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“अंबेडकर के नाम का मंदिर बनाना उनके आदर्शों के खिलाफ है”

अंबेडकर

भीमराव अंबेडकर

क्या ब्राह्मणवाद का उत्तर नव ब्राह्मणवाद होना चाहिए? क्या भेदभाव को भेदभाव से मिटाया जा सकता है? क्या अतीत की बदसलूकियों को बदसलूकी कर खत्म किया जा सकता है?

शायद सामाजिक न्याय की अवधारणा में भरोसा करने वाला हर व्यक्ति इन प्रश्नों का उत्तर ‘ना’ से ही देगा। ब्राह्मणवाद, भेदभाव और जातिवाद जैसी सामाजिक बुराईयों को ‘बराबरी’ के ज़रिये कम किया जा सकता है।

रिवायत बन चुकी है छूआछूत

जाति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए छूआछूत को समाज में रिवाज़ की मान्यता दी गई है। हमारे समाज में ब्राह्मणवादी रीति-रिवाज़ की कोई कमी नहीं है जिनका आधार सिर्फ जाति की शुद्धता को बनाए रखना है। ऐसी खोखली रीतियों को सभी जाति के लोग बिना किसी किन्तु-परन्तु के धड़ल्ले से निभाते आ रहे हैं।

फोटो साभार: Getty Images

कुछ दिनों से सामाजिक न्याय पर सरकार का ज़ोरदार हमला है। इसी वजह से पिछड़े तबकों से आने वाले लोग अपने हक की आवाज़े बुलंद कर रहे हैं। उनमें से कुछ लोगों का ज़ोर इस बात पर है कि “धर्म” ही ब्राह्मणवाद की जड़ है।

अंबेडकर की पूजा क्यों?

इस बात में कोई संदेह भी नहीं है कि देवता, रीति-रिवाज़, कर्म-कांड, पूजा-पाठ और मंदिर-मठ से ही ब्राह्मणवाद फलता-फूलता है। मुझे आश्चर्य तब होता है जब अंबेडकरवादी होने का दावा करने वाले यही लोग अंबेडकर की मूर्ति के सामने माथा टेकते नज़र आते हैं।

शादियों के कार्ड्स पर अंबेडकर की फोटो छापकर ऐसे लोग उनके विचारों का गला घोंटने में लगे हैं। यही नहीं, अंबेडकर नाम का मंदिर बनाकर सरेआम उनके आदर्शों को तार-तार किया जा रहा है।

अंबेडकर जाति विशेष के नहीं हैं

लोग उन रीति-रिवाज़ों के निर्माण में लगे हैं जिन पर किसी जाति या वर्ग विशेष का अधिकार होगा। ऐसे लोगों का मानना है कि तथाकथित ऊंची जाति से आने वाले लोगों के साथ वही बर्ताव किया जाए जो उनके पुरखों ने हमारे साथ किया था।

ये लोग अपने स्वार्थों को ध्यान में रखते हुए यह तय करते हैं कि देश में सामाजिक न्याय की बहस को क्या दिशा दी जाए। इनके अनुसार छूआछूत का बदला छूआछूत से लिया जाना चाहिए ना कि इसे जड़ से मिटाकर और भेदभाव का बदला भेदभाव से लिया जाय ना कि समाज में बराबरी स्थापित कर।

फोटो साभार: सोशल मीडिया

असल में इन लोगों के दिमाग में ब्राह्मणवाद इस तरह घर कर चुका है कि सोते-जागते यह लोग बस ‘ब्राह्मण’ बनने का ही स्वपन देखते हैं। ये लोग वह सारे ढकोसले करते हैं जो इन्हें ‘पंडितो’ की श्रेणी में ला खड़ा करे।

अंबेडकर ने तो शायद कभी नहीं कहा होगा कि ब्राह्मणवाद को मिटाने के लिए ‘ब्राह्मण’ रूप धारण करना ज़रूरी है। मौजूदा दौर में लोगों को समझना होगा कि जातिवाद से यदि लड़ाई लड़नी है, तो संविधान ही एकमात्र विकल्प है।

ब्राह्मणवाद का अंत नव ब्राह्मणवाद से नहीं

गैर-बराबरी का अंत बराबरी ही हो सकता है और जो लोग ब्राह्मणवाद का अंत नव-ब्राह्मणवाद में देखते हैं, वे सामाजिक न्याय के सबसे बड़े दुश्मन हैं।

उनके भीतर गैर-बराबरी घर कर चुकी है, उनके ज़हन में ब्राह्मणवाद सर चढ़कर बोल रहा है और भेदभाव सामान्य आचरण बन चुका है।

ऐसे लोगों से सावधान रहने की ज़रूरत है जो मित्र के भेष में छिपे कुंठित दुश्मन हैं। ऐसे लोग सिर्फ बदला लेना जानते हैं, असल में बदलाव लाना इनके बस की बात नहीं है।

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