आज जैसे ही हर सुबह की तरह मैंने अपने आपको अखबारों के पन्नों के बीच में पाया, तभी मेरे मन में एक विचार की अनुभूति का आभास हुआ। उस ख्याल ने मुझे अपने देश भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए भयभीत कर दिया। जो ही मैं समाचार पढ़ता गया, मेरा डर मज़बूत होता गया और मुझे यकीन है कि मेरे साथ वह हर भारतीय इंसान जो भारत को महान बनाने का सपना देख रहा है, वह भी निश्चित रूप से इन विचारों की धारा में अपने आपको फंसा पाएगा।
कहीं हमारा देश गलत दिशा में तो नहीं बढ़ रहा? यह मामूलन एक विचार ही नहीं बल्कि बहुत ही गहरा सवाल है, जिससे डरकर हमारे मंत्री एवं नेता भी दुम दबाकर भागते हैं और क्यों ना भागे? आखिर यह सवाल उनकी गद्दी जो छीन सकता है, यह सवाल सरकारें बदल सकता है, यह सवाल भारत के वर्तमान और भविष्य की पूर्णतः तस्वीर बदलने के काबिल है। हां, बस यह सवाल एक चीज़ छोड़कर सब बदल सकता है, जो है ज़मीन स्थल की सच्चाई।
अब जब हम समझ गए हैं कि हम यहां किस प्रश्न की बात कर रहे हैं और वह भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है, तो आइये जानते हैं कि इसका जवाब क्या है? आज भारत सिर्फ एक या दो नहीं बल्कि अनेक सामाजिक बीमारियों से जूझ रहा है, जिसने देश की हालत को अस्त-व्यस्त कर दिया है। आइये देखते हैं कि वह कौन-कौन सी विपदाएं हैं, जिसके तले देश बर्बादी की और झुकता जा रहा है।
सांप्रदायिक तनाव-
आज देश के हालत इस कदर हो गए हैं कि एक इंसान की जान की कीमत कोड़ियों के दाम से भी कम हो गयी है। धर्म के नाम पर अल्पसंख्यक विभागों के ऊपर दंगे और हमले किये जा रहे हैं। मुज़फ्फरपुर और गोधरा कांड इस तनाव के कुछ काली हकीकतों में से हैं।
महिलाओं पर हिंसा-
आज भी भारत अपने 70 साल आज़ाद होने के बाद आज़ाद नहीं है। देश की लड़कियों पर अनेक ज़ुल्म किये जा रहे हैं। दहेज, बलात्कार, मानव तस्करी और ना जाने कितने भयानक दर्द ने हमारी लड़कियों को बांध रखा है। अगर इन सबसे भी कोई महिला बच जाए तो उसको हर कदम पर एहसास दिलाया जाता है कि वह मर्दों के बराबर नहीं है। उनको पुरुषों के बराबर आय नहीं दी जाती। उनपर घर से बाहर काम करने के नाम पर तंज कसे जाए हैं। कितना घिनौना दृश्य है इस देश का, जहां वैसे तो लक्ष्मी और दुर्गा की पूजा होती है, वहीं दूसरी तरफ नाबालिक मासूम चंद महीनों की बच्ची के साथ हैवानियत और दरिंदगी होती हैं।
भ्रष्टाचार-
भारत अब भ्रष्टाचार का नमूना बन गया है, जहां हर कोई बस घूसखोरी में लगा पड़ा है। बड़े-बड़े नेता उद्योगपतियों से मिले हुए हैं, जो फिर नामचीन अपराधियों से जान पहचान रखते हैं। सारी सरकार मानों बस चंद लोगों की कमाई का साधन बन गयी है। इस कारण जनता का सरकार और लोकतंत्र पर से विश्वास उठता जा रहा है।
मूल अधिकारों का पतन-
