राजधानी दिल्ली में साल 2011 में पहली दफा मेरा आना हुआ। इससे पहले मेरे लिए भी दिल्ली महज़ एक कल्पना का शहर ही था, जिसके बारे में अलग-अलग छवि दिमाग में उत्पन्न होती थी। बहरहाल, पत्रकारिता की पढ़ाई के सिलसिले से जब कई दफा झारखंड से दिल्ली और दिल्ली से झारखंड आना-जाना होने लगा, तब मेरे कुछ बेहद ही खास मित्र मुझसे घरेलू कामगार महिलाओं के बारे में अश्लील मज़ाक करने लगे।
इस दौरान मैं अपने एक कज़न के घर पर रहकर पढ़ाई करता था, तो किराए पर कमरा लेने और घरेलू कामगार महिला को काम पर रखने की कोई बात ही नहीं थी। धीरे-धीरे वक्त गुज़रता गया और मैंने साल 2014 में पत्रकारिता में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया। अब मैं दिल्ली के मयूर विहार फेज़-3 में कमरा लेकर रहने लग गया।
उधर, झारखंड में मेरे दोस्तों को भनक लग गई कि प्रिंस अब दिल्ली में कमरा लेकर रहने लगा है। यहीं से शुरू हुई मेरी खिंचाई की कहानी, जहां लगभग हर दिन मेरे कुछ खास मित्र मुझे फोन करके पूछते रहते थे कि भाई बताओ ना काम वाली बाई रखा क्या? कैसी दिखती है? टनाक माल है ना?
इन चीज़ों को सुनकर मैं हैरान तो होता ही था लेकिन यह बात समझ नहीं आती थी कि आखिर घरेलू कामगारों के बारे में मेरे मित्र या उनके जैसे और भी लोग ऐसी राय क्यों रखते हैं? बहरहाल, इस दौरान मैं छुट्टियों में घर आया तब मेरे वही मित्र शाम को चाय पीने के बहाने मुझे बड़े विस्तार से बताते थे, “अरे बुड़बकहा, देखो तुम्हारे कमरे में काम वाली बाई को रख लो। उन्हें पैसों की बहुत ज़रूरत होती है और बड़ी आसानी से वह सेक्स करने दे देगी।”
खैर, कुछ माह बाद मैंने कॉलेज की व्यस्तताओं की वजह से मयूर विहार फेज़ 3 में खाना पकाने के लिए सुधा (बदला हुआ नाम) नामक लड़की को रख लिया। वह रोज़ सुबह आकर खाना बनाती और घर चली जाती थी। इसी बीच मेरा एक मित्र झारखंड से मेरे कमरे पर आया और कुछ रोज़ ठहरा ताकि दिल्ली घूम सके।
वह जैसे ही आया मुझपर तंज कसते हुए कहने लगा कि वाह बेटे अकेले-अकेले मज़े लो। हमको खाली झूठ बोलते थे कि काम वाली बाई नहीं है, तो ई का है? इस बीच मैं एक रोज़ कॉलेज गया हुआ था और मेरा मित्र कमरे में अकेला था। उसने सुधा के साथ शारीरिक संपर्क बनाने की सारी तैयारियां कर रखी थी, जिसकी भनक तक मुझे नहीं थी, क्योंकि मेरे रूम पार्टनर की वजह से शायद मेरे मित्र ने यह बात मुझे नहीं बताई थी।
देर शाम जब मैं घर आया तब हर रोज़ की तरह किचन में कुछ खाने की चीज़ तलाश रहा था लेकिन वहां कुछ भी नहीं था। मेरे रूम पार्टनर ने मुझसे कहा कि भाई बवाल हो गया। मेरे द्वारा पूछे जाने पर उसने सारी बात बताई। उसने कहा कि मेरे मित्र ने बगैर सुधा से पूछे उसके लिए ब्रा लाई थी जिस वजह से नाराज़ होकर उसने काम छोड़ दिया।
इन चीज़ों के बाद मित्र जो पहले से ही लज्जित था, उसे मैं और क्या ही बोलता लेकिन मुझे घबराहट हो रही थी कि मामला आगे ना बढ़ा जाए, क्योंकि मुझे अंदाज़ा था जो हरकत उसने की थी वह गलत है। कुछ दिनों बाद दोस्त भी चला गया और एक मीडिया हाउस में नौकरी लगते ही मैं निर्माण विहार शिफ्ट हो गया। वहां भी कई दफा जब कुछ जानकार लोगों से मेरी बात होती, तब सभी आपस में मस्ती करते हुए यही कहते थे, “अरे दिल्ली में घरों पर काम करने वाली महिलाएं जितना मज़ा देती हैं उतना तो जन्नत में भी नहीं है। काम करने वाली महिला को रात में बुलाओ और दबा के लो।”
वक्त गुज़रता गया लेकिन इस संदर्भ में लोगों की मानसिकता नहीं बदली। अभी हाल ही की बात है जब दिल्ली के दल्लूपुरा स्थित मेरे किराए के मकान में मैंने एक घरेलू कामगार महिला को रखा जिसने कई ऐसी बातें बताई जो कड़वे सच को बयान करती हैं।
पहले दिन जब वह मेरे किराए के मकान पर आई तब साफ शब्दों में कह दिया कि भाई मैं रात को नहीं आऊंगी क्योंकि लोग गलत सोचते हैं। मैंने उनसे पूछा, “अच्छा, ऐसा क्यों?” फिर उन्होंने बताना शुरू किया कि ज़्यादातर लोग उन्हें अकेला देखकर छेड़ने की कोशिश करते हैं।
इस वक्त जो मेरे यहां खाना पकाने का काम करती हैं उनका नाम रेखा है। वह जब भी मेरे यहां आती हैं तब उनके साथ उनका 6 साल का छोटा बेटा भी होता है, जो चुपचाप अपनी माँ को देखता रहता है। हालातों को देखकर छोटी सी उम्र में ही उसने अपनी समझ विकसित कर ली है।
बहरहाल, इस विषय में अगर 10 लोगों से मेरी बात हुई होगी तब 9 लोगों का यही कहना था कि घरेलू कामगार महिलाओं को बड़ी आसानी से शारीरिक संपर्क बनाने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
गौरतलब है कि मौजूदा वक्त में घरेलू कामगार महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। कोठियों, घरों और दफ्तरों में काम करने वाली इन महिलाओं को नौकरी से निकाले जाने का डर हर वक्त सताते रहता है। हमने इनके लिए एक ऐसा वर्किंग स्पेस क्रिएट किया है, जहां ना तो इन्हें छुट्टियां लेने की आज़ादी है और ना ही पैसों में वृद्धि का कोई बेहतर ऑप्शन।
इन परेशानियों के बीच घरेलू कामगार महिलाओं के लिए असुरक्षित माहौल भी चिंंता की बड़ी वजह है। कई दफा जब कोठियों में काम करने के दौरान उनके साथ सेक्सुअल हैरासमेंट जैसी चीज़ें होती हैं तब काम से निकाल देने के डर से वह चुप्पी साध लेती हैं।
ऐसे में उचित कानून के ज़रिए इन चीज़ों पर लगाम लगाने की ज़रूरत है ताकि घरेलू कामगार महिलाओं को भी अन्य कामगारों की तरह बेहतर वातावरण मिले।