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क्या भाजपा के लिए प्रियंका का तोड़ खोजना मुश्किल होगा?

प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाकर कॉंग्रेस ने उनके लगभग पिछले दस सालों से आधिकारिक तौर पर राजनीति में आने की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लगा दिया है। 23 जनवरी 2019 को कॉंग्रेस द्वारा प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाने की घोषणा की गई। इसे हम राहुल गांधी का मास्टर स्ट्रोक कह सकते हैं। ऐसा नहीं है कि प्रियंका गांधी की यह राजनीति में पैराशूट एंट्री है, प्रियंका ने चुनावों के समय या फिर संगठन के लिए लगातार काम किया है लेकिन कभी आधिकारिक तौर पर सामने से काम नहीं किया।

अब प्रियंका गांधी को आधिकारिक तौर पर राजनीति में उतार कर कॉंग्रेस ने एक बड़ा दांव खेला है। कॉंग्रेस ने प्रियंका गांधी को कॉंग्रेस के लिहाज़ से सबसे कठिन जगह सौंपा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो कॉंग्रेस इस क्षेत्र में लगभग मृतप्राय हो चुकी है। अतः प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश में कॉंग्रेस के लिए फिर से जड़ तलाशने की ज़िम्मेदारी दी गई है।

कॉंग्रेस को पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए प्रियंका गांधी से बेहतर चेहरा नहीं मिल सकता था। कभी कॉंग्रेस का गढ़ रही यह जगह आज भाजपा का एक मज़बूत दुर्ग बन चुकी है। इससे पहले यह सपा का गढ़ माना जाता था, ऐसे में कॉंग्रेस की जड़ों को तलाशना प्रियंका गांधी के लिए काफी कठिन होगा।

फोटो सोर्स- Getty

भारतीय राजनीति के हर दौर में कोई ना कोई करिश्माई नेता रहा है। कॉंग्रेस यह करिश्माई नेता की छवि प्रियंका गांधी में देखती है। सपा बसपा ने गठबंधन के दौरान जिस तरह से कॉंग्रेस को हाशिए पर रखने की कोशिश की और दया के तौर पर जो दो कॉंग्रेस की सीटों पर उम्मीदवार नहीं खड़े करने का फैसला लिया था, उस फैसले ने लगता है कॉंग्रेस को झटका दिया है। इसी कारण कॉंग्रेस ने प्रियंका गांधी को राजनीति में उतारने का निर्णय लिया है।

प्रियंका गांधी के आने से निसंदेह कॉंग्रेस की ताकत बढ़ेगी। कॉंग्रेस शुरू से सवर्णों की पार्टी मानी गई है और प्रियंका गांधी के आने से भाजपा का सवर्ण वोट बैंक भी अब प्रभावित होगा और वह कुछ हद तक कॉंग्रेस की और मुड़ेगा तथा वह ओबीसी या दलित जो सपा-बसपा से उबकर भाजपा को वोट दे रहा है वह भी कॉंग्रेस की तरफ शिफ्ट हो सकता है।

अतः इस परिस्थिति में कॉंग्रेस पहले से मज़बूत होकर चुनाव लड़ेगी। प्रियंका के पूर्वी यूपी में आने से अब सपा-बसपा भी अपने फैसले और रणनीति पर पुनर्विचार करते हुए कॉंग्रेस के साथ गठबंधन के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं। इस स्थिति में कॉंग्रेस के दोनों हाथ में लड्डू हैं।

अब प्रियंका पर भाजपा द्वारा होने वाले संभावित हमलों पर नज़र डालें तो सबसे बड़ा हमला उनके पति रॉबर्ट वाड्रा को लेकर होगा। रॉबर्ट वाड्रा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टियां प्रियंका को घेरने की कोशिश करेंगी लेकिन वर्तमान परिदृश्य में प्रियंका गांधी पर भाजपा का यह दाव कमज़ोर होगा क्योंकि जब केंद्र और राज्य में आपकी सरकारें थीं तो क्यों नहीं जांच कराकर रॉबर्ट वाड्रा को जेल भेज दिए?

भाजपा के लिए प्रियंका का तोड़ खोजना होगा मुश्किल

ऐसी स्थिति में भाजपा को प्रियंका का तोड़ जल्द से जल्द खोजना होगा जोकि अब मुश्किल लग रहा है। इस समय प्रियंका इस स्थिति में हैं कि वह विपक्षियों पर ज़ोरदार हमले बोल सकती हैं।

उड़ती हुई अफवाहों के अनुसार यह कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी को मोदी के खिलाफ बनारस से लड़ाया जाएगा पर मेरी समझ से प्रियंका इतनी भी कच्ची नहीं हैं कि अपनी राजनीति की शुरुआत में ही इतना बड़ा खतरा उठाएं। अगर ऐसा होता है तो प्रियंका के राजनीतिक जीवन पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। इसलिए अभी प्रियंका गांधी को अपने संगठन को मज़बूत करने और पार्टी को जीत दिलाने के लिए रणनीति बनाने पर काम करना चाहिए।

सोनिया की जगह ले सकती हैं प्रियंका

मेरी समझ से प्रियंका गांधी के राजनीति में आने के पीछे एक वजह यह भी हो सकती है कि अब सोनिया गांधी धीरे-धीरे अपनी ज़िम्मेदारी प्रियंका को सौंप रही हों और हो सकता है कि आने वाले समय में प्रियंका रायबरेली का प्रतिनिधित्व करें, जहां से अभी उनकी मां सोनिया गांधी वर्तमान सांसद हैं।

अब हम प्रियंका के आधिकारिक तौर पर राजनीति में उतरने से सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, रेडियो और टीवी मीडिया पर असर देखें तो इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कल ट्विटर के शीर्ष बीस ट्रेंड में 18 प्रियंका गांधी को लेकर ट्वीट्स थे। जहां फेसबुक से लेकर ट्विटर “इंदिरा इज़ बैक”, “कर दो मोदी की लंका दहन, प्रियंका बहन, प्रियंका बहन” जैसे नारों से पटा था, तो वहीं विरोधी भी चुटकियां लेते हुए यह कह रहे थे कि कहीं यह इंदिरा भी तो इमरजेंसी नहीं लगा देगी ना?

यह सारी चीज़ें प्रियंका की लोकप्रियता की कहानी खुद ब खुद कह रही हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रियंका के आने से कॉंग्रेस मज़बूत हुई है और उसकी लोकप्रियता का ग्राफ भी अब धीरे-धीरे बढ़ेगा।

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नोट- आकाश पांडेय YKA के जनवरी-मार्च  2019 बैच के इंटर्न हैं।

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