माननीय एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर का मानना है कि महिलाएं नौकरी नहीं करना चाहती हैं। लिहाज़ा इसका असर रोज़गार के आंकड़ों पर हो रहा है। लोग शिकायत करते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार में नौकरियों की कमी है लेकिन अगर महिलाएं खुद नौकरी नहीं करना चाहती तो इसमें मोदी सरकार का क्या दोष?
जावेड़कर जी का बयान कहां तक जायज़ है उसे समझने के लिए आंकड़ों के साथ-साथ सामाजिक परिपेक्ष को समझना होगा। समाज में औरतों के नौकरी ना कर पाने के पीछे कई कारण हैं और सबसे पहला कारण उनका घर है और उनके सगे संबंधियों का इसपर ऐतराज़ करना सभी कारणों में मुख्य कारण है।
अगर हम सभी कारणों की विवेचना करें तो मंत्री महोदय का बयान हमें परेशान करेगा क्योंंकि वह सामाजिक वास्तविकता से अपरिचित से लगते हैं।
2018 में सबसे ज़्यादा महिलाओं को गंवानी पड़ी नौकरी
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के हाल में हुए सर्वे के मुताबिक 2018 में 1.10 करोड़ भारतीयों को नौकरी से हाथ गंवाना पड़ा और ज़्यादा तादाद महिलाओं की थी। 1.10 करोड़ में से 88 लाख महिलाएं थीं जिन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। यह आंकड़ा शायद मंत्री जी की नज़र में नहीं आया होगा लेकिन उसके बावजूद जो उन्होंने बाकी बातें की वो निराश करती हैं।
इन सभी आंकड़ों के बीच उनका कहना कि महिलाएं नौकरी का आवेदन भी नहीं देना चाहती हैं और काम करना नहीं चाहती तो हम उन्हें बेरोज़गारों के आंकड़ों में क्यों जगह दें? असल बात यह है कि जब पुरुष किसी भी नौकरी के लिए आवेदन पत्र डालता है तो उसे किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं होती और इसके विपरित एक महिला को पूरे घर के पुरुषों की इजाज़त चाहिए होती है। उसके ऊपर समाज में वह कैसे दिखेगी और अगर बाहर जाएंगी तो अपनी सुरक्षा कैसे करेगी, इसके अलावा कई कारण होते हैं जो उन्हें बेरोज़गार बनने में मजबूर करते हैं।
पुरुष हर तरह का काम कर सकता है लेकिन इसके मुकाबले महिलाओं के लिए कुछ ही काम हैं, ऊपर से उन्हें घर के काम भी करने होते हैं। महिलाओं को अपना काम चुनने की आज़ादी नहीं है और अपने मनपसंद काम करने की तो बिल्कुल नहीं।
आंकड़ों और सभी कारणों के बीच सबसे ज़रूरी बात यह भी है कि महिलाओं का घरेलू काम करना अर्थव्यवस्था का हिस्सा नहीं बनता और उसपर मंत्री महोदय महिलाओं की भागीदारी पर सवाल उठाते हैं। महिलाओं को घर के काम और बाहर के काम दोनों करने पड़ते हैं क्योंंकि उन्हें चुनने की आज़ादी आपका समाज और व्यवस्था दोनों नहीं दे रही है। आप पहले व्यवस्था व समाज का नज़रिया तो बदलिए फिर देखिए आपको अपने आंकड़ों की फिक्र नहीं करनी होगी और कोई आपकी सरकार पर सवाल भी नहीं उठाएगा।