लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। पिछली लोकसभा जब चुनी गई थी तब भारत सबसे युवा देश था, जो आज भी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने भाषण में भी यह उल्लेख कर चुके हैं कि 2019 में दो करोड़ से ज़्यादा मतदाता मत देंगे। यह वे मतदाता होंगे जिनका जन्म 21वीं सदी में हुआ है।
पिछली लोकसभा चुनाव में भाजपा की इतनी बड़ी जीत के पीछे उनकी तरफ युवाओं का झुकाव भी एक बड़ा कारण था। रोज़गार के विकास की बाट जोहता देश का युवा वर्ग चुनाव में मतदान के वक्त अपनी किस प्राथमिकता पर वोट समर्पित करेगा, यह राजनीतिक दलों के लिए यक्ष प्रश्न सरीखा है।
एक श्रेणी के रूप में युवा होने की न्यूनतम परिभाषा पर किसी की आम राय नहीं बन पाती है, इसलिए इसका निर्धारण आसान नहीं है कि किसको युवा मतदाता कहा जाए। अगर हम पहली बार मतदान में हिस्सा लेने वाले मतदाता को युवा मान कर चलेंगे तब उनकी जनसंख्या ही पिछले दो लोकसभा चुनावों के आकड़ों के हिसाब से कमोबेश करोड़ के आस-पास होनी ही चाहिए।
युवा मतदाताओं का रूझान किस ओर?
सवाल यह है कि 2019 में चुनी जाने वाली 17वीं लोकसभा चुनाव में युवा वोटरों का मतदान किस करवट बैठेगा? युवा मतदाताओं के बारे में अपनी चिंताएं भी हैं, मसलन, एक तो युवा मतदाता कम वोट करते हैं, दूसरा वह राज्य विधानसभाओं और लोकसभा में कम चुने जाते हैं और तीसरी बात यह है कि वह मतदान के समय विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच विभाजित रहते हैं। युवा मतदाता का मत भी उसी प्रकार बंटा हुआ है, जैसे दूसरे वर्ग के मतदाताओं का बंटा हुआ है।
पकौड़ा तलने को रोज़गार मानना और एससी/एसटी कानून पर मौजूदा सरकार के यथास्थिति पर युवा मतदाता का एक बड़ा समूह हाल के विधानसभा चुनावों में अपनी प्रतिक्रिया दे चुका है।
रोज़गार सृजन में बैकफुट पर सरकार
मौजूदा चुनाव में यह बात अधिक महत्त्वपूर्ण है कि सरकार युवाओं के लिए रोज़गार सृजन के मामलें में बैकफुट पर है। स्किल इंडिया, स्टार्ट-अप और मुद्रा जैसी योजनाएं रोज़गार सृजन में विफल रही हैं और शिक्षा के क्षेत्र में बजट कट ने भी युवाओं को निराश किया है। वहीं, खेल जगत में युवा खिलाड़ियों के प्रदर्शन ने उत्साहित भी किया है।
रोज़गार का सवाल युवाओं के लिए वह सवाल है जिसका जवाब देने में सरकार घबराई हुई है। युवाओं के वोट को राजनीतिक श्रेणी मानते हुए ही सरकार ने 2019 के शुरूआत में ही पहले आर्थिक रूप से पिछड़े अगड़ों को दस फीसदी आरक्षण के लिए संवैधानिक बदलाव और तीन साल पहले जेएनयू घटना के बहाने फिर से देशभक्त और देशद्रोही के विमर्श पर युवा मतदाताओं में अलगाव की रेखा खीचने की कोशिश कर रही है।
खैर, मौजूदा सरकार के दौरान तमाम विश्वविधालयों में जहां छात्र संघ के चुनाव होते हैं या नहीं भी होते हैं, वहां के छात्र राष्ट्रीय मंचों पर अपनी आवाज़ मुखरता से अभिव्यक्त करते रहे हैं। शिक्षा बजट में कटौती के साथ–साथ रोज़गार सृर्जन के परिक्षाओं में धांधली के सवाल पर भी छात्रों का प्रतिरोध मुखर रूप से अभिव्यक्त हुआ है। इन चेतनाशील युवा मतदाताओं का वोट मौजूदा सरकार के पक्ष में या विपक्ष में जाएगा इसका अनुमान लगाना अंधेरे में तीर मारने के समान है। परंतु, इन अभिव्यक्तियों ने युवा मतदाताओं के बड़े समूह को सोचने–समझने पर मजबूर ज़रूर किया है।
युवाओं को लामबंद करने की कोशिश
चुनाव आयोग के अनुसार वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के समय देश में पात्र मतदाताओं की संख्या 81.45 करोड़ थी, जबकि इसके पहले 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में यह संख्या 71.4 करोड़ थी।
चुनाव आयोग के मुताबिक 10 फरवरी तक तकरीबन 1.38 करोड़ के आस-पास पहली बार मतदान करने वाले नए मतदाता पंजीयन करवा सकते हैं। आंकड़े यही बता रहे हैं कि भारत के राजनीतिक भविष्य के चुनाव में युवाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण है क्योंकि रिकार्ड बेरोज़गारी के दौर में उनका भविष्य भी इससे जुड़ा हुआ है।
मौजूदा राजनीति को देखकर अब इस बात में कोई संशय नहीं है कि युवाओं की भूमिका को कोई भी राजनीतिक दल नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है। युवा जिस भी दल की तरफ रूझान प्रदर्शित करेंगे, निश्चित ही उस दल को फायदा पहुंचेगा।
कमोबेश हर राजनीतिक दल युवाओं को लामबंद करने की कोशिश करते हैं परंतु शहरी–ग्रामीण, शिक्षित–अक्षित, स्त्री–पुरुष और जाति–धर्म–वर्ग के श्रेणियों में विभाजित युवा वर्ग को अपने हित में लामबंद करना आसान नहीं होता है। हालांकि तमाम राजनीतिक दल कभी लैपटॉप, कभी फ्री वाई–फाई तो कभी शिक्षा वज़ीफा देने का वादा अपने घोषणा पत्र में करती है, जिससे युवा मतदाता उन्हें मतदान करे।
4जी स्पीड इंटरनेट और फेक खबरों का दौर
यह भी ध्यान में रखना ज़रूरी है कि इस साल लोकसभा चुनाव 4जी स्पीड इंटरनेट के साथ होने वाला है और नए युवा मतदाता इंटरनेट पर आने वाली सूचनाओं से प्रभावित होने के साथ–साथ समकक्ष युवा साथियों को प्रभावित भी करेंगे।
4जी स्पीड इंटरनेट आने के बाद भ्रामक जानकारी और फेक खबरों ने सबसे पहले युवाओं को ही भीड़ में तब्दील किया है और असमाजिक गतिविधियों में उनका दोहन भी किया है।
अब हर राजनीतिक दल अपने हक में इसका इस्तेमाल वार रूम से कर रही है जिसके बेदी पर ‘सामाजिक समरसता’ सबसे पहले टांग दी जाती है। ऐसे में युवा मतदाताओं को जागरूक होना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाना महत्त्वपूर्ण है। उन्हें अपने अधिकारों और दायित्वों का एहसास कराना बहुत ज़रूरी है।
इस तरह से हम लोकतंत्र में युवाओं की भागीदारी भी बढ़ा सकते हैं। वोट की शक्ति लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए तमाम मतदान सबसे प्रभावी ज़रिया हैं। इस दायित्व का एहसास युवा और पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं को होना अधिक ज़रूरी है।
नोट: आंकड़े ‘इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया’ की वेबसाइट से लिए गए हैं।