तारीख, 20 फरवरी-2017, सुबह से जीवन में बदलाव के संकेत मिलने शुरू हो गये थे। सामान्यत: मैं खुद ही अपना क्लासिक 350 बुलेट चलाकर ऑफिस आता हूं लेकिन आज मेरा भाई मुझे ड्राइव करके कार में छोड़ने आ रहा था। सुबह से ही अपनी दिनचर्या के हर काम में, दुगना समय लग रहा था। कल, रविवार की छुट्टी, पूरा दिन घर पर ही था। दोस्तों-रिश्तेदारों के फोन आ रहे थे, कुछ वह भी थे जिनसे समय के आभाव में कई महीनों से बातचीत नहीं हुई थी। मेरे पास समय ही समय था जिसके आभाव की मुझे अक्सर शिकायत रहती है।
जिस सहानुभूति को मैंने अपने जीवन में कभी भी स्वीकार नहीं किया है उसी सहानुभूति का एहसास हर ओर से करवाया जा रहा था। यहां कुछ तो हुआ था जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी थी। तारीख, 18 फरवरी 2017 दिन शनिवार, ऑफिस के बाद, अगले दिन की छुट्टी का अच्छा एहसास था। आम दिनों की तरह मैं थलतेज स्थित गुरुद्वारा साहिब में माथा टेककर, सरखेज-गांधीनगर हाइवे से गांधीनगर की ओर अपने घर की ओर चल पड़ा जो की चांदखेडा में है। उस रास्ते में कारगिल पेट्रोल पंप से पेट्रोल भरवाकर यहीं के एटीएम से कुछ रुपये निकाल लिये।
मेरे लिये शनिवार का मतलब सीडी लगाकर देर रात तक फिल्म देखना है। रात में खुद चाय बनाना, कुछ ब्रेड गर्म करके सैंडविच की तरह प्लेट में सजाकर, पूरी तरह से सिनेमा एंज्वाय करता हूं। देर रात तक टीवी देखने का एक और भी कारण है, दिन में बच्चों की मौजूदगी से मैं टीवी पर अधिकार खो देता हूं और ये तभी मिलता है जब वह रात को सो जाते हैं।
उस दिन भी मैं अपने घर की ओर जा रहा था, मन ही मन में आज की रात पूरी तरह से सिनेमा को समर्पित करने का इरादा बना लिया था। गोतो चोकड़ी का पुल उतरकर आगे से, जब मैं दाईं ओर मुड़ा, जहां इतना समय आराम से था कि दूसरी तरफ से आ रही गाड़ियों के पहले मैं सड़क पारकर पाऊं लेकिन वहीं दूसरी तरफ से आ रही, गोल्डन (सुनहरी) रंग की ऑल्टो कार इतनी तेज़ी से मेरी तरफ आ गयी कि मुझे और मेरे मोटर साइकिल को अपनी चपेट में ले लिया। एक्सीडेंट इतना भयानक था कि इसकी आवाज़ सुनकर आस-पास के लोग जमा हो गएं।
मोटर साइकिल पूरी तरह से 180 डिग्री के कोण पर घूम गया था। स्टैंड, स्टेरिंग पूरी तरह से बेंड हो गई थी और पेट्रोल टंकी से बाहर निकल रहा था। मुझे, इतना याद है कि जब ऑल्टो ने टक्कर मारी, तब मैं इसके बोनेट से टकरा कर नीचे गिर गया था, मेरी पगड़ी सडक पर थी। सबसे पहले मैंने पगड़ी को उठाकर अपने सर पर रखा और इतने में जमा हुए अंजान लोग मुझे सड़क के किनारे ले आएं। मैं खुश था, मुझे कहीं कोई खरोंच तक नहीं आयी थी लेकिन दाएं हाथ से बाएं हाथ की सबसे बड़ी या बीच की उंगली को दबाकर रखा हुआ था।
जब दर्द का एहसास हुआ और नज़र वहां गई तो पता चला कि मेरी वो उंगली, अपने नाखून तक पूरी तरह से कट चुकी है। मतलब नाखून तक का हिस्सा इस उंगली से गायब है। लहू बह रहा था दोनों हाथ और कपड़े लाल रंग के हो चुके थे। इतने में कुछ अनजान लोग जो अक्सर इस तरह के एक्सीडेंट में एक फरिश्ते की तरह मदद करते हैं, मेरी मोटर साइकिल किनारे पर लेकर आये और मुझे संभाला। इतने में मैंने देखा कि ऑल्टो से एक महिला और ड्राइवर नीचे उत्तरे लेकिन, दूसरे ही पल वह गाड़ी में बैठकर, रफूचक्कर हो चुके थे। इसी बीच, मैंने अपने घर वालों को फोन कर दिया और यही अंजान फरिश्ते, मुझे बगल एक मंदिर के बाहर खुली जगह पर ले गएं जहां मैं बेंच पर बैठ गया।
घर से भाई और पिता जी आ गये, मैं उन अंजान फरिश्तों का शुक्रिया करके गाड़ी में बैठ गया। डॉक्टर के वहां ड्रेसिंग करके उन्होंने दो इंजेक्शन लगाये और कुछ दवाइयों के साथ मुझे घर भेज दिया। दूसरे दिन एक्स-रे करवाने पर दिखाई दिया की उंगली के ऊपर के पहले जोड़ से थोड़ा पहले हड्डी टूट गयी। अगर थोड़ी और ज़्यादा नीचे तक ये उंगली या इसकी हड्डी कट गई होती तो यकीनन ऑपरेशन होना था लेकिन यहां डॉक्टर साहब ने एक महीने तक ड्रेसिंग करने को कहा जिससे उंगली के ऊपरी भाग में चमड़ी आ जाने से घाव भर जायेगा।
