किसी महान नेता को याद करने के लिए मौजूदा दौर के अपने चहेते नेताओं के सोशल मीडिया पेजेज़ ना खंगालकर इतिहास के पन्ने पलटिए। सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर अगर आप प्रधानमंत्री मोदी का सोशल मीडिया देखेंगे तब आपको लगेगा कि उनकी पार्टी और उनकी विचारधारा सुभाष चन्द्र बोस का बहुत सम्मान करती है जबकि सच्चाई बिल्कुल उल्टी है।
प्रधानमंत्री ने 23 जनवरी को लाल किले में ‘आज़ाद हिन्द फौज़’ के संग्रहालय का उद्घाटन किया और खुद को सुभाष चन्द्र बोस का अनुयाई बताया। क्या उस संग्रहालय में इस बात का ज़िक्र होगा कि जब सुभाष चन्द्र बोस भारत की आज़ादी के लिए ‘आज़ाद हिन्द फौज़’ की स्थापना कर रहे थे, तब मौजूदा सरकार के पूर्वज़ ‘सावरकर’ हिन्दुओं को निर्देश दे रहे थे कि उन्हें हिन्दू हितों को ध्यान में रखते हुए भारत की अंग्रेज़ सरकार की सेनाओं में शामिल होना चाहिए।
सावरकर को तो प्रधानमंत्री और उनकी विचारधारा ‘वीर’ मानती है। प्रधानमंत्री को यह साफ कर देना चाहिए कि भारत की आज़ादी के लिए सेना खड़ी करने वाले सुभाष चन्द्र बोस वीर हैं या अंग्रेज़ों की सेना में हिन्दुओं को भर्ती करवाने वाले सावरकर वीर हैं।
सुभाष चन्द्र बोस ने 1935 में लिखी अपनी किताब ‘इंडियन स्ट्रगल’ में कहा था कि सावरकर की ‘हिन्दू महासभा’ और ‘मुस्लिम लीग’ समाज में साम्प्रदायिकता फैलाकर अंग्रेज़ों को फायदा पहुंचाना चाहते हैं।
सुभाष चन्द्र बोस ने इसी किताब ‘इंडियन स्ट्रगल’ में काँग्रेस के अंदर एक लेफ्ट विंग क्रांति लाने की बात की थी। वह काँग्रेस के अंदर राईट विंग से निराश थे जो अंग्रेज़ों से सम्पूर्ण आज़ादी नहीं चाहती थी। 1939 में उन्होंने महात्मा गाँधी के प्रत्याशी को हराते हुए काँग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत लिया लेकिन गाँधी जी के समर्थन में काँग्रेस के बाकी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया जिसके बाद बोस को अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा।
जब काँग्रेस ने बोस को किया था निष्कासित
जब सुभाष चन्द्र बोस को 1939 में काँग्रेस ने 3 साल के लिए निष्कासित कर दिया था तब उन्होंने इसे काँग्रेस की राईट विंग की जीत बताई थी। इसी के साथ बोस ने कहा था कि वह और काँग्रेस के बाकी लेफ्ट विंग के सदस्य अपने स्टैंड पर कायम हैं।
उन्होंने इस्तीफा देने के बाद काँग्रेस के अंदर ही फॉरवार्ड ब्लॉक की स्थापना की (जो आज बंगाल में लेफ्ट विंग पार्टी है)। उन्होंने काँग्रेस के अंदर के सभी लेफ्ट विंग नेताओं को संगठित किया और ‘लेफ्ट कंसोलिडेशन कमेटी’ की स्थापना की।
हालांकि इसके बावजूद सुभाष चन्द्र बोस ने ‘आज़ाद हिन्द फौज़’ में नेहरू के नाम पर ‘नेहरू ब्रिगेड’ बनाया था। जब अंग्रेज़ों ने आज़ाद हिन्द फौज़ के कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरबक्श सिंह ढिल्लो और मेजर जेनरल शाह नवाज़ खान पर ट्रायल चलाया तब नेहरू ने ही उनका केस लड़ा था। यह जानकारी आपको प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया से नहीं मिलेगी।
सुभाष चन्द्र बोस काँग्रेस के अंदर लेफ्ट विंग का नेतृत्व करते थे जो अंग्रेज़ों से सम्पूर्ण आज़ादी चाहती थी। वर्तमान में जो सरकार है उसकी विचारधारा को सुभाष चन्द्र बोस सांप्रदायिक मानते थे और काँग्रेस के अंदर गाँधी जी के नेतृत्व वाली राईट विंग को भी सही नहीं मानते थे। वह सही मायनों में एक सेक्युलर नेता थे।
नोट: लेख में प्रयोग किए गए तथ्य सुभाष चन्द्र बोस द्वारा लिखित किताब ‘इंडियन स्ट्रगल’ से लिए गए हैं।