वो जो ज़िन्दा थे, सोचते हैं, क्या हमारी गलती थी और क्या सत्ता से सरोकार था
क्योंकि उनका खूनी भी राजनितिक सनक का शिकार था।
क्या कहता है “धर्म” और क्या कहते हैं धर्म के ठेकेदार,
अगर ठेकेदार ही सही है तो धर्म का होना बेकार था।
बेगुनाहों के कत्ल में तुझे युद्ध का एहसास था
वो नियति नहीं थी, तेरे कुकर्म थे
तूने देवताओं का उड़ाया उपहास था।
जो गांव जला दे, घर का दीपक बुझा दे, उस मशाल से रौशनी नहीं, निकला अंधकार था।
जो विशिष्ठ है वो वरिष्ठ है, तुम प्यादे हो, तो तुम्हें प्यासा बनना आसान था।
प्यासा, रक्त का प्यासा
जो तुम पशुओं से भी “निम्न” थे
तो पशु बनना आसान था।
तुम भक्त थे, तो क्या वो भगवान थे,
तुम असल में भोपू थे तो तुम्हें बजाना आसान था।
तुम्हारे हृदय की भूमि पर मानवता की फसल किसी ने ना बोई,
और जो बोया वो मनुष्यता का जलता मशान था।
उन्मादी भीड़ में मरता सुमित, मरा दारोगा
तुम्हारी दरिंदगी की पहचान था,
जो पैदा हुए वो ना बन सकने वाले, तू सबसे पहले मनुष्य था
जात तेरी इंसानी थी पर तू अपने अस्तित्व से अंजान था।
बात तेरी याद मुझे ज़ुबानी है, तू अपनी ही रूह से बेजान था
और जब मज़हब तेरा इंसानी है, तो बता शहर क्यों वीरान था?