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बेटों को बिहेव करना सिखाइये, बेटियों को बाहर जाने से रोकना नहीं पड़ेगा

बाज़ार जाती लड़कियां

बाज़ार जाती लड़कियां

समाज में बढ़ रहे महिलाओं पर अत्याचार और शोषण को रोकने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। यह केवल ऐसे मामलों की रोकथाम का एक तरीका मात्र हो सकता है लेकिन समाज सुधार एवं नारी सम्मान का प्रतीक नहीं है।

इस सुधार के लिए सबसे पहले बच्चों की परवरिश पर ध्यान देने की ज़रूरत है। माँ-बाप द्वारा सिखाया एवं समझाया गया कोई भी सबक बच्चों के लिए प्रारंभिक ज्ञान होता है। यहीं से संतान के सीखने और समझने की शुरुआत होती है।

लड़कों को यह समझाया जाए कि लड़की या नारी ‘सम्मान’ और ‘प्रशंसा’ की उतनी ही हकदार हैं, जितने कि तुम हो। इनके साथ किया गया कोई भी ज़ुल्म अच्छी बात नहीं है।

आज समाज में ऐसी बातें आम हैं जिसमें लड़कियों को लड़कों के बराबर नहीं समझा जाता है। ऐसे बहुत से मामले या उदहारण हमें मिलते हैं जब एक लड़की अपने पिता से पूछती है कि कुछ दोस्त बुला रहे हैं, क्या मैं बाहर जाऊं? इतने में ही उसका भाई आता है और कहता है कि पापा मैं दोस्त के घर जा रहा हूं, रात में वहीं रुकूंगा। इसके बाद पापा का जवाब तो सबको पता ही होता है।

सवाल लड़कियों से ही क्यों?

लड़कियां जब अपने घर की दहलीज़ से बाहर कदम रखती हैं तब उनसे कई सवाल किए जाते हैं। उनसे कहा जाता है कि अकेले बाहर मत जाओ, कुछ ऊंच-नीच हो गई तो? यह भी कहा जाता है कि अभी ही क्यों जाना है? यहां तक कह दिया जाता है कि अगर ऊंच-नीच हो गई तब तुमसे शादी कौन करेगा?

आखिर कोई भी अपने बेटों से सवाल क्यों नहीं करता? अगर हम बेटियों को घरों से बाहर जाने से मना करने के अलावा बेटों को सही शिक्षा देना शुरू करेंगे तब किसी भी बेटी को बाहर जाने से रोकना नहीं पड़ेगा।

हां, अगर बेटियों की जगह बेटों से पूछा गया होता कि रात को बाहर जाकर क्या करते हो? यह सवाल अगर सभी लड़कों से होने लगे तब वाकई में हमारी घटिया सोच बदलने में बिल्कुल समय नहीं लगेगा।

महिलाओं का सम्मान है आवश्यक

मौजूदा हालात को देखते और समझते हुए हर माँ-बाप को अपने लड़कों से सवाल करना ज़रूरी है। इससे भी ज़्यादा आदर्श स्थिति यह है कि माता-पिता अपने बेटे-बेटियों दोनों से ही उनके कामों के लिए सवाल करें। लड़कियों पर बढ़ते अत्याचार की संख्या को देखते हुए तो यही लगता है कि लड़कों के व्यवहार के लिए सवाल किया जाना बेहद ज़रूरी है।

इस संदर्भ में समानता बहुत आवश्यक है जिसके ज़रिए लड़के और लड़कियों दोनों पर विश्वास करना ज़रूरी है। अपनी बेटियों पर भी उतना ही विश्वास करना चाहिए जितना कि बेटों पर करते हैं।

इसके बाद बहुत हद तक मुमकिन है कि समाज के ताने-बाने में एक महिला और लड़की को सम्मान और आदर भाव से देखा जाए। हां, अगर ऐसे हालात होने के बाद भी समाज में महिलाओं के शोषण और अत्याचार के आंकड़ों में वृद्धि होती है, फिर सरकार और प्रशासन का निकम्मापन ही है क्योंकि लोकतंत्र हो या राजतंत्र दोनों में ही महिलाओं का सम्मान आवश्यक है।

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