प्रियंका गाँधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाने के साथ ही राजनीतिक गलियारों में चर्चा का बाज़ार काफी गर्म हो गया है। हालांकि प्रियंका अनाधिकारिक रूप से पहले भी भारतीय राजनीति का हिस्सा रही हैं मगर आज काँग्रेस पार्टी ने उन्हें महासचिव नियुक्त कर सक्रिय राजनीति में उनकी एंट्री करा दी।
यह एक शानदार कदम है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि काँग्रेस पार्टी के तमाम कार्यकर्ता बहुत दिनों से यह मांग कर रहे थे। यहां तक कि कई बार इनके समर्थन में कभी फूलपुर तो कभी इलाहाबाद में पोस्टर लगाते हुए उनकी सक्रिय राजनीति में आगमन की मांग की जाती रही है।
एक तरह से यह कहा जा सकता है कि काँग्रेस पार्टी ने कार्यकर्ताओं की मांग को मान लिया है। वहीं, प्रियंका गाँधी का इस तरह महासचिव बनाना कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है बल्कि इसे एक सोची समझी राजनीतिक चालाकी कही जा सकती है।
कुछ लोग यह भी कहते थे कि राहुल गाँधी के रहते प्रियंका का सक्रिय राजनीति में आना मुश्किल है मगर जिस तरह से तीन राज्यों में काँग्रेस की सफलता के बाद राहुल की स्वीकार्यता बढ़ी है, उससे प्रियंका के लिए राजनीति में आना आसान हो गया।
काँग्रेस को आखिर क्यों लेना पड़ा यह फैसला
पिछले दिनों जिस तरह ‘बहुजन समाज पार्टी’ और ‘समाजवादी पार्टी’ ने गठबंधन करते हुए काँग्रेस पार्टी के लिए बरेली और अमेठी के अलावा कोई जगह नहीं रखी, उससे यह स्पष्ट था कि काँग्रेस पर भारी दबाव है। उनके पास दो ही विकल्प थे, एक तो यह कि वे ‘एकला चोलो रे’ का नारा अपनाते या फिर इस गठबंधन के सामने घुटने टेक देते।
खैर, काँग्रेस पार्टी इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि वह ‘लोकदल’ और कुछ ‘छोटी पार्टियों’ के साथ गठबंधन कर चुनाव में जाएगी मगर ‘लोकदल’ भी अब महागठबंधन का हिस्सा बन गई जिसके बाद काँग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं बचा।
ऐसे में काँग्रेस ने 2019 लोकसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के 2022 में होने वाले विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने ‘तुरुप का पत्ता’ चल दिया है। हालांकि कहने वाले यह भी कह सकते हैं कि यह काँग्रेस के लिए आत्मघाती कदम भी हो सकता है। यकीनन हो सकता है लेकिन मेरा मानना है कि काँग्रेस को उत्तर प्रदेश में खोने के लिए कुछ नहीं है बल्कि पाने के लिए बहुत कुछ है।
विपक्षियों का प्रहार फायदेमंद साबित होगा
बहरहाल, काँँग्रेस के पास प्रियंका गाँधी के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। एक महिला के तौर पर भी प्रियंका गाँधी का सक्रिया राजनीति में प्रवेश ‘काँग्रेस’ के फैसले के साथ न्याय करती है। उनका गाँधी परिवार से आना भी काँग्रेस पार्टी को फायदा पहुंचा सकती है। इन सबके बीच विपक्षियों द्वारा लगातार प्रियंका पर प्रहार किया जाना, परिवारवाद के आरोप लगाना और उनके पति को लेकर तंज कसने जैसी चीज़ें उनके पक्ष में जा सकती हैं।
प्रियंका गाँधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का कमान दिया गया है। जी हां, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी आता है और गोरखपुर भी, जहां अपनी मज़बूत पकड़ बनाते हुए योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने। दो राष्ट्रीय स्तर के दिग्गज़ नेताओं के बीच जब प्रियंका गाँधी चुनौती पेश करेंगी तब उन पर लगातार हमला बोला जाएगा। इन चीज़ों से प्रियंका को शानदार मीडिया कवरेज़ भी मिलने के आसार हैं।
प्रियंका को जितनी ज़्यादा मीडिया कवरेज मिलेगी वह उतनी ही सहजता से मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचा पाएंगी। हम सभी यह भी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के आने के बाद जहां काँग्रेस को अस्तिव बचाने का डर सता रहा था वहीं, प्रियंका के आने से आत्मविश्वास में गज़ब की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
प्रियंका की छवि का होगा असर
शांत और शालीन किस्म की महिला के तौर पर प्रियंका बड़े ही शानदार तरीके से लोगों के बीच अपनी बात रख पाएंगी। आज भी भारतीय जनमानस का एक हिस्सा गाँधी परिवार में ही अपनी राजनीति देखता है। ऐसे में इंदिरा गाँधी जैसी छवि का होना उनके लिए काफी लाभदायक होगा। प्रियंका बतौर महिला भी मतदाताओं को पार्टी के साथ जोड़ पाएंगी।
बाकी जो कुछ भी है वह समय के गर्भ में है और समय ही बताएगा कि प्रियंका ‘काँग्रेस पार्टी’ के लिए ‘तुरुप का इक्का’ साबित होंगी या नहीं। फिलहाल तो हमें भारतीय राजनीति में एक महिला के आगमन का स्वागत करना चाहिए।