14 फरवरी को जब पूरी दुनिया मोहब्बत बांट रही थी, ठीक उसी वक्त कुछ लोगों ने मोहब्बत और अमन को खत्म करने के मंसूबे से इस देश की आत्मा पर हमला कर दिया। देश के जांबाज़ बेटों को मोहब्बत को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी।
मैं आज यह लेख पूरे तीन दिन बाद लिख रहा हूं क्योंकि दो दिन तक मुझे समझ नहीं आया कि गुस्सा ज़्यादा था या गम। कलम चलाते हुए हाथ कांप रहे थे और किसी से बात करते वक्त ज़ुबान भी लड़खड़ा रहे थे।
शहीदों के परिवार वालों का जब-जब मन में ख्याल आता तब-तब आंखें भर आतीं और मन रोने लगता था। आज किसी तरह से मैंने कलम थामी और लिखने की हिम्मत की है क्योंकि कुछ तत्व इस दुःख की घड़ी में भी नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं।
आतंकियों का मकसद है देश को तोड़ना और कुछ लोग आज सोशल मीडिया पर नफरत भरे मैसेजेज़ के ज़रिए आतंकियों को कामयाब कर रहे हैं।
इस देश में आतंकी हमला करने वालों के दो तरह के मनसूबे होते हैं- पहला इस देश को सीधे तौर पर नुकसान पहुंचाना और दूसरा इस देश के सांप्रदायिक माहौल को खराब करने का छिपा हुआ मंसूबा।
इस घटना ने पूरे देश में ऊबाल ला दिया जिस वजह से हर कोई सोशल मीडिया पर अपना दुःख और गुस्सा दोनों व्यक्त कर रहा था।
कुछ कश्मीरी छात्रों ने विवादास्पद टिप्पणियां भी की जिसके कारण उनके खिलाफ कार्रवाई की गई लेकिन कुछ लोग पाकिस्तान को गाली देते-देते इसी देश के मुसलमानों को कब गाली देने लगे, पता ही नहीं चला।
इसी बीच कल मुझे कुछ ऐसे फेसबुक पोस्ट दिखे जिसने मेरा दिल तोड़ दिया। लोग खुलकर मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगल रहे थे। अब तक जो गुस्सा और दुःख था उसके साथ डर भी लगने लगा क्योंकि कल से ही फेसबुक और ट्वीटर पर ऐसे पोस्ट्स की तादाद काफी अधिक हो चुकी है, जिसमें सीधे तौर पर इस आतंकी घटना को हिन्दू बनाम मुस्लिम बनाया जा रहा है।
उन लोगों ने शायद शहीदों के नाम तक नहीं पढ़े इसलिए वे इस तरह की जाहिलाना बात कर रहे हैं। उन्हें यह पता तक नहीं है कि यह हमला ना किसी हिन्दू पर हुआ और ना ही मुसलमानों पर, यह इस देश पर हमला है और इस देश को हिन्दू-मुसलमान मिलकर बनाते हैं। कुछ लोग कल रात से फोन करके इस बारे में चर्चा करने की कोशिश भी कर रहे हैं और साथ मिलकर इन चीज़ों से लड़ने का आश्वासन भी दे रहे हैं।
पटना से एक मित्र का फोन आया जो कह रहा था, “भाई हमारे यहां आज कश्मीरियों की दुकानों में तोड़-फोड़ हुई है।” ‘आइडेंटिटी’ हमारी एक बहुत बड़ी समस्या है। हम बस सामने वाले का नाम पढ़कर ही उसकी देश-भक्ति आंक लेते हैं। इस देश में जब भी कोई ऐसी घटना होती है, सबसे पहले इस देश के मुसलमान को उसकी भ्रत्सना करनी होगी।
16 फरवरी को राजस्थान में दो घटनाएं हुईं। राजस्थान के प्रतापगढ़ ज़िले में एक मुस्लिम स्कूल प्रिंसिपल ने सेना को लेकर एक विवादास्पद बयान दिया जिसके बाद उस पर कार्रवाई हुई, मगर नफरत फैलाने वालों को हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा करने के लिए एक तरह का हथियार मिल गया है।
स्क्रीन-शॉट वायरल होने लगे। वहीं, सिरोही ज़िले में दूसरी घटना हुई जहां सिरोही विशेष न्यायालय के जज ने भी सैनिकों को लेकर विवादास्पद बयान दिया। वहां की बार काउंसिल की तरफ से कार्रवाई की मांग की जा रही है मगर उस जज साहब को एक फायदा है। उनके नाम से इस देश में दंगा फैलाने वालों को कोई दिक्कत नहीं है या आप यह भी कह सकते हैं कि जज साहब का नाम दंगाईयों के काम की चीज़ नहीं है।
आज इस देश के आम नागरिक पर एक ज़िम्मेदारी है कि वे देश का माहौल तनावपूर्ण होने से बचाए। एक मुसलमान होने के नाते मुझ पर एक तरह से दोहरी ज़िम्मेदारी है।
मुझे यह सब का दुःख और गुस्सा झेलने के बाद देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बचाने के लिए भी लड़ना है और जो लोग सीधे तौर पर इन सब के पीछे इस देश के सारे मुसलमानों और इस्लाम को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं, उनसे भी लड़ना है।
एक भारतीय मुस्लिम होने के नाते मैं एक बात कहना चाहता हूं कि मैं भी बिलकुल आप ही की तरह आहत हूं, गुस्से में हूं और दुखी भी हूं। यह देश मेरा भी है, इस देश के सैनिक मेरे भी भाई, बाप हैं।
इस देश के बिना मेरा भी कोई अस्तित्व नहीं है मगर जब कुछ लोग सोशल मीडिया पर मुझे और मेरे धर्म को गाली देते हैं, तब यह दुःख दोगुना हो जाता है। आप लोगों से एक गुज़ारिश है कि हर बार मैं इस बात का सबूत नहीं दे सकता। आप हर वक्त मुझे संदिग्ध नज़रों से मत देखा कीजिए, हर बार मुझको ताना मारती हुई भड़काऊ पोस्ट मत किया कीजिए।
कुछ गद्दार हैं जो हर बार इस देश को धोखा दे देते हैं और यह मेरी बदनसीबी ही समझें कि उनके नाम मेरे नाम से मिलते हैं। मैं भी मदरसे गया हूं और वहां कुरान पढ़ी है।
मेरा इस्लाम तो यह सिखाता था अगर आपकी वजह से आपका पड़ोसी भी सुखी नहीं है तो भी आपका ईमान मुकम्मल नहीं है। यह कैसे मुसलमान हैं जो लोगों की जान लेने को जिहाद बता रहे हैं। नहीं, यह मुसलमान नहीं हो सकते हैं।
आप लोगों से मेरा एक सवाल है। आप कुछ 10, 15 या 50 लोगों की गलती की सज़ा 20 करोड़ हिन्दुस्तानी मुसलमानों को तो नहीं दे सकते ना?
हमें इस मुश्किल घड़ी में साथ मिलकर आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या से लड़ना पड़ेगा और इस देश में सामाजिक समरसता भी स्थापित करनी पड़ेगी।
नोट- अन्सार YKA के जनवरी-मार्च 2019 बैच के इंटर्न हैं।