घरेलू हिंसा, यौन शोषण, कन्या भ्रूण हत्या, रेप, एसिड अटैक- ये पढ़ने के बाद क्या आपके दिमाग में एक क्षण के लिए भी ये आया कि महिलाएं जिनके साथ ये घटनाएं हुईं वो किस धर्म से थी? शायद नहीं। क्योंकि इस देश में उक्त घटनाओं के लिए महिला होना काफी है। लेकिन अब ये देश डर गया है। दुर्व्यवहार करते वक्त उन्हें नहीं पता था कि जब ये सारी महिलाएं एक साथ आवाज़ उठाएंगी तो उस वक्त उनका एक ही कौम होगा- महिला होना।
डर गया यह देश महिलाओं की एकता देखकर, डर गया यह समाज उन आंखों को देखकर जो लगातार एक टक से उन्हें घूर रही हैं, जवाब मांग रही हैं उन सारे अत्याचारों का, असमानता का। फिर इस समाज ने महिलाओं को बांटना शुरू किया- धर्म, जाति, अमीर-गरीब और सुंदर-कुरूप में, हम महिलाएं बंट भी गयीं। सवाल उठता है कि मैं ये बात अभी क्यों कर रही हूं? हाल में तो कुछ ऐसी घटना भी नहीं हुई है कि एक महिला का खून खौल जाए और वो महिला के समर्थन में लिखे।
केरल में महिलाओं ने सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के अपने हक और समानता के अधिकार के लिए मंगलवार को राज्य में 620 किलोमीटर लंबी महिला दीवार (ह्यूमन चेन) बनाई। इस महिला दीवार को बनाने के लिए 35 लाख महिलाओं ने हिस्सा लिया। यहां हम जिस हक और समानता की बात कर रहे हैं वो है एक महिला के मंदिर में प्रवेश करना। मैं एक महिला के मंदिर में प्रवेश करने के खिलाफ नहीं हूं, मैं हूं एक महिला को धर्म के नाम पर बांटने के खिलाफ।
मुझे महिलाओं के ऐसे ही गुस्से, ऐसी ही विशाल समूह की आशा थी जब केरल में एक नन के साथ बिशप फ्रांको मुलक्कल ने दुष्कर्म किया। 620 किलोमीटर लम्बी दीवार का हिस्सा देश की कई बड़ी हस्तियां थी, राजनेता थे, आम महिलाएं थी। तो क्या मैं ये समझूं कि इस देश की महिलाओं के लिए समानता की लड़ाई धर्म से शुरू होती है और मंदिर में प्रवेश करने तक खत्म हो जाती है? क्या इस देश की महिलाओं के लिए समानता की लड़ाई एक नन को इंसाफ दिलाना नहीं हो सकता? या उस नन को भी समानता की लड़ाई लड़ने के लिए हिंदू होना होगा?
लॉ की विद्यार्थी ज़िशा की हत्या, मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की एक अभिनेत्री के साथ यौन शोषण, 9 साल की बच्ची का रेप के बाद हत्या-क्या इन घटनाओं पर भी हम महिलाओं का इतना ही बड़ा समूह नहीं जुटना चाहिए था? क्या सिर्फ धर्म के लिए समानता की दीवार बननी चाहिए? या यूं कहें कि जब ये सारी घटनाएं हो रही थी तो 2019 दूर था?
हम अभी पूरी तरह नहीं बंटे हैं, हिस्सों में बांटी जा रहीं हैं इस देश की महिलाएं। रंग-रूप के नाम पर हम बांटे जा चुके हैं, अभी धर्म की बारी है। और चुनाव भी काफी नज़दीक है। लेकिन जो लोग बंटवारा कर रहे हैं, काफी धूर्त हैं। चुनाव से पहले अगर महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहा है तो वो बस एक महिला है। चुनाव के आस-पास अगर एक महिला पर अत्याचार हो रहा है तो वो विरोध का नया विषय है।
अब तय हमें करना है कि हमें इंसान होना है या विषय, वस्तु की संज्ञा तो यह देश हमें देता ही है। चुनाव हमें करना होगा कि हमें हक चाहिए या बहलावा, हमें विषय बनना है या मिसाल।