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भारत में बेहद भयावह है बाल मज़दूरी की तस्वीर

child labour in india

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बचपन में जहां बच्चों को किताबें और खिलौने सौंपे जाते हैं, वहीं कुछ बच्चों को मज़दूरी करने के लिए विशेष प्रकार के उपकरण थमा दिए जाते हैं। जहां एक ओर बचपन को मासूमियत, स्नेह, प्यार एवं दुलार की संज्ञा दी जाती है, वहीं दूसरी ओर ना जाने कितने मासूमों से उनकी मासूमियत छीन ली जाती है और उनके जीवन में मासूमियत का स्थान मज़दूरी ले लेती है।

बच्चे भूखे पेट सोने को मजबूर

दिनभर मज़दूरी करने के बाद भी रात में यह बच्चे भूखे पेट कंकरीट भरी सड़कों पर सोने को मजबूर होते हैं। अक्सर हम छोटे और नासमझ बच्चों को कभी चाय की दुकान, फैक्ट्री, कारखानों, ढाबों में काम करते, कचरा उठाते, भीख मांगते और गाड़ियों की मरम्मत करने से लेकर जूता पॉलिश करते देखते हैं।

यह समाज की जटिल समस्या है लेकिन समाज इसका विरोध ना करके बच्चों से कड़ी मेहनत कराकर बदले में उन्हें थोड़ा बहुत पैसा सौंप देता है। समाज के कुछ कुपोषित वर्ग इन बच्चों की गरीबी का फायदा उठाते हैं।

यह नन्हीं जानें जब दिनभर काम करके, कूड़ा उठाकर, सामान बेचकर और जूता पॉलिश करके थक जाती हैं, तब भी इन्हें दो वक्त की रोटी नसीब नहीं हो पाती है। अक्सर यह बच्चे कूड़े से सामान बिनकर अपनी भूख मारते हैं। यह बहुत ही भयावह स्तिथि है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

हर बच्चे को सम्मान और प्यार का अधिकार

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

समाज का हर बच्चा सम्मान और प्यार का बराबर हकदार है और इंसान होने के नाते इतना याद रखिए कि अगर आप इन बच्चों को पोषित नहीं कर सकते तो आपको इन्हें शोषित करने का भी कोई अधिकार नहीं है।

आज हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां लोग मदद करने के मकसद से नहीं, बल्कि राजनीति करने के मकसद से बच्चों के लिए आवाज़ उठाते हैं। यह सब कुछ देश को और खोखला करता जाएगा, क्योंकि जब तक देश का कल ही कचरे में होगा तब तक हम देश की बगिया को नहीं सजा सकते हैं।

बच्चों पर कचरे का भार

छोटे-छोटे बच्चे जो अभी अच्छे से जीवन के सवेरे को देख भी नहीं पाए हैं, उन्हें अंधकार में ढकेल दिया जाता है। किताबें सौंपने की उम्र में उन्हें कचरे का भार सौंप दिया जाता है।

भेदभाव की सीमा इस कदर है कि हम उनके नाम तक को अपने हिसाब से रख देते हैं। कोई उन्हें छोटू तो कोई टिंकू बुलाता है।

यह आपके बुलाने के लिए तो आसान है लेकिन एक बार ज़रा गौर से सोचिएगा अगर कोई आपके नाम को परिवर्तित कर दे, तब आपको कैसा महसूस होगा? वे तो मजबूरियों के बोझ तले बड़े से बड़े बोझ को हंसकर उठा लेते हैं, वरना उम्र तो इनकी अभी खिलौने संभालने की ही है।

गरीबी के कारण होता है शोषण

गरीबी, अशिक्षा एवं बेरोज़गारी के कारण छोटे-छोटे बच्चे पहाड़ जैसे बोझ अपने सिर पर उठाते-फिरते हैं। समाज के कुछ कुपोषित वर्ग इन बच्चों की गरीबी के कारण उनका शोषण करते हैं।

एक इंसान होने के नाते अगर आप गरीब बच्चों को पोषित नहीं कर सकते, तो कृप्या शोषित भी मत करिए। इतनी छोटी सी उम्र में उन्हें मज़दूरी की आग में ढकेलने से हम ना सिर्फ उनका बचपन अंधकार में डाल रहे हैं, बल्कि भारत के भविष्य के निर्माण में सहायक शिशुओं का जीवन भी गर्त में डाल रहे हैं।

स्कीम की जांच-पड़ताल ज़रूरी

यह उम्र खेलने-कूदने एवं शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करने की है। सरकार स्कीम तो निकाल देती है लेकिन क्या उसका लाभ सही लोगों को मिल भी रहा है या नहीं, इसकी कभी जांच-पड़ताल करना ज़रूरी नहीं समझती है। हमें जितना भी हो सके ऐसे बच्चों के सहयोग के लिए आगे बढ़ना चाहिए।

इन बच्चों को मज़दूरी के लिए नहीं, बल्कि पढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा क्योंकि एकमात्र पढ़ाई से ही इनका भविष्य अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसित होगा।

ये हमारे समाज की छोटी-छोटी कलियां हैं

इन्हें टूटने मत दीजिए,

इन्हें मुरझाने मत दीजिए

इन्हें जीवन की बहारों में खिलने का मौका दीजिए।

इन्हें सपनों की उड़ान भरने का मौका दीजिए

पूरा ना सही, इन्हें इनके हिस्से का खुला आसमान तो दीजिए।

इस शोषित वर्ग के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि ये देश का कल हैं। अगर इनके जीवन के साथ आप आज खिलवाड़ करेंगे तो आप सिर्फ भारत की नींव को कमज़ोर करेंगे।

हम सभी एक बेहतर भारत की कल्पना करते हैं, जिसके लिए हर एक का सहयोग अहम भूमिका निभाएगा। एक कोशिश आप भी करिए कि किसी भी बच्चे को अपने बचपन में कुल्हाड़ी ना उठानी पड़े, बल्कि हर एक बच्चे के हाथों में किताब हो क्योंकि किताबें ही उनके जीवन को संवारने में योगदान देंगी।

यह छोटे-छोटे कदम भारत की दिशा एवं दशा को परिवर्तित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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