रोस्टर एक तरीका है जिससे यह निर्धारित होता है कि किसी विभाग में निकलने वाला कौन सा पद आरक्षित वर्ग और कौन सा सामान्य वर्ग को दिया जाएगा। उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी रिज़र्वेशन लागू करने के दौरान विश्वविद्यालयों में नियुक्तियों का मामला सरकार के सामने आया।
केंद्र सरकार के निर्देश पर UGC ने तब जेएनयू के वैज्ञानिक प्रोफेसर राव साहब काले की अध्यक्षता में आरक्षण लागू करने के लिए एक कमेटी बनाई। ‘प्रोफेसर काले कमेटी’ ने आरक्षण लागू करने के लिए यह 200 प्वॉइंट का रोस्टर बनाया।
हम जानते हैं कि केंद्र सरकार की नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्गों को 27%, अनुसूचित जातियों को 15% तथा अनुसूचित जन-जातियों को 7.5% का आरक्षण दिया गया है। यानि कि 100 पदों में 27 ओबीसी, 15 एससी तथा 7.5 एसटी होने चाहिए।
समझिए क्या है 7.5% का गणित
ऐसे में 7.5 की भर्ती कैसे सम्भव है? क्योंकि यहां सात और आधा है। इसी 7.5 की संख्या को पूरा करने के लिए 100 की जगह 200% मानकर प्रत्येक वर्ग को दिए गए आरक्षण को दोगुना कर दिया गया। अब 200 में 54 पद ओबीसी (27%), 30 पद एससी (15%) तथा 15 पद एसटी (7.5%) के होने चाहिए। इसे ही 200 प्वॉइंट रोस्टर कहा जाता है।
ओबीसी का आरक्षित पद कुल पदों का लगभग एक चौथाई (27%) है, एससी का आरक्षित पद कुल पदों का लगभग सातवां हिस्सा (15%) है तथा एसटी का आरक्षित पद कुल पदों का लगभग 15वां हिस्सा (7.5%) है। इस हिसाब से कुल पदों के पदानुक्रम में हर चौथा व्यक्ति ओबीसी, हर सातवां व्यक्ति एससी तथा हर 15वां व्यक्ति एसटी होना चाहिए।
प्रोफेसर काले कमेटी
‘प्रोफेसर काले कमेटी’ ने इस रोस्टर को विभाग स्तर पर लागू ना करके विश्वविद्यालय स्तर पर लागू करने की सिफारिश की थी जिसमें यह तर्क दिया गया कि विश्वविद्यालय/कॉलेज एम्प्लॉयर होता है ना कि उसका विभाग।
200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम पर यूजीसी और मानव संसाधन मंत्रालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी को खारिज कर दिया।
आरक्षित वर्गों को बाहर निकालने का तरीका है क्या?
अब देखते हैं कि इस फैसले से असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियों में आरक्षित वर्गों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। किसी भी विभाग में जब तक एक साथ कम-से-कम चार सीटें नहीं आती, कोई ओबीसी नहीं आ पाएगा। जब तक 7 सीटें नहीं आएगी, कोई एससी नहीं आ पाएगा तथा 14 सीटें नहीं आने से कोई एसटी नहीं आ पाएगा।
किसी भी विभाग में बमुश्किल एक साथ 4-6 सीटें आती हैं। इस प्रकार से उच्च शिक्षा में प्रोफेसरशिप से आरक्षित वर्गों को बाहर निकालने की यह बहुत बड़ी कोशिश है।