आज समाज और राजनीति के सामने काफी चुनौतियां हैं। आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी हालात बदले नहीं हैं। सामाजिक चुनौतियों की बात करें तो आज भी जातिवाद से हम मुक्त नहीं हो पाए हैं।
ऊना, सहारनपुर, रोहित वेमुला और भीमा कोरेगाँव जैसे कई उदाहरण हैं। आज़ादी के 70 वर्षो बाद भी हम धर्म के नाम पर आज भी दंगे करते हैं।
बढ़ रही है लोगों की उग्रता
चाहे अखलाक की हत्या हो, राजसमंद में शम्भू रैगर द्वारा की गई एक निर्दोष मुस्लिम मज़दूर की निर्मम हत्या हो, जुनैद की भीड़ द्वारा की गई हत्या हो या पश्चिम बंगाल में राम नवमी के दौरान सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश हो, हर जगह लोग उग्र हो गए हैं।
प्रांतवाद चिंता का सबब
प्रांतवाद आज फिर से देश की एकता और समाज के लिए एक चुनौती बनकर उभरा है। भारत का संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी भी राज्य में जाने और वहां व्यापार करने की आज़ादी देता हैं लेकिन महाराष्ट्र , गुजरात या अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश और बिहार के नागरिकों खासकर वहां के गरीब मज़दूरों के साथ जैसे व्यवहार होता है यह हम सभी जानते हैं।
कमज़ोर शिक्षा व्यवस्था एक चुनौती
इन सबके बीच देश के सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था का स्तर लगातार पतन की ओर जा रहा है। हर रोज़ खुलते प्राइवेट स्कूलों की वजह से आज शिक्षा का बाज़ारीकरण हो गया है, जिससे गरीबों के बच्चों को काफी दिक्त हो रही है।
नक्सलवाद बड़ी समस्या
नक्सलवाद की समस्या जो कल तक कुछ ही राज्यों में सीमित थी, आज इसका स्तर व्यापक हो रहा है। भारत सरकार इस चुनौती से लड़ने के लिए काफी पैसा खर्च करती है परन्तु उस पैसे का सदुपयोग ना हो पाने के कारण नक्सल ग्रस्त इलाकों की तस्वीर नहीं बदल रही है।
आज भी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को बिजली, सड़क, पानी, सरकारी अस्पताल और स्कूल के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है।
गंदी राजनीति का दौर
मौजूदा दौर में राजनीति वह गंगा बन चुकी है जिसमे प्रवेश करते ही सारे अपराधियों के पाप खत्म हो जाते हैं। चुनाव जीतने के बाद तो इन अपराधियों के हौसले और भी बुलंद हो जाते हैं। चुनाव जीतने के लिए धन और बल का प्रयोग किया जाता है।
आज लोगों में यह समझ बन चुकी है कि अगर चुनाव जीतना है तो पानी की तरह पैसा बहाना होगा। चुनाव के समय बहुत से मतदाता उन्हीं प्रत्याशी को अपना मतदान देते हैं जिनसे उन्हें कोई आर्थिक लाभ या अन्य कोई सुविधा प्राप्त हो।
राजनीतिक दल विकास की कितनी भी बातें क्यों ना करें लेकन जब टिकट बंटवारे का समय आता है तब उम्मीदवारों की जाति और धर्म देखकर ही टिकट दी जाती है। चुनाव नज़दीक आते ही कुछ पार्टियों द्वारा धार्मिक ध्रुवीकरण का काम किया जाता है।
इन सबके बीच हमारे लिए बेहद ज़रूरी है कि हम भारत में एक बेहतर राजनीतिक माहौल तैयार करें ताकि गरीबों के बच्चे और देश के बेरोज़गार युवाओं के लिए सुनहरा भविष्य तैयार हो।