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“हमारा नारा देश की महानता का नहीं, बदलाव का होना चाहिए”

‘हमारा नारा क्या हो’, से पहले ‘हमारा नारा क्यों हो’, यह सवाल भी पूछा जा सकता है और कोई यह भी कह देता है कि नारों से स्वर्ग नहीं बनता। यह बात भी ठीक लगती है अगर वाकई सिर्फ नारे लगा देने से उद्देश्य की प्राप्ति हो जाती तो आज देश से बेरोज़गारी, अशिक्षा, गरीबी मिट जाती। जब नारों से समस्या का हल होता ही नहीं तो क्या नारे लगा देना छोड़ देना चाहिए यह बात भी सोची जा सकती है।

नारों का औचित्य (सच्चाई) सिर्फ इतना ही है कि समूह द्वारा लगाए गए नारों से समस्या का पता चलता है और नारे कितनी ज़ोर से लगाये गए हैं इससे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए समूह में कितना जोश है इसके बारे में पता चलता है। इससे ज़्यादा नारों से अपेक्षा करना उचित नहीं है। इससे ज़्यादा अपेक्षा रखना अपने आप को भ्रम में रखना होगा।

फोटो प्रतीकात्मक है।

प्रत्येक जनवादी समूह (जो लोगों के लिए हो) को अपनी समकालीन समस्याओं तथा उनके हल पर विचार करना चाहिए तथा नारे ऐसे होने चाहिए जो समस्याओं का सरल सूचक हो।

देश प्रेम में भी लगाए जाते हैं नारे

लोगों द्वारा लगाए गए नारे सिर्फ समस्याओं का पता लगाने तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि कई नारे प्रेम में भी लगाए जाते हैं। जय हिन्द, वंदे मातरम्, भारत माता की जय जैसे अन्य नारे इसमें शामिल होते हैं। इन नारों में भारत देश को मॉं का दर्ज़ा दिया जाता है। माँ का दर्ज़ा देने से यह नारे पूरी तरह से भावनात्मक रूप ले लेते हैं। भारत देश को माँ का दर्ज़ा देकर संबोधन करना है या इसे इसकी वास्तविकता के रूप में ही रहने देना है यह पूरी तरह से व्यक्ति पर ही निर्भर होना चाहिए।

इन नारों में देश को माँ का दर्ज़ा दिया जाता है, यह इन नारों का एक हिस्सा है। इन नारों के दूसरे हिस्से में माता के रूप में देश की जय भी बोली जाती है। जब हम देश के आगे जय शब्द जोड़कर, महान शब्द जोड़ देते हैं तो उस देश में सब अच्छा ही अच्छा होता है कुछ भी बुरा नहीं होता, यही महान शब्द का मतलब होता है, जबकि सच्चाई यह है कि देश महान शब्द से अभी दूर है।

देश सिर्फ धरती और धरती पर खींची इन लकीरों से नहीं बनता है, देश बनता है लोगों से और जब उसी देश के लोग और किसान बुरी हालत में हो, अशिक्षित हो, पढ़ने की इच्छा रखने पर भी पढ़ाई, टीचर, स्कूल, कॉलेज ना मिलता हो, रोज़गार ना मिलता हो और जिन्हें मिलता हो उन्हें अपने घर परिवार को छोड़कर दूसरे शहर मे पलायन करना पड़ता हो, उनकी मज़दूरी का दाम इतना कम मिलता हो जिससे वे अपनी न्यूनतम ज़रूरतों को भी पूरा ना कर पाता हो, प्रशासन व्यवस्था इतनी कमज़ोर और दोगली हो ऐसा देश महान कैसे हो सकता है?

नारा इन्कलाब का होना चाहिए

देश को माँ का दर्ज़ा देने से और देश के साथ महान शब्द जोड़ देने से देश सचमुच में महान नहीं हो जाता है और ना ही देश की इन समस्याओं का हल हो सकता है बल्कि देश को महान बोलकर हम इन समस्याओं की ओर देखते भी नहीं और ना ही उन्हें हल करने के बारे में सोचते हैं। क्योंकि हम अपने नारों में अपने आपको पहले ही बता चुके होते हैं कि हमारा देश महान है, इसलिए हमारा नारा देश की महानता का नहीं बल्कि बदलाव का होना चाहिए इन्कलाब का होना चाहिए।

इन्कलाब का नारा इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि इस समय देश में बहुत कुछ है बदलने के लिए, इन्कलाब का मतलब भी यही होता है अच्छा परिवर्तन। इन्कलाब के नारे का पहले पहल प्रयोग ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी के लिए किया गया था, अब इसी नारे का प्रयोग अपनी ही सरकारी हुकूमत से अपने हक के लिए करना है। हक समान शिक्षा का, हक रोटी, कपड़ा, मकान का, हक नौकरी का, हक न्याय का, हक अच्छे जीवन का। हमारी ज़रूरतें, हमारे उद्देश्य का नारे के रूप में सूचक यह इन्कलाब का नारा ही हो सकता है।

 

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