Site icon Youth Ki Awaaz

मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे तो क्या मोदी देश के सफल पीएम हैं?

प्रिय प्रधानमंत्री जी,

आपने अपना पद संभालने के अगले ही पल से लोगों को यकीन दिलाने का प्रयास किया है कि आप देश के हालात हर तरह से बेहतर करेंगे और इसे लेकर मीडिया की कोशिश पर भी कोई शक नहीं कर सकता। सिर्फ यकीन दिलाने और उसके ज़मीनी स्तर पर असर होने में फर्क है।

फिलहाल फिल्म ‘उरी’ और ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की चर्चा ज़ोरों पर है। जहां तक ‘उरी’ की बात है तो सर्जिकल स्ट्राइक हर दौर में होती रही है लेकिन कभी भी किसी सरकार द्वारा उसे अपनी उपलब्धियों में नहीं गिनाया जाता रहा क्योंकि भारत कभी भी किसी भी देश पर पहले आक्रमण करने की नीति में विश्वास नहीं रखता।

द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर को लेकर अगर यह मान भी लिया जाये कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पार्टी से आदेश लेकर पालन करते रहे हैं तो भी उनका कार्यकाल मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल से ज़्यादा नहीं तो दोगुनी बेहतर स्थिति में था, आर्थिक मोर्चे पर भी जिसमे मौजूदा सरकार बुरी तरह विफल साबित हो रही है और रोज़गार पर भी जिसकी स्थिति चिंताजनक होती जा रही है।

हाल ही में आये विधानसभा चुनाव के नतीजे इस बात के सबूत हैं कि मौजूदा सरकार द्वारा जो वादे जनता को दिये गए थे उनमें वह बुरी तरह विफल हो रही है, इसीलिए जनता दूसरे विकल्पों की ओर देख रही है।

अगर मौजूदा सरकार द्वारा क्रियान्वित की गयी महत्वाकांक्षी योजनाओं पर गौर करें तो उनमें से ज़्यादातर दुष्परिणाम या कोई परिणाम नहीं दे सकी जो उनसे अपेक्षित था, मसलन

नोटबंदी

मान लीजिए देश की अर्थव्यवस्था किसी व्यक्ति का शरीर है और उस शरीर से आप 80% खून निकाल ले तो उस व्यक्ति की स्थिति क्या होगी? ठीक वही स्थिति देश की हुई है, जहां देश के पैसे का एक बड़ा प्रतिशत इनफॉर्मल सेक्टर में था जो नकदी पर चलता है और सबसे ज़्यादा नौकरियां नोटबंदी के बाद यही काम करने वाले लोगों को गंवानी पड़ी हैं। यह इनफॉर्मल सेक्टर अपने साथ पूरी अर्थव्यवस्था को नीचे ले आया है और हमारा जीडीपी लगभग 2% गिर गया है जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य अर्थशास्त्रियों ने नोटबंदी के बाद दावा किया था।

जीएसटी

जीएसटी भी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना थी लेकिन इसका आधा अधूरा ढांचा और हड़बड़ी में इसे लागू करना लोगों के लिए तकलीफदेह हो गया है। इससे उपभोक्ता और व्यापारी दोनों ही वर्ग की परेशानी बढ़ी है। जहां उपभोक्ता को हाल ही में हुई जीएसटी बैठक के बाद कुछ राहत मिली है, वही व्यापारी वर्ग अब भी हर महीने जीएसटी भरने के चक्कर में परेशान है।

तीन तलाक बिल

अब अगर हाल ही में संसद में पेश किये गए तीन तलाक बिल की बात करें तो यह भी जीएसटी की तरह उसे भी आधा अधूरा और हड़बड़ी में लागू करवाने का प्रयास है। इसमें कई सवाल है जिनका इस बिल में जवाब नहीं है। यह बिल उन महिलाओं के हक की बात तो करता है जिन्हें तीन तलाक से प्रताड़ित होना पड़ रहा है लेकिन यह बिल उन महिलाओं के बारे में कोई बात नहीं करता जो बिना तलाक दिए अपने पतियों द्वारा नकार दी गयी हैं।

मॉब लिंचिग

प्रधानमंत्री जी इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण विषय जो पिछले 4 सालों में लोगों के लिए ज़रूरी मुद्दा बना है वो है हिंसक भीड़ द्वारा गाय और धर्म के नाम पर किसी की भी हत्या कर देना। पिछले कुछ सालों में इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है और लोग अपने आपको असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। राज्य सरकारें और केंद्र सरकार दोनों ही इस पर किसी भी तरह से काबू पा सकने में कई बार नाकाम हुई हैं, दिसम्बर में भीड़ द्वारा एक पुलिस वाले की हत्या इस बात का ताजा सबूत है।

आशा है आप इसपर विचार करेंगे कि सिर्फ पहले की सरकारों को वजह बताकर आप अपने कार्यकाल की विफलताएं नहीं छुपा सकते। आपको यह बताना होगा कि आपने पिछले 4 साल में क्या-क्या बदला है और अगर कुछ अच्छा हुआ है तो क्या वो जनता को भी महसूस हो रहा है या उसे सिर्फ भीड़ का भय महसूस हो रहा है।

Exit mobile version