पहले भक्ति में काव्य और साहित्य होता था लेकिन अब भक्ति के दिन फिर गये हैं। अब तो भक्ति में राजनीति होती है, गठबंधन होते है, गाली गलौच और उठापटक के अलावा अब तो भक्ति में वोट भी होते हैं।
हालांकि भक्ति में ‘तू-तू मैं-मैं’ के अलावा बड़े और छोटे भक्त भी होते हैं, भक्ति की आलोचना होती है तो भक्ति की जयकार भी होती है। भक्ति तो भक्ति होती है चाहे भगवान की हो, बाबाओं की हो या अपने-अपने आराध्य नेताओं की हो।
फिलहाल महागठबंधन के अनेकों भावी प्रधानमंत्रियों में शामिल राहुल गाँधी भी अब इस भक्ति की निर्गुण धारा में बह चले हैं। कुछ दिन पहले तक वह परम शिवभक्त थे, अब मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक पोस्टर में राहुल गाँधी को राम भक्त बताया गया है।
पोस्टर के ज़रिए कहा गया है कि वह अयोध्या में सर्वसम्मति से भव्य राम मंदिर बनवाएंगे मगर कुछ भक्त ज़रूर पूछ रहे हैं कि जैसा मोदी जी ने बनाया है, क्या राहुल जी भी ऐसा ही बनाएंगे?
भक्ति की महिमा अपरंपार है
जो लोग अभी तक राहुल के धर्म पर सवाल उठा रहे थे उन्हें समझ जाना चाहिए कि भक्ति की महिमा अपरंपार होती है। अब वह दिन दूर नहीं जब राजनीतिक पार्टी के कार्यालयों में भजन, कीर्तन, जागरण और माता की चौकियां सजा करेंगी। छोटे-छोटे भक्त, बड़े-बड़े भक्तो को अपने हाथों से स्वादिष्ट भंडारे खिलाया करेंगे।
इससे वे लोग चिढ़े तो चिढ़े जिन्हें कभी माँ गंगा बुला लेती हैं तो कभी बाबा पशुपतिनाथ जी बुलाते हैं। अब भक्ति पर किसी का पेटेंट तो है नहीं कि सिर्फ आप ही भक्ति करो। अरे! भक्ति की महिमा देखो जब से राहुल जी ने अपना जनेऊ दिखाया है, अचानक उन्हें बाबा कैलाश ने बुला लिया।
तीन राज्य तो जीत ही लिए हैं, अब बस एक बार उनके मुंह से माता का एक जयकारा और लग जाए, बेड़ा काफी हद तक पार हो जाएगा। भक्ति बड़ी ज़रूरी भी है, भक्ति में ही मज़बूत वोट बेंक है।
देश में सदभावना, एकता, अखण्डता, बेरोज़गारी, मंहगाई, भ्रष्टाचार और आम जन के ज़रूरी मुद्दे फालतू की चीजें हैं। गरीब जनता को भक्ति का मर्म चाहिए। उन्हें समझना चाहिए मेहनत, मज़दूरी पढाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा है। भक्ति से ही जीवन काटना चाहिए, अब शायद इस देश को यही घुट्टी पिलानी शेष रह गई है।
भक्तों में ईर्ष्या
राहुल गाँधी ट्वीट करते हैं कि प्यारे मोदी भक्तों, चीन हमें पछाड़ चुका है जबकि तुम्हारे मास्टर हमें खोखले नारे दे रहे हैं। यह कैसे भक्त हैं जो अपनी भक्ति पर तो घमंड करते हैं और मोदी भक्तों की भक्ति का मज़ाक उड़ाते हैं। इन्हें क्या पता कि इस भक्ति का फल चारधाम की यात्रा से भी मीठा होता है और आने वाली कई पीढ़ियों को मुक्ति का मार्ग सुझाता है।
बड़े भक्तों को छोटे भक्तों से सीखना चाहिए कि असली भक्त ईर्ष्या-द्वेष से दूर रहते हैं क्योंकि किसी का जन्म से नेता-भक्त होना तो तभी संभव है जब स्वयं ऊपर वाला ऐसा चाहें, “जाओं पुत्र पृथ्वी पर जन्म लेकर नेताओं के भक्त बन कर मंगल गीत गाओ। इसी से तुम्हारा कल्याण होगा।”
यह सब भक्तों की ही महिमा है वरना समाज के वैज्ञानिक अभी तक नेताओं को दुर्लभ प्रजातियों में रखकर बचाने के लिए शोध कर रहे होते। किन्तु भक्तों की अपार श्रद्धा, स्नेह और भक्ति का प्रतिफल देखिए हर एक नुक्कड़, नाई की दुकान, बस की हर दूसरी सीट और बिजली टेलीफोन के दफ्तरों लेकर सब जगह नेता विराजमान हैं।
भक्ति की शक्ति
इस भक्ति में जहां आनन्द है, उल्लास है, सेल्फी है और गर्व है, वहां इस भक्ति में अपच भी है। एक भक्त दूसरे के भक्तों को मुर्ख समझ रहा है। जबकि भक्ति की इस धारा में सभी भक्तों को एक दूसरों को बराबर समझना चाहिए क्योंकि मुर्खता भी एक वरदान ही है। इसमें अपने विनाश का पता नहीं चलता है।
देश तबाह हो जाते हैं और समाज उजड़ जाते हैं मगर एहसास तक नहीं होता है। अत: इस वरदान को गंभीरता से लेना चाहिए। सभी भक्तों को मिलकर अपने लिए समान आरक्षण मांगना चाहिए। जिस तरह ईश्वर प्राणीमात्र का सृजन कर रहा है, उसी तरह भक्त भी अपने-अपने नेताओं के भविष्य का सृजन कर रहे हैं। बाकी देश के गरीब, मज़दूर और किसान तो नारों में ही छपे हैं और छपते रहेंगे।
जब भक्ति का यह सुखद अहसास मन में समाता है तब इस देश के भविष्य की चिंता छोड़कर भक्त बन जाने का मन करता है। खैर, कबीर, तुलसी, रसखान और मीरा के भक्तिकाल से निकलकर कब हम इस राजनीतिक भक्तिकाल में पहुंच गए यह बात या तो स्वयं भगवान जानते हैं या फिर इस देश के नेता।
परमसत्य यह भी है कि भक्ति में बड़ी शक्ति होती है। अगर आप बिना झिझक के अपने नेता में पूरा विश्वास बनाए रखेंगे तो वे आपकी हमेशा सहायता करेंगे और आपको हर मुश्किल से बाहर निकालेंगे। जिसे इस बात पर विश्वास ना हो वह हिरण्यकश्यप के बेटे भक्त प्रह्लाद की कहानी फिर से पढ़ सकते हैं। जिस किसी को यह बात बुरी लगे उसे सिर्फ इतना कह सकता हूं, “बुरा ना मानो कुछ दिन बाद होली है।”