोगों को हमेशा जागरूक करता रहता हूं। मैंने गाँव में अभी तक 30-35 लोगों को जागरूक किया है।
चलिए मैं इसी कड़ी में आपको दो दोस्तों की कहानी सुनाता हूं। दो दोस्त थे, एक ऊंची जाति से तो दूसरा तथाकथित छोटी जाति से। दोनों की दोस्ती तो काफी सही थी लेकिन जाति का दंश परिवार वालों में भरा हुआ था। जब एक दोस्त (दलित) को प्यास लगी तब उसने अपने मित्र (ऊंची जाति) से कहा, “यार पानी ला दोगे?”
वह दोस्त जब पानी लाने के लिए घर गया तब उससे पूछा गया कि तुम्हारा मित्र किस जाति से है? घरवालों को जैसे ही पता चला कि वह दलित है तो उसे कुत्तों की तरह पानी पिलाया गया। इस दौरान उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे।
इन चीज़ों को लेख के ज़रिए साझा करते हुए मेरे ज़हन में कई सवाल उठ रहे हैं। एक तो यह कि अगर किसी लड़के का जन्म दलित के घर में हुआ है तो इसमें उसकी क्या गलती है? दलित होना पाप है क्या?
मैं लोगों से यही कहना चाहूंगा कि जातिवाद को बढ़ावा देना बंद कीजिए और लोगों की भावनाओं का मज़ाक भी मत बनाइए।