सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए 10% आरक्षण देने के बाद नवीनतम प्रस्ताव को विपक्ष के उन नेताओं का भी समर्थन मिला जो आमतौर पर बहुजनों के हितैषी और संविधान के रक्षक कहलाते हैं।
किसी भी नेता ने इस प्रस्ताव के समय इसके लागू होने के तरीकों पर ज़रा भी संदेह नहीं जताया और ना ही ऐसे प्रयासों को रोकने का जोखिम उठाया, जबकि वह जानते हैं कि इसके लिए संविधान को तोड़-मरोड़ कर ही पेश किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में साफ किया था कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या इनके अलावा किसी भी अन्य विशेष श्रेणी में दिए जाने वाले आरक्षण का कुल आंकड़ा 50% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में देश में पिछड़े नागरिकों को आरक्षण देने का ज़िक्र है।
उल्लेखनीय है कि जब पीवी नरसिंह राव सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का फैसला किया था तब सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज करते हुए साफ-साफ कहा कि गरीबी आरक्षण का आधार नहीं है।
सामान्य वर्ग के 8 लाखिया गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण देकर संविधान की धज्जियां उड़ ही रही थी कि तभी विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर के तहत पिछड़ों, दलितों और वंचितों के लिए विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने का रास्ता बंद कर दिया गया। अर्थात हम कह सकते हैं कि एक तरफ सवर्णों को तो आरक्षण दिया गया और दूसरी ओर वंचितों के आरक्षण की बली चढ़ाई गई।
13 प्वाइंट रोस्टर (आरक्षण का दमन)
देश के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग को आरक्षण देने के लिए नए नियम ‘13 प्वाइंट रोस्टर’ लागू करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सही ठहराया गया।
विश्वविद्यालयों में नौकरियों के लिए विज्ञापन नहीं निकलते हैं। ऐसे में ’13 प्वाइंट रोस्टर’ के हिसाब से विज्ञापन आने पर अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों की नियुक्ति संभव नहीं है क्योंकि इस रोस्टर के दायरे में वे कभी आ ही नहीं सकते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि विश्वविद्यालयो में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए ‘200 प्वाइंट रोस्टर’ के तहत आरक्षण की व्यवस्था थी। इस व्यवस्था के तहत विश्वविद्यालय को एक यूनिट माना जाता था, जिसके तहत 1 से 200 पद के लिए 49.5 फीसदी आरक्षित वर्ग और 50.5 फीसदी अनारक्षित वर्ग के हिसाब से भर्ती की व्यवस्था की गई थी।
यूनिवर्सिटी को एक यूनिट मानने से सभी वर्ग के उम्मीदवारों की भागिदारी सुनिश्चित हो पाती थी लेकिन ’13 प्वाइंट रोस्टर’ के तहत विश्वविद्यालय को यूनिट मानने के बजाय विभाग को यूनिट माना गया।
इसके तहत पहला, दूसरा और तीसरा पद सामान्य वर्ग के लिए रखा गया है। जबकि चौथा पद ओबीसी कैटेगरी के लिए, पांचवां और छठा पद सामान्य वर्ग के लिए रखा गया है।
इसके बाद 7वां पद अनुसूचित जाति के लिए, 8वां पद ओबीसी, फिर 9वां, 10वां और 11वां पद सामान्य वर्ग के लिए रख गया है। वहीं, 12वां पद ओबीसी के लिए, 13वां फिर सामान्य के लिए और 14वां पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होगा।
अतः इस स्थिति में आदिवासी छात्रों के लिए कभी मौका ही नहीं मिल पाएगा क्योंकि किसी भी विभाग में इतने पैमाने पर नौकरियों के लिए अधिसूचना जारी नहीं होती है। 14वां नंबर तक आते-आते अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण निष्क्रिय हो जाता है।
अपील
हमारा विरोध भाजपा व कांँग्रेस दोनों से है क्योंकि मैं इसे एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में देखता हूं। हालांकि हमारा प्राथमिक उद्देश्य भाजपा को धूल चटाना है क्योंकि वे आरएसएस के दिशा निर्देश पर चल रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि वे फासीवादी प्रवृत्ति के हैं।
भाजपा व काँग्रेस दोनों ने हमेशा ही चुनावी फायदों के लिए सांप्रदायिक तौर-तरीके को अपनाया है। मैं तमाम बहुजनों से इतना ही कहूंगा एक ऐसे भारत का ख्याल बनाए रखें जो सभी भारतीयों का हो जिसमें यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे अधिकार सुरक्षित रहें।