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गाँव के स्कूलों पर ध्यान क्यों नहीं देती सरकारें?

प्राथमिक विद्यालय

प्राथमिक विद्यालय

वर्तमान समय में जिस तरह की शिक्षा व्यवस्था हमारे देश में चल रही है, वह कुछ हद तक संतोषजनक नहीं हैं। भारत की शिक्षा व्यवस्था में काफी बदलाव दिखे हैं परंतु कमियां भी उससे ज़्यादा दिखाई देती हैं।

किसी भी देश के विकास में शिक्षा का बहुत महत्व योगदान रहा है। हमारे देश के विकास में भी शिक्षा का महत्वपूर्ण  योगदान रहता है क्योंकि शिक्षा के बिना कुछ भी संभव नहीं है।

शिक्षा ही वह हथियार है जिससे देश का विकास सम्भव है और वर्तमान में जिस तरह की शिक्षा हमारे देश मे चल रही है उसमें सरकार को कुछ बदलाव लाने की ज़रूरत है। मौजूदा दौर में विशेष रूप से प्रारम्भिक शिक्षा पर ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि बच्चों की नींव मज़बूत हो सके।

बच्चों की नींव मज़बूत रहने पर वे आगे चलकर डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, आईपीएस, वैज्ञानिक तथा विभिन्न क्षेत्रों में उम्दा प्रदर्शन कर सकते हैं। भारत एक युवा देश है जहां की कुल आबादी में 65 प्रतिशत से ज़्यादा युवा हैं। ऐसे में यहां की शिक्षा व्यवस्था काफी दुरुस्त होनी चाहिए।

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: Flickr

प्रारंभिक शिक्षा के महत्व को देखते हुए अगर वर्तमान में चल रही व्यवस्था पर नज़र डाली जाए तब गाँवों के बच्चों को बहुत सारी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। वर्तमान समय में गरीब बच्चों के लिए सरकार स्कूल तो मुहैया करा देती है लेकिन कई दफा पढ़ने के लिए उन्हें ज़रूरी सामग्रियां नहीं मिल पाती हैं।

गाँवों के स्कूलों में शिक्षकों की क्या हालत है यह सभी को पता है, इसलिए सरकार को चाहिए कि इस दिशा में वह ज़रूर पहल करें ताकि वहां के शिक्षक नियमित रूप से विद्यालय आएं। गाँवों के बच्चों को भी वह अवसर प्राप्त हो जो शहरों के बच्चों को मिलते हैं। सरकार की कोशिशों से शहर के बच्चों की तरह गाँवों के स्कूलों के बच्चे भी सफल हो पाएंगे। वह भी अपने सपनों को साकार कर पाएंगे।

ज्ञान का अंतिम लक्ष्य ‘चरित्र निर्माण’ ही होना चाहिए। जब तक शिक्षा के कुछ उद्देश्य निर्धारित नहीं होंगे, तब तक शिक्षा प्रणाली में कोई सुधार नहीं हो सकता है इसलिए शिक्षा के कुछ उद्देश्य है:-

जनतांत्रिक नागरिकता का विकास

इस देश के जनतंत्र को सफल बनाने के लिए प्रत्येक युवा को सच्चा, ईमानदार तथा कर्मठ नागिरक बनाना परम आवश्यक है। अत: शिक्षा का परम उद्देश्य युवाओं को जनतांत्रिक नागरिकता की शिक्षा देना है।

नोट: तस्वीर प्रतीकात्मक है। फोटो साभार: सोशल मीडिया

इसके लिए युवा को स्वतंत्र तथा स्पष्ट रूप से चिंतन करने एवं निर्णय लेने की योग्यता का विकास परम आवश्यक है जिससे वे नागरिक के रूप में देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सभी प्रकार की समस्याओं पर स्वतंत्रता पूर्वक चिंतन और मनन करते हुए स्पष्ट विचार व्यक्त कर सकें।

कुशल जीवन-यापन कला की दीक्षा

शिक्षा का दूसरा उद्देश्य युवा को समाज में रहने अथवा जीवन-यापन की कला में दीक्षित करना है। एकांत में रहकर ना तो व्यक्ति जीवन-यापन कर सकता है और ना ही पूर्णत: विकसित हो सकता है। उसके स्वयं के विकास तथा समाज के कल्याण के लिए यह आवश्यक है कि वह सह-अस्तित्व की आवश्यकता को समझते हुए व्यवहारिक अनुभवों द्वारा सहयोग के महत्व का मूल्यांकन करना सीखे।

इस दृष्टि में चेतना तथा अनुशासन एवं देशभक्ति आदि अनेक सामाजिक गुणों का विकास किया जाना चाहिए जिससे प्रत्येक युवा इस विशाल देश के विभिन्न व्यक्तियों का आदर करते हुए एक-दूसरे के साथ घुल-मिल कर रहना सीख जाए।

कक्षा में छात्र। फोटो साभार: गूगल फ्री इमेजेज़

प्रारंभिक शिक्षा की महत्वाकांक्षा को देखते हुए सरकार को भी गाँवों के स्कूलों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। सभी को समान अवसर मिलने के साथ-साथ तमाम सुविधाएं नियमित तौर पर मिले। ऐसा करने से उन बच्चों में कुछ करने की चाहत होगी जिससे यह नारा ‘पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया’ भी सफल हो पाएगा।

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