आज अराजकता के नाम पर फिल्मों और किताबों पर बैन लगाया जा रहा है। एक आम इंसान को अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए दस बार सोचना पड़ता है कि कहीं उसपर राष्ट्रद्रोही का तमका तो नहीं लगाया जाएगा। आज इस कदर हालात बिगड़ गए हैं कि सरकार या न्यायालय भी आम इंसान के मूल अधिकारों की रक्षा करने में अक्षम हैं। पद्मावत के हादसे ने पूरे देश को हिला दिया था।
किसानों की मृत्यु एवं पिछड़ता कृषि उद्योग-
आज किसानों को अन्नदाता नहीं बल्कि मतदाता की नज़र से देखा जाता है। ना जाने हमारे कितने किसान भाई रोज़ आत्महत्या कर रहे हैं लेकिन किसी को उनके दुख से वास्ता नहीं है। हद तो तब हो गयी जब तमिलनाडु के कुछ किसान संसद के बाहर महीनों तक धरना देते रहें और किसी ने उनकी और ध्यान नहीं दिया। और तो और कृषि उद्योग की बढ़ोतरी दर गिरती जा रही है, उनको पानी और खाद और पैसों की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और रही बात सरकार की मदद की तो वह बस ऊपरी बड़े किसानों तक ही सीमित रह गयी है।
डोलती हुई अर्थव्यवस्था-
आज पेट्रोल के दाम 80 के पार हो गये हैं। रुपया 70 के नीचे गिर गया है। पूरे देश में से लाखों करोड़ रुपये गायब हो गये हैं क्योंकि कुछ लोग बैंकों को धोखा देकर देश से चंपत हो गये हैं। महंगाई बढ़ती जा रही है और भारत की जनसंख्या के अनुसार आर्थिक दर जो होनी चाहिए, उतनी अभी नहीं है।
अमीर गरीब के बीच का बढ़ता हुआ भेदभाव-
थोड़े महीनों पहले की ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने साबित कर दिया की भारत में ऊपरी 1% लोगों के पास देश की 58% संपत्ति है। देश के गरीब और गरीबी में धंसते जा रहे हैं और जो अमीर हैं वह और अमीर होते जा रहे हैं। झुग्गियों और आलीशान महल के बीच का फासला बढ़ता ही जा रहा है।
प्रदूषण की मार-
हमारी नदियां और हवा इस कदर दूषित हो गयी हैं कि अब उनको साफ कर पाना या उनके बुरे असर से बच पाना लगभग नामुमकिन सा हो गया है। भारत अब दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से सबसे अव्वल स्थान पर है। हमारे यहां इस कारण लोगों के स्वास्थ्य पर भी गहरा नुकसान हो रहा है। यमुना का हाल तो हम सब जानते ही हैं।
बढ़ता अपराध और आतकंवाद-
चाहे जम्मू कश्मीर की सरहद पर पाकिस्तान की नज़र के कारण या फिर असामाजिक तत्वों के कारण, भारत में दिन प्रतिदिन आतंक और अपराध की बढ़ोतरी हो रही है। पुलिस लोगों की सुरक्षा करने में नाकाम हो गयी है और जबसे अपराधियों को संसद में जगह मिली है, तबसे तो देश मे गुंडागर्दी का माहौल पैदा हो गया है। ऐसे में तो अपराधियों को कानून का मज़ाक उड़ाने से कोई नहीं रोक सकता।
उफ्फ! यह तो सिर्फ कुछ बड़ी समस्याओं के बारे में मैंने छोटा सा वर्णन किया है। असलियत में तो सच्चाई और भी निराशाजनक है। पर ऐसा नहीं है कि कोई इनसे निपट नहीं रहा है, सब कोशिश कर रहे हैं। बस सबके तरीके अलग हैं और एक दूसरे से मेल नहीं खाते। ज़रूरत है तो सबको एकजुट आने की। सरकार, पुलिस, आम आदमी और गैर-सरकारी संस्थाओं के एक बार साथ आने के बाद कोई भी ऐसी दिक्कत नहीं है जो भारत दूर नहीं कर सकता। बस यहां एक और सवाल उठता है- आखिर यह सब साथ कब आएंगे?