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भारत में एक बच्चा उसके पिता की ज़िम्मेदारी क्यों नहीं है?

अभी पिछले दिनों मेरे परिवार के सभी लोग मिले थे। जब सभी मिलते हैं तो दुनिया भर की बातें होती हैं। उन्हीं बातों में यह बात यह भी निकल के आई की फलां व्यक्ति के घर गया तो वो किचन में बर्तन साफ कर रहा था और उसकी बीवी टीवी देख रही थी। पूरे परिवार वालो ने उस व्यक्ति को अलग अलग संज्ञाएं दी।

तभी बात निकलकर आई मेरे लिए लड़की ढूंढने की। घरवालों ने साफ मना कर दिया कि नौकरी करने वाली लड़की से शादी नहीं करवाएंगे। मैंने कहा अच्छी बात है ना नौकरी होगी। तभी मेरे एक रिश्तेदार ने कहा, क्यों तू भी फलां व्यक्ति की तरह बर्तन साफ करेगा? मैंने कहा मैं तो अभी भी घर के बाहर ही रहता हूं तो करता ही हूं बाद में भी कर लूंगा इसमें क्या है? तभी सारे लोग मेरी माँ को कोसने लगें, मेरे विचारो पर सवाल खड़ा करने लगें, मेरी पढ़ाई लिखाई को दोष दिया गया और कहा गया कि यह लड़का समाज में नाक कटवाएगा।

अब इसमें नाक कटने जैसा क्या था वो मुझे समझ नहीं आया पर मैं एक बात दावे से कह सकता हूं कि घर वालों की उपरोक्त बातों का अगर आपने मेरी तरह जवाब दिया होगा तो उन्होंने आपको भी यही सब कहा होगा। क्योंकि हमारे समाज में सब कुछ पहले से तय है। किसको क्या करना है वो अगर उस से हट कर कुछ करता है तो समाज में नाक कटवाता है।

आज भी कई पुरुष अपने परिवार वालों के सामने अपने छोटे बच्चों को प्यार नहीं करते हैं उनके साथ नहीं खेलतें। इसके पीछे का गणित मैं आज तक नहीं समझ पाया पर शायद यह भी उसी रूढिवादी सोच का हिस्सा है कि बच्चों का लालन-पालन करना सिर्फ और सिर्फ उसकी माँ की ज़िम्मेदारी है। अगर बच्चा बिगड़े तो भी सारी ज़िम्मेदारी उसकी माँ की ही होगी और इसी रीती को आगे बढ़ाते हुए देश का कानून भी सिर्फ माँ को ही नवजात होने पर मातृत्व लाभ के नाम पर कुछ हफ्तों के लिए छुट्टी देता है। पिता के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि सरकार भी शायद यही मानती है कि बच्चे संभालना पिता की ज़िम्मेदारी नहीं है।

इस मान्यता को तोड़ते हुए सांसद राजीव सतव ने संसद में 21 जुलाई 2017 को एक प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आये जिसमें एक पिता को भी अधिकतम दो बच्चों के लिए 15 दिन का पितृत्व अवकाश दिए जाने का प्रावधान है।

दुनिया में पितृत्व अवकाश

एक बच्चे को शुरुआत से पिता से दूर रखा जाता है। कभी किसी रूढी के कारण तो कभी काम की मजबूरी के कारण, माँ हमेशा एक बच्चे में अपने पिता का खौफ भरती है, उसे पिता के नाम से डराती है और बच्चे डरते भी हैं क्योंकि शुरू से उनमें एक बॉन्ड नहीं बन पाता है। इसी कारण बच्चों को कई बार मानसिक तनाव का सामना भी करना पड़ता है। एक बच्चा की बड़ा होने के बाद अपने पिता से सहज नहीं हो पाता क्योंकि वो शुरू से अपने पिता के प्यार से महरूम रह जाता है।

इन सभी रूढीवादी विचारों को और उन्हीं के आधार पर स्थापित कानूनों को बदलने की आवश्यकता है। जिसका काम जिसी को सांझे इस मुहावरे की मुझे लगता है अब कोई ज़रूरत नहीं रह गई है। पहले के संयुक्त परिवारो में तो एक बारगी फिर भी पिता के ना होने पर भी बच्चे की देखभाल अच्छे से हो जाया करती थी पर आज ऐसा मुश्किल है। औरतों और मर्दों के कामों को जो बांटा गया है उसे भी खत्म किया जा सकेगा और पिता-बच्चों के बीच भी एक रिश्ता कायम हो पाएगा।


नोट- अन्सार YKA के जनवरी-मार्च 2019 बैच के इंटर्न हैं।

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