किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर हर व्यक्ति को समान तरीके से देखने और हर रूह को सम्मान देने की बात भले ही हम इतने सालों से करते आए हैं लेकिन सच यही है कि हमारे आस-पास रह रहे लोगों के साथ ही हमारा बर्ताव उचित नहीं होता है। हिंसा केवल शारीरिक रूप से किसी को चोट पहुंचाने तक सीमित नहीं है क्योंकि आजकल के समय में हम अपनी सोच और विचारों से भी हिंसा फैलाने लगे हैं।
किसी के शरीर पर ज़ख्म के निशान बनाकर या फिर किसी के मन को दुखी कर रूलाना हो, हिंसा समाज में तेज़ी से बढ़ती एक दूषित बीमारी बनती जा रही है जिसको फैलाने में समाज का हर वर्ग ज़िम्मेदार है। आइए पहले यह समझते हैं कि धैर्य को छोड़ कैसे हम अपने लोगों के साथ ही हिंसक होते जा रहे हैं।
घरेलू हिंसा: घरेलू हिंसा लंबे वक्त से हमारे समाज का हिस्सा बनी हुई है, जिसे समझने में हम असफल रहे हैं। समाज पत्नियों के साथ कैसा व्यवहार करता है यह किसी से छुपी नहीं है। पुरुष प्रधान देश में घरेलू हिंसा की बढ़ती घटनाओं के आकड़ें बताते हैं महिलाओं के प्रति उनके पति भी कितने हिंसक होते जा रहे हैं। बदलते वक्त में समाज अभी भी बदलने को तैयार नहीं है। बलात्कार के बढ़ते मामले और महिलाओं के साथ दुर्व्यवाह चीख-चीख कर बता रहे हैं कि महिलाओं के प्रति समाज का नज़रिया कितने निचले स्तर पर पहुंच चुका है और पुरुष जो लगातार हिंसक होते जा रहे हैं।
सुझाव और समाधान :घरेलू हिंसा के लिए भले ही कानून हैं लेकिन घर की महिलाओं को बाहर निकलकर शिकायत दर्ज कराना आज भी सरल कार्य नहीं है। इसलिए ज़रूरी है कि ऐसे मामलों में महिलाओं के घर पर बैठकर ही फोन या मैसेज के ज़रिए शिकायत दर्ज करवाने का ऑप्शन देना चाहिए।
कई बार शिकायत करने के बाद महिला अपने माता-पिता के घर जाकर रहने लगती है। ऐसे वक्त में मेंटेनेंस देने का प्रावधान बिना किसी देरी के होनी चाहिए। बलात्कार और शोषण के मामलों के मद्देनज़र लगातार कानूनों के सख्त होने पर भी घटनाएं कम नहीं हो रही हैं। ऐसे में समस्या की जड़ को समझते हुए स्कूली शिक्षा के दौरान ही बच्चों को जानकारी देनी चाहिए कि महिलाओं के प्रति उनका व्यवहार कैसा हो।
बलात्कार या शोषण के मामलों में पुलिस का रवैया काफी हल्का देखने को मिलता है जहां वे शिकायत दर्ज करने में देरी करते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा पुलिस के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।
भीख मांगना: भीख मांगना या सड़कों पर किसी भी प्रकार से मदद मांगना उस व्यक्ति की मजबूरी होती है जो लाचारी की वजह से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में सक्षम नहीं होता। हमे समझना होगा कि यह काम करते हुए उसे ना तो आनंद आ रहा होता है और ना ही वह शौक से करता है। असभ्य समाज में हम उनको सड़क के किसी कोने पर बैठने की जगह भी देने को तैयार नहीं होते हैं।
कई दफा शराब के नशे में लोग तेज़ रफ्तार में गाड़ियां चलाते हैं और इस दौरान उन्हें अंदाज़ा भी नहीं होता कि किसी कोने में कोई लाचार व्यक्ति सोया होगा। कई दफा तो नींद में ही गरीब तबकों के लोगों की मौत हो जाती है। इतना ही नहीं हम अपने शब्दों के माध्यम से उनका मज़ाक उड़ाना अपना रुतवा समझते हैं।
सुझाव और समाधान: ‘हिट एंड रन केस’ में देखा गया है कि शोहरत वाले लोग पैसों के बल पर मामला सुलझा लेते हैं लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि सड़क पर सो रहे लोगों को कानून की कम जानकारी होती है। ज़रूरी यह है कि सरकार मामलों को रफा-दफा करने के बजाए सज़ा के बारे में ध्यान दे।
घरेलू कामगार: आपके घरों में आकर आपका काम करने वाले लोग जिनको आप अपना नौकर कहते हैं, उनके साथ आपका सुलूक कैसा होना चाहिए? क्या कभी इस बात पर आपने गौर की है? अपना घर चलाने के लिए अगर कोई आपके घर आकर आपके झूठे हुए बर्तन धो रहा है तब यह बात आपको भी समझना होगा कि आपने उस व्यक्ति को खरीद नहीं लिया है।
