साल 1984 के सिख कत्लेआम के बाद सरकारी जांच एजेंसियां आम जनता के बीच यह एहसास करवाती रही कि वह सरकार के प्रभाव के नीचे काम कर रही है। वही समाज के कई बुद्धिजीवियों ने अपने दम पर छानबीन करते हुए सर्वाइवर्स के बयानों के आधार पर दस्तावेज एकत्रित किए।
‘सिटीजन फॉर डेमोक्रेसी’ के अधीन दस्तावेज़ के रूप में एक रिपोर्ट सावर्जनिक की गई जिसका नाम था ‘रिपोर्ट टू नेशन।’ इसमें मुख्य रूप से जानी मानी समाजसेवी अमिया राव, दिल्ली यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहे प्रोफेसर अरबिंदो घोष और एन.डी. पंचोली शामिल हैं।
इस रिपोर्ट की शरुआत दो बेहतरीन लाइन्स के साथ होती है जहां लिखा गया है कि हमारा राजनैतिक तंत्र का किस स्तर तक अपराधीकरण हो चुका है और मुश्किल समय में पुलिस की अविश्वनीय कार्यशैली ही सामने दिखाई देती है।
वही रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि यह कत्लेआम दो समुदायों के बीच हुए धार्मिक या किसी भी रूपरेखा में दंगे नहीं थे। कभी भी सिख समुदाय को क्रोधित, अपराधी या दंगाई के रूप में नहीं देखा गया। हांं, कई जगहों पर सिख समुदाय अपने बचाव की पैरवी ज़रूर करता प्रतीत हो रहा था लेकिन यह ज़्यादा असरदायक नहीं था।
वही हिंदू समुदाय के नागरिक हर तरह के खतरे से वाकिफ होने के बावजूद अपने सिख पड़ोसी को बचाने में लगे हुए थे। जनवरी 1985 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इस कत्लेआम में करीब 1300 औरतें विधवा हो गई थीं। वह औरतें जवान और अशिक्षित होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से अपने पति पर निर्भर थीं।
रिपोर्ट के मुताबिक वह औरतें कभी भी रोज़गार के लिए घरों से बाहर नहीं गई थीं लेकिन अब जब घर के सारे सिख पुरुष मार दिए गये हैं, तब उनके सामने आज दो वक्त की रोटी का जुगाड़ चिंता का विषय बन चुका है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 4000 बच्चे अनाथ हो गए थे जिनके पिता को भीड़ द्वारा पहले खींचा गया, उनके बाल काटे गए फिर उन्हें ज़िंदा रहते ही किसी ज्वलनशीन सफेद रंग के केमिकल पाउडर का छिड़काव करके जला दिया गया। वही इन अनाथ बच्चों की माँ को मारा गया और कई औरतों के साथ दंगाइयों द्वारा बलात्कार की अमानवीय घटनाओं को अंजाम दिया गया।
‘रिपोर्ट टू नेशन’ अपने आप में उन गिनी चुनी रिपोर्ट्स में से हैं जहां सिख औरतों के साथ बलात्कार की पुष्टि की गई। बाद में पत्रकार जरनैल सिंह ने भी अपनी किताब ‘कब कटेगी चौरासी : सिख क़त्लेआम का सच’ के ज़रिए बलात्कार की घटनाओं को दर्ज किया है।
वही नानावटी कमीशन की रिपोर्ट के पेज नंबर 111 में यह दर्ज किया गया है कि रेप सर्वाइवर के पति को सरकारी कर्मचारी ने ड्यूटी पर रहते हुए गोली मारी थी, वही इनके दो नौजवान बेटों को भी दंगाइयों ने गोली मार दी थी। जब महिला अपने दोनों बेटों के पास जाने की कोशिश कर रही थीं तब नाथू प्रधान, ब्रह्माननंद गुप्ता और राजेश नाम के व्यक्तियों ने इनके साथ सामूहिक बलात्कार किया था।
एक रेप सर्वाइवर बताती हैं कि जब उनकी उम्र 45 साल थी तब उनके नौजवान बेटों के सामने ही बेटों के उम्र के दंगाईयों ने पहले उन्हें वस्त्रहीन किया, फिर सामूहिक बलात्कार को अंजाम दिया। बलात्कार करने के बाद दंगाईयों ने बेटों को जलाकर मार दिया।
नानावटी कमीशन की रिपोर्ट में चार जगह बलात्कार शब्द लिखा गया है, जहां एक जगह इस शब्द का प्रयोग दंगाई द्वारा बलात्कार की कोशिश के संदर्भ में किया गया है। वही अन्य तीन जगहों पर बलात्कार की पुष्टि की गई है। एक जगह सर्वाइवर द्वारा अब्बास चप्पलवाला पर आरोप लगाए गए हैं कि अब्बास ने कई नौजवान सिख लड़कियों और औरतों को जबरन झुग्गियों में ले जाकर सामूहिक बलात्कार किया।
दंगों की जांच के लिए मई 2000 में ‘जीटी नानावती कमीशन’ का गठन किया गया जिसकी रिपोर्ट साल 2005 में संसद में पेश की गई। अगर हम साल 1984 ओर 2000 के दौरान के 16 सालों के अंतर को समझेंगे तब ऐसी कितनी सर्वाइवर्स होंगी जो खुद पर हुए ज़ुल्मों की गवाह सार्वजनिक रूप से नहीं बन पाई होंगी।
‘रिपोर्ट टू नेशन’ में भी यह तथ्य मौजूद है कि कई रेप सर्वाइवर्स अपनी मानसिक सतुंलन खो चुकी थीं। वही नानावटी कमीशन की रिपोर्ट में भी भूतपूर्व न्यायधीश एम.एस सीकरी की सिटिज़न कमीशन की रिपोर्ट का ज़िक्र मिलता है। सिटिज़न कमीशन ने नवंबर 1984 में ही अपना काम शुरू कर दिया था और इनकी रिपोर्ट में 11 बार बलात्कार शब्द का प्रयोग किया गया है।
दिल्ली पुलिस कांस्टेबल जुगती राम की बहादुरी के बल पर उन सिख लड़कियों और औरतों को छुड़वाया गया जिन्हें पास के गाँव में रखा गया था। बाद में दिल्ली पुलिस के इस कांस्टेबल को दिल्ली की सिख संगत ने गुरुद्वारा साहिब में सम्मानित भी किया था। अमूमन 1984 की रेप सर्वाइवर्स को ‘1984 की बेटी’ कहकर पुकारने का चलन भी सिख समाज में सुना गया है।
यहां एक सवाल उठता है कि जब वह कांस्टेबल अपनी नौकरी के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए अपने दम पर गाँव से सर्वाइवर्स को दंगाईयों से बचा कर ला सकता है, तब दिल्ली की भारी भड़कम पुलिस फोर्स रहते हुए यह कत्लेआम कैसे हो सकता है? यकीनन कत्लेआम पुलिस के सहयोग के बिना मुमकिन नहीं थे।
सिख कत्लेआम में बेरहमी से सिख पुरुषों का कत्ल करना और औरतों पर सामूहिक बलात्कार की अमानवीय घटनाओं को किस मानसिकता के तहत अंजाम दिया जा रहा था? इतनी नफरत से प्रेरित मानसिकता कुछ समय में नहीं पनप सकती है। इसके लिए कई दशकों की ज़रूरत होती है।