हमारी बस एक साल पुरानी दोस्ती थी पर मेरे दोस्त की उम्र एक साल नहीं थी। इंजीनियरिंग कर चुका मेरा दोस्त, मुझसे पर्सनालिटी डेवलपमेंट की एक क्लास में मिला था। उसे लगता था उसकी नौकरी इसलिए नहीं हो पा रही है क्योंकि उसका इंटरव्यू अच्छा नहीं जाता।
हम जाड़े के दिनों में अक्सर पास के पार्क में बैठकर धूप सेंका करते थे, एक दिन मेरे दोस्त ने मुझसे पूछा, “तुम मुसलमान होते हुए भी भोजपुरी क्यों बोलते हो?” उसका यह सवाल सुनते ही मेरा दिमाग शून्य की स्थिति में था। हकलाने जैसी आवाज़ मेरे मुंह से निकली, मेरे होठ हिले पर मैं कुछ बोल नहीं पाया।
यह सवाल ही कुछ ऐसा था, जो किसी व्यक्ति को उसके धर्म के हिसाब से, उसे उसके क्षेत्र से, उसकी बोली से उसे अलग करता हो। मेरे मन में कोई दूसरा ख्याल आ पाता इससे पहले ही उसका एक और सवाल मेरे सामने था, “अच्छा तुम्हारे घर में अरबी कौन-कौन बोलता है?” अब उसके इस सवाल पर मैं झुंझलाहट की स्थिति में पहुंच चुका था। मैंने भी व्यंग्यात्मक लहज़े में जवाब दिया,
जब हम लोग मंगल ग्रह से आए तब से अरबी ही बोल रहे हैं लेकिन धरती पर आने के बाद हमने तय किया कि हम यहां के लोगों की भाषा बोलेंगे, ताकि हमें कोई पहचान ना ले। हमारा स्पेसशिप छपरा में उतरा इसीलिए आज हम भोजपुरी बोलते हैं।
मेरे इस जवाब पर वह लगभग 1 मिनट तक हंसते हुए कहता है कि अरे भाई तू तो बुरा मान गया मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था।
यह सवाल पूछने वाला वह पहला या एकलौता व्यक्ति नहीं था। इस तरह के कई सवाल जो आपके बारे में एक विचित्र सोच रखते हैं, मैंने कई बार झेला है। अलग-अलग लोगों के अलग-अलग सवाल होते थे।
मैं बचपन में पास के मदरसे में पढ़ने जाया करता था लेकिन वहां बाकी बच्चों की पिटाई देख मैं एक महीने से ज़्यादा टिक नहीं पाया। मुझे उर्दू में सिर्फ अपना नाम लिखने आता था। वह दिन मुझे आज भी याद है जब मैं छठी क्लास में नए स्कूल में गया और अगले दो दिनों में पूरा क्लास मुझसे अपना नाम उर्दू में लिखवा चुका था।
उर्दू में मुझे सिर्फ अलिफ-बे और अपना नाम लिखने आता था तो आप सोच सकते हैं, पूरे क्लास का नाम मैंने कितना सही लिखा होगा। पर उनके लिए यह बहुत सही था क्योंकि उनके लिए उर्दू एक टेढ़े मेढ़े लाइंस और बहुत सारे बिंदुओं वाली भाषा थी।
शायद यह वही बुनियादी ढांचा है, जिसके सहारे आज फेक न्यूज़, अंधभक्ति और प्रोपगेंडा देश और दुनिया में चरम पर है। भारत से लेकर अमेरीका तक आपको ऐसे प्रसिद्ध नेता मिल जाएंगे, जिनके भाषणों में तथ्य से ज़्यादा तथ्यात्मक झूठ मिल जाएंगे, जिसे उनके भक्त अपने दिमाग में संजोकर घर ले जाते हैं।
एक इंजीनियर आपसे पूछे कि आप मुसलमान होते हुए भी भोजपुरी क्यों बोलते हो, उसका यह सवाल देश की एजुकेशन सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। ऐसे सवाल आपको कई बार यह एहसास दिलाते हैं कि कहीं देश की शैक्षणिक संस्थानो में पढ़ाई के नाम पर सिर्फ मेमोरी कार्ड तो तैयार नहीं किये जा रहे हैं, जहां कई सालों तक कड़ी मेहनत से अलग-अलग विभागों के प्रोफेसर कोर्स से सम्बंधित जानकारियां छात्रों के दिमाग में बस कॉपी पेस्ट करते हैं।
यह भटका हुआ एजुकेशन सिस्टम ही तो है जो मनुष्य को किसी सामाजिक प्राणी से पहले एक पेशेवर व्यक्ति बनाने की वकालत करता है। आज का व्यक्ति सामाजिक ताने-बाने और भिन्नताओं से अनजान रहे, बस डिग्री हो तो उसे पढ़े लिखों की श्रेणी में जगह मिल जाती है। तो शिक्षित होने का पैमाना आखिर है क्या?
अगर डिग्री ही अक्लमंदी और शिक्षित होने का प्रमाण पत्र है, तो भगवान बुद्ध को कौन से ज्ञान की प्राप्ति हो गयी थी? सारे विश्व ने स्वीकार किया। मनुष्य को मनुष्य होने के नाते उसे सामाजिक संवेदनाओं, क्षेत्र, भाषा समुदाय और सभ्यता का ज्ञान होना अनिवार्य है, अगर नहीं तो वह अपने ही उत्पत्ति और अस्तित्व से अनजान है और तब तक यह देश और पूरी दुनिया तर्क और बुद्धि के अकाल को झेलती रहेगी।
यह मनुष्य की मौलिक शिक्षा है, जिसके बिना एक सभ्यता दूसरी सभ्यता पर थोपी जायेगी, जो आप जैसे नहीं हैं इसीलिए वह गलत हैं या आपसे निम्न हैं, यह श्रेष्ठता की परिभाषा होगी। विकास के नाम पर बस नए मशीनों का आगमन होगा, चीज़ें आसान बना दी जायेंगी और जीवन मानवीय संवेदनाओं के आभाव से ग्रस्त। खैर, इन सब बातों के परे मेरे दोस्त को एक अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई है और उसका सपना है कि वह अपने बेटे को अपने आपसे भी बड़ा एक इंजीनियर बनाये।