जिस रफ्तार से चुनावी महीना आने को व्याकुल है, यह तय है कि सियासी पारा उसी रफ्तार से चढ़ता जायेगा। लोकसभा चुनाव हेतु हर दल को विचलित कर देने वाली सियासी बेचैनी देश के बेसिक मुद्दों को दिशाहीन करते हुए नए-नए धार्मिक शिगूफों में मंत्रमुग्ध करते हुए कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
सत्ता किधर जाएगी यह किसानों, बेरोज़गारी के विभिन्न मुद्दों की जगह आरोप-प्रत्यारोप से लेकर चुनाव प्रबंधन हेतु गठित विभिन्न दलों के रणनीतिकार तय करने की कोशिश करेंगे। कुछ भी हो सत्तासुख ना तो प्योर कॉंग्रेस को मिलेगा, ना ही प्योर भाजपा को। समय का चक्र फिर एक बार केंद्र की सत्ता को 1997 युग में ला खड़ा करने वाला है। अर्थात संभावनाएं कई होंगी, जिनका ज़िक्र भविष्य की राजनीतिक उठापटक से लेकर सत्तासीन होने की धूमिल तस्वीर को साफकर 1997 के दौर से रूबरू करना है।
संभावना-1, मोदी से बैर सत्ता की सैर
मौजूदा परिस्थिति ने यह साफ कर दिया है कि मोदी-शाह की जोड़ी जितनी शक्तिशाली प्रधानमंत्री मोदी के लिए रही है, उतनी ही कमज़ोर कड़ी भाजपा के लिए बनती जा रही है। यानी मोदी के इर्द-गिर्द घूमती भाजपा धीरे-धीरे उनके चेहरे पर केंद्रीकृत होती गई।
परिणामस्वरूप, गडकरी जैसे कद ने विरोध की आवाज़ बुलंद करना आरम्भ कर दिया। यह अलग बात है कि उनका विरोध यशवंत सिन्हा से ज़रा जुदा जुदा है। गडकरी का यूं अचानक एक के बाद एक लगातार बयान देना संघ का आशीर्वाद भी दिलवा सकता है या दिलवा चूका भी हो। वह भी तब जब भाजपा कुल 160 के आसपास जाती दिखाई दे रही है, जो बुआ-बबुआ गठबंधन होने से तय है कि UP भाजपा के हाथ से निकल सकता है।
अतः 272 के जादुई आंकड़ें तक पहुंचने के लिए कहीं ना कहीं मोदी के चेहरे में भाजपा को बाहर निकलना होगा और गडकरी जैसे चेहरे पर दांव खेलना होगा, जिन्हें गैर भाजपा दलों से अच्छे ताल्लुकात का इनाम आशीर्वाद स्वरूप आसानी से मिल जायेगा।
संभावना-2, सत्ता पाने का सहारा नए मनमोहन सिंह का आसरा
कॉंग्रेस को भी मालूम है कि 2019 में अपने बूते भाजपा को रोक नहीं सकती यानी 2024 के लिए दीर्घावधि योजना बना रही है। कॉंग्रेस का पूरा ज़ोर 2004 की सोनिया गांधी बनते हुए किसी नए मनमोहन सिंह के सहारे सत्ता गैर भाजपाई सरकार का गठन करने पर होगा।
यह अलग बात है कि नए मनमोहन सिंह भीतर यानी कॉंग्रेस से या बाहर यानी सहयोगियों के दलों से होंगे। अर्थात स्पष्ट है कि नए मनमोहन सिंह प्रथम परिवार को चुनौती ना देते हुए UPA की आधारशिला 2019 में रखेंगे।
संभावना-3, 1997 काल की पुनरावृत्ति अर्थात फेडरल फ्रंट का दौर
यदि भाजपा कॉंग्रेस 300 के नीचे रहती है, तब इन दोनों में से किसी एक की दया पर क्षेत्रीय दलों से प्रधानमंत्री मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। इन संभावनाओं को बल मिलता है बुआ बबुआ की साझा प्रेसवार्ता से, जिसमें कॉंग्रेस पर हमले तो मायावती ने किये लेकिन अखिलेश कॉंग्रेस का ज़िक्र करने से बचते नज़र आएं।
अक्सर ममता बनर्जी कॉंग्रेस पर हमले बोलती रहीं लेकिन 2019 जैसे-जैसे करीब आया वह संभलती गईं। शरद पवार भी पीछे नहीं हैं तो वहीं दक्षिण के क्षेत्रीय दल 1997 के देवगौड़ा काल की आस में टकटकी लगाए अवसर भुनाने की कोशिश में हैं।