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“झूठ और धोखे से भरा था प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू”

Key points of PM Narendra Modi's Interview to ANI

प्रधानमंत्री मोदी ने नए साल के पहले दिन ही ANI को इंटरव्यू देकर चुनाव का बिगुल फूंक दिया। यह इंटरव्यू एएनआई की पत्रकार स्मिता प्रकाश जी ने लिया। इस इंटरव्यू की पटकथा बड़ी चालाकी से लिखी गई है। ऐसा दिखाने की पूरी कोशिश की गई कि यह इंटरव्यू स्क्रिप्टेड नहीं था। इंटरव्यू में सवाल अच्छे पूछे गए लेकिन सवालों में तथ्यों का बिल्कुल सहारा नहीं लिया गया। प्रधानमंत्री के जवाबों को भी तथ्यों के साथ काउंटर नहीं किया गया। उनसे कोई काउंटर सवाल नहीं पूछे गए। उन्हें गुमराह करने की पूरी आज़ादी दी गई।

लेकिन इतने शक्तिशाली प्रधानमंत्री को भी यह दिखाने की ज़रूरत पड़ गई कि यह इंटरव्यू स्क्रिप्टेड नहीं था। यह साफ ज़ाहिर करता है कि 5 राज्यों में मिली हार के बाद प्रधानमंत्री मोदी में आत्मविश्वास की कमी आई है और घबराहट बढ़ी है।

आइए जानते हैं वो कौन से पहलू हैं जो इस इंटरव्यू को कमज़ोर बनाते हैं।

1. नोटबंदी-

नोटबंदी के सवाल पर मोदी जी और उनकी सरकार बार बार कहती आई है कि यह काले धन के खिलाफ एक कड़ा कदम था। यहां भी मोदी जी ने यही कहा। स्मिता प्रकाश जी को तथ्यों के साथ काउंटर करना चाहिए था कि आरबीआई ने नोटबंदी से 4 घंटे पहले अपने बोर्ड मीटिंग में लिखित में यह साफ कर दिया था कि नोटबंदी से काले धन और फर्ज़ी नोटों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जो संस्था नोटबंदी कर रही थी उसी का कहना था कि नोटबंदी से काले धन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। क्या मोदी जी आरबीआई से ज़्यादा इकोनॉमिक्स जानते हैं?

उस वक्त मुख्य चुनाव आयुक्त रहें ओपी रावत जी ने भी कहा कि नोटबंदी काले धन पर लगाम लगाने में पूरी तरह से विफल रही है। उनका कहना था कि नोटबंदी के बाद भी जो चुनाव हुए उनमें काले धन का खूब इस्तेमाल हुआ।

नोटबंदी के सवाल में इन सारे तथ्यों को शामिल नहीं किया गया। मोदी जी से यह सवाल भी नहीं पूछा गया कि नोटबंदी के दौरान हुई 100 से ज़्यादा मौतों का ज़िम्मेदार कौन है।

2. . मॉब लिंचिंग-

मॉब लिंचिंग पर मोदी जी ने बोला कि किसी भी सभ्य समाज को यह शोभा नहीं देता और इस तरह की घटना बिल्कुल गलत है। अब कोई भी नेता बोलेगा क्या कि मॉब लिंचिंग सही है? लेकिन एक पत्रकार को यह सवाल तो ज़रूर पूछना चाहिए कि उनकी कथनी और करनी में फर्क क्यों है?

स्मिता प्रकाश जी ने काउंटर सवाल नहीं किया कि क्यों बीजेपी के एमपी और एमएलए हत्यारों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। क्या मॉब लिंचिंग पर मोदी जी की बात खुद उन्हीं की पार्टी के लोग नहीं मानते हैं?

जयंत सिन्हा क्यों बेल पर छूटे हत्यारों को माला पहनाकर स्वागत करते हैं? क्यों बुलंदशहर से बीजेपी एमपी भोला सिंह बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को मारने के मुख्य आरोपी योगेश राज के पक्ष में खड़े हो जाते हैं? क्यों योगी सरकार बुलंदशहर में दिन दहाड़े पुलिस थाने को घेरकर इंस्पेक्टर सुबोध कुमार की हत्या के बाद गाय के मरने को ज़्यादा तरजीह देती है? क्यों राजस्थान में बीजेपी की सरकार में गौ रक्षकों द्वारा रकबर खान को मारने के बाद पुलिस पहले गायों को सुरक्षित पहुंचाती है और बाद में रकबर खान को अस्पताल पहुंचाती है?

3. सबरीमाला-

सबरीमाला के मुद्दे पर मोदी जी ने बोला कि यह धार्मिक प्रथा का मामला है और ट्रिपल तलाक महिलाओं की बराबरी का मामला है। पहली बात कि ट्रिपल तलाक और सबरीमाला दोनों पर सुप्रीम कोर्ट का ही फैसला है कि यह दोनों धार्मिक प्रथाएं महिलाओं के प्रति असमानता को बढ़ावा देती हैं और असंवैधानिक है। लेकिन स्मिता प्रकाश जी ने यह काउंटर सवाल नहीं पूछा कि आपको महिलाओं की बराबरी पर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला तो मंज़ूर है लेकिन दूसरा क्यों नहीं है।

दो महिलाएं सबरीमाला मंदिर के अंदर जाने में सफल रही थीं। उसके बाद मंदिर को बंद करके पवित्र किया गया। तो क्या मोदी जी इस धार्मिक प्रथा में यकीन रखते हैं कि महिलाएं अपवित्र होती हैं?

इस पूरे इंटरव्यू में जिस प्रकार से सवाल पूछे गए वो भी संदेहास्पद है। जो महत्वपूर्ण सवाल थे वहां विपक्ष के आरोपों पर प्रधानमंत्री से सफाई मांगी गई। बार-बार स्मिता प्रकाश जी यह बोलती रहीं कि विपक्ष यह कह रहा है, विपक्ष वो कह रहा है। जबकि सवाल तो तथ्यों के आधार पर पूछे जाने चाहिए थे।

ऐसा करके प्रधानमंत्री मोदी को मौका दिया गया कि वो सवालों के जवाब ना देकर विपक्ष पर ही सवाल खड़े करे। महत्वपूर्ण सवालों को सत्ता पक्ष और विपक्ष की लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश की गई। एक पत्रकार को इतना तो पता होना ही चाहिए कि सवाल किस तरह से पूछने चाहिए।

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फोटो सोर्स- ANI

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