सुझाव और समाधान: घर में आकर काम करने वाले लोगों को नौकर से इंप्लॉई और वर्कर के ग्रुप में लाकर उनको उनके हक और अधिकार देने की ज़रूरत है जहां वे हिंसा के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर पाएं। उनके खिलाफ हिंसा करने वाले मालिकों पर उचित कार्रवाई हो सके। कानून बनाने से भी ज़रूरी है कि एक सरल प्रोसेज़ का इज़ाद हो जिसके ज़रिए ये वर्कर्स इपनी शिकायत दर्ज करा पाएं। अधिक समय तक काम करवाने वाले मालिकों को ओवर टाइम देने की जगह कंपनसेशन देने प्रावधान हो।
जूता पॉलिस करने वाले: कहते हैं जूते चमकते हैं तो लोगों की किस्मत भी चमकने लगती है लेकिन उन लोगों के सम्मान की बात कोई क्यों नहीं करता जो आपके जूते चमकाने के लिए सर्दी, गर्गी या फिर बारिश के मौसम में भी सड़क किनारे बैठे होते हैं। कई दफा लोग उनके साथ अच्छा व्यवहार भी नहीं करते हैं, यहां तक कि उनके साथ मारपीट तक किया जाता है।
सुझाव और समाधान : जूते चमकाने वाले लोगों की हालत दयनीय है। ऐसे में सरकार को ज़रूरत है कि एक झोपड़ी ही सही मगर उनको एक छत देने की ज़रूरत है जहां वे बैठकर यह काम कर सकें। यदि बच्चे इस काम को करते हुए दिख जाए तब आम लोगों की यह ज़िम्मेदारी होनी चाहिए कि उसे किसी संस्था या पुलिस के ज़रिए स्कूल भेजा जाए।
रिक्शे वाले: मंजिल तक पहुंचने के लिए सफर पर चलना पड़ता है जिसके लिए रिक्शे और ऑटो वाले हमारी काफी मदद करते हैं लेकिन उस मदद के बदले हमारा नज़रिया कैसा होता है यह किसी से छुपी नहीं है। छोटी सी बात पर लोग उनकी गर्दन पकड़ लेते हैं। वह आपको आपकी मंज़िल तक पहुचा देता है क्योंकि खुद को बहस करने योग्य नहीं समझता है। कभी सोचिएगा कि आप उन्हें कितनी तकलीफ पहुंचाते हैं।
सुझाव और समाधान: रिक्शे और ऑटो वालों पर हिंसात्मक घटनाओं की खबरें अधिक सुनाई देती है क्योंकि लोग उन्हें कमज़ोर समझते हैं।
होने वाली हिंसा की बातें इसलिए भी ज़्यादा सामने आती हैं क्योंकि उनकी आवाज को लोग कमज़ोर समझते हैं लेकिन सरकार अगर उनकी आवाज़ को मज़बूती से सुने तब शायद हिंसा के आकड़ों में कमी आए।
पानी पिलाने वाला व्यक्ति: क्या आपने कभी सोचा है कि आपके ऑफिस में आपको पानी पिलाने और झाड़ू लगाने वाले व्यक्ति के साथ आपका व्यवहार कैसा होता है? इसका जवाब आप बेहतर दे पाएंगे क्योंकि लोग उनके साथ हमेशा भेदभाव करते हैं। क्या इसकी वजह यह है कि वे आर्थिक रूप से कमज़ोर होते है? ऐसे लोगों पर ज़ुल्म करते हुए हमें शर्म आनी चाहिए।
सुझाव और समाधान: ऑफिस के मामलों में अगर पानी पिलाने या झाड़ू लगाने वालों की सेवाओं को पंजीकृत करने का कोई प्रावधान लाया जाए तब उनकी ज़िन्दगी में तब्दीली आ सकती है। उन्हें हिंसा से बचाने के लिए सरकारी योजनाए भी उनके लिए मददगार साबित हो सकते हैं।
नालियों की सफाई करने वाला: नालियों की सफाई करने वाले व्यक्तियों पर जाति सूचक शब्दों से आप जिस तरीके से हिंसा करते हैं वह शर्मनाक है। आपकी सुविधा के लिए कोई आपकी सेवा कर रहा है और आप उन्हें अपने शब्दों के ज़रिए ठेस पहुंचा रहे हैं। आप उन्हें सिर्फ इसलिए सम्मान नहीं देते हैं ताकि आपकी इज्ज़त कम ना हो जाए।
सुझाव और समाधान: नालियां साफ़ करने वाले लोग हो या सड़को की सफाई जरुरी है की इन लोगों के लिए एक सिस्टम बनाया जाये और सरकार उनको नायक समझे तो शायद सूरत बदल सके क्योकिं सम्मान सरकार की तरफ से नहीं मिलेगा तो हिंसा कम होने की सम्भावना कम है।
हमें सोचना होगा कि हिंसा जब समाज के अलग-अलग भागों में अपने पांव पसार चुकी है तब क्या सिर्फ कानून बनाने से हल निकल जाएगा? समाज में व्यापक स्तर पर सुधार लाने के लिए हर व्यक्ति को कमज़ोर और असहाय लोगों की आवाज़ बनकर सामने आना होगा।