“मेरे सवर्ण मित्रों, यह मोदी ही है जिसने हम ब्राह्मणों, ठाकुरों, बनियों, ब्ला ब्ला की सुनी है। यह 10% आरक्षण हमें मिलने से हमारे बच्चों का कुछ तो भला होगा। इस तरह के बहुत से मैसेजेज़ अभी आपको मिलेंगे लेकिन मेरे डियर सवर्ण मित्रों, यह सब पढ़कर खुश होने के बजाय थोड़ा सोचिए कि यह सब कैसे होगा?”
जब आप यह कैसे वाला सवाल घोषणा करने वाली सरकार से पूछेंगे तब देखिएगा कैसे हड़बड़ाहट मचती है। हर साल 2 करोड़ रोज़गार, निर्मल गंगा, मंदिर वहीं बनाएंगे वाले जुमलों की तरह ही यह भी मोदी-शाह जोड़ी का मिशन 2019 का पहला जुमला था। यदि हम इस जुमले का पोस्टमॉर्टम करें तब यह मोदी जी के एसटी-एससी एक्ट मामले में लिए यू-टर्न से सवर्ण समाज में उपजे रोष की भरपाई में फेंका गया एक और जुमला है।
गौरतलब है कि 6 नवंबर 1992 को इंद्रा साहनी और अन्य में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग या इनके अलावा किसी भी अन्य विशेष श्रेणी में दिए जाने वाले आरक्षण का कुल आंकड़ा 50 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। मालूम हो कि एससी के 15%, एसटी के 7.5% और ओबीसी के 27% के कुल योग में ही यह आरक्षण 49.5% हो जाता है।
आरक्षण पर यह खेल कोई नया नहीं है। अपनी दैनिक जीवन की भागदौड़ में व्यस्त हमारे देश की राजनीति में सुप्त रुचि रखने वाली जनता को छलने के लिए यह प्रयास बीजेपी पहले भी कर चुकी है, लेकिन हर बार कोर्ट में जाकर बड़ी चतुराई से सारा दोष कोर्ट के माथे धर देती है।
वर्ष 2007 में राजस्थान में वसुंधरा सरकार ने गुर्जर समेत 4 अन्य जातियों को विशेष पिछड़ा वर्ग बनाकर 5% आरक्षण दिया लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी। वही हरियाणा की खट्टर सरकार ने साल 2012 में जाटों के आंदोलन के बाद जाटों को 10% आरक्षण देने का ढोंग किया लेकिन हरियाणा हाईकोर्ट ने उस पर रोक लगा दी।
अभी-अभी महाराष्ट्र में भी फडणवीस सरकार ने मराठा समाज को 16% आरक्षण देने का विधेयक राज्य के दोनों सदनों में पास कराया है मगर अभी भी राज्यपाल एवं राष्ट्रपति की अनुमति नहीं मिली है, क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के 50% से अधिक आरक्षण ना होने के आदेश पर अटका हुआ है।
अब यदि हम राष्ट्रीय पटल पर इस विषय को देखें तब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए लाया गया संविधान विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पारित हो गया। अब इस विधेयक पर आज बुधवार को राज्यसभा में चर्चा हो रही है। विधेयक पर क्या निर्णय आता है, इस पर देश की निगाहें टिकी रहेगी। फिलहाल मैं चंद पंक्तियों पर आपको छोड़ जाता हूं।
रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे
वोट लेते जाएंगे, पर तारीख नहीं बताएंगे।
अध्यादेश-अध्यादेश कहकर बर्गलाएंगे
फिर सुप्रीम कोर्ट ज़िंदाबाद कहलाएंगे।।