बिज़नेस स्टैंडर्ड अखबार ने नैशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के एक डेटा को सार्वजनिक किया है जिसमें बताया गया है कि 2017-18 में देश का बेरोज़गारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज़्यादा 6.1% का था। इस रिपोर्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया था। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSSO) की समीक्षा के बाद भी इस रिपोर्ट को सरकार द्वारा जारी नहीं किया गया है।
यह बेरोज़गारी दर 1972-72 के बाद सबसे ज़्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार शहरी इलाकों में बेरोज़गारी दर 7.8% जबकी ग्रामीण इलाकों में 5.3% रहा। रिपोर्ट में युवाओं के बीच बेरोज़गारी दर को हतप्रभ करने वाला बताया गया है।
ये आंकड़ें इसलिए भी परेशानी का सबब हैं क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था तो हर साल 7% की दर से बढ़ रही है लेकिन साथ ही बेरोज़गारी दर भी बढ़ती जा रही है। इसका मतलब यह है कि बढ़ती अर्थव्यवस्था सबके लिए समान नहीं है और इसमें हर साल देश के वर्कफोर्स में शामिल हो रहे लाखों युवाओं के लिए नौकरी नहीं है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि यह आंकड़े इसलिए भी मायने रखते हैं क्योंकि 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले के बाद रोज़गार की स्थिति की पड़ताल करने वाला यह पहला सर्वेक्षण है। ILO की एक रिपोर्ट की माने तो 2019 में देश में लगभग 18.9 मिलियन बेरोज़गार युवा होंगे।
इसी बीच NSSO के दो गैर सरकारी सदस्यों PC मोहन और JV मिनाक्षी ने सरकार पर यह आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया कि उनके बार-बार कहने पर भी सरकार यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर रही थी और उन्हें हर वक्त साइडलाइन किया जा रहा था।
बचाव में सरकार का कहना है कि यह रिपोर्ट कब सार्वजनिक करनी है यह सरकार का अधिकार क्षेत्र है। देखना होगा कि इस रिपोर्ट का आने वाले चुनावों पर क्या असर होगा क्योंकि 2014 के चुनावी वादों में प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बड़ा वादा हर साल युवाओं को नौकरी देने का भी था।