एक हाथ की एक उंगली वह भी सिर्फ नाखून तक गायब हो जाने से मेरी ज़िंदगी बदल गई थी। यहां अवलोकन करना ज़रूरी है कि इसका कसूरवार कौन है? मैं खुद, ऑल्टो कार का चालक या व्यवस्था? मैं रोज़ इसी रास्ते से जाता हूं और इस मोड़ पर गाड़ी धीरे करने के लिये स्पीड ब्रेकर भी बनाकर रखे हैं। वो ऑल्टो स्पीड ब्रेकर पर थी और दूसरी कोई गाड़ी इसके आस-पास नहीं थी। मैं यहां से आसानी से जा सकता था लेकिन अचानक से ऑल्टो गाड़ी ने अपनी स्पीड बढ़ा दी। इसकी दो वजह हो सकती हैं- एक, ड्राइवर ने ब्रेक की जगह ऐक्सलरेटर दबा दिया हो, लेकिन गाड़ी बहुत दूरी पर थी मतलब अगर ड्राइवर मुस्तैद होता तो ये, गलती सुधारी जा सकती थी।
इसकी दूसरी वजह थी कि गाड़ी में पूरा परिवार मौजूद लग रहा था। आगे की सीट पर कार चालक, उनके साथ एक और पुरुष और पीछे की सीट पर दो महिलाएं और बच्चे थे।यहां, जिस निष्कर्ष पर पंहुचा हूं वह यह है कि कार चालाक का ध्यान बातों में था जिससे स्पीड बढ़ा दी गयी लेकिन नज़रें सडक पर ना होकर बातों में थी।
वे मुझे नीचे गिराकर खुद को अकेला पाकर वहां से रफूचक्कर हो गएं। इंसानियत के नाते, मेरा हाल चाल तो पूछ सकते थे। अगर, ये एक्सीडेंट रात के 9 बजे ना होकर कुछ रात के 2-3 बजे होता जब आस-पास के लोग जा चुके होतें तो वे एक लावारिस को यूंही छोड़कर भाग जाते। अब, इसका एक और पहलू देखें जो है व्यवस्था। यहां ये देखना होगा कि गांधीनगर-सरखेज हाइवे आज से कुछ 30 साल पहले तक अहमदाबाद शहर से एक बाय पास रोड था। गाड़ियां कम थीं और दोड़ती थीं, आज यह पूरी तरह से शहर के बीच में आ चुका है। गाड़ियों की संख्या बहुत ज़्यादा हो गयी हैं लेकिन स्पीड उतनी ही है।
एक और चीज़ गौर करने लायक है कि सोला ब्रिज से गोता ब्रिज तक बीच में हाईकोर्ट आता है जिसके कारण ट्रैफिक पुलिस भी यहां मौजूद रहती है और स्पीड ब्रेकर भी अच्छी संख्या में हैं, जो गाड़ियों को धीमा होने के लिये मजबूर कर देते हैं। वही गोता ब्रिज के बाद स्पीड ब्रेकर बहुत कम संख्या में और छोटे आकार में हैं लेकिन ट्रैफिक पुलिस का यहां अता-पता नहीं है। अगर किसी नेता को यहां से गुज़रना हो तो भारी संख्या में ट्रैफिक पुलिस गाड़ियों की रोकथाम कर रही होती है लेकिन आम नागरिक के लिये, शायद यहां कोई व्यवस्था मौजूद नहीं हैं।
वहीं सोला ब्रिज तो अकस्मात प्रभावित क्षेत्र की तरह लगता है जहां आये दिन एक्सिडेंट होते रहते हैं। गोता ब्रिज भी कुछ कम नहीं है, मतलब ब्रिज के दोनों और शुरुआत में ही दोनों तरफ की सड़क दो रास्तों में कट जाती हैं मसलन साइड रोड और मेन रोड। यहां से गाड़ियां दोनों तरफ की सड़क पर कोर्स कर रही होती हैं जहां एक्सीडेंट होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक सालाना, रोड एक्सीडेंट में आतंकवादी हमलों से ज़्यादा भारतीय मारे जाते हैं। 2014 में कुल 141526 लोग एक्सीडेंट में मारे गये थे, जिसका प्रतिदिन औसत लगभग 388 प्रति दिन होता है जबकि 2014 में हुए आतंकवादी हमलो में कुल 83 लोगों की मौत हुई थी। यहां व्यवस्था एक अपराधी के रूप में नज़र आ रहा है और इसे समय रहते अपनी गलती या लापरवाही का एहसास नहीं हुआ तो ये प्रति दिन एक्सीडेंट से मरने वालों की संख्या भयंकर रूप धारण कर सकती है।
इसका इल्ज़ाम हमारी व्यवस्था पर ही होगा और इसका जवाब भी व्यवस्था को ही देना होगा। जब मैं वहां, सड़क के किनारे मंदिर के बाहर खुली जगह पर बैठा था तब अंजान फरिश्तों ने मुझे बताया कि सरदार जी आप नसीब वाले हैं कि बच गएं वरना यहां दोपहिया चालक कम ही बचते हैं। लग भी रहा था कि अगर आल्टो की जगह कोई एस.यु.वी. होती और मेरे पास बुलेट ना होकर कुछ एक्टिवा या स्प्लेंडर होता जान जा सकती थी।
कैसे रुक सकते हैं एक्सीडेंट्स
यहां इस सड़क पर वाहनों के एक्सीडेंट को रोकने के लिये जो सबसे जरूरी है वह है व्यव्स्था की मौजूदगी जहां किसी भी तरह से जाम ना होने के हर उपाय पर काम होना ज़रूरी है। सभी प्रकार के वाहनों की गति को सख्ती से मर्यादित करने की आवयश्कता है। VIP गाड़ियों के आने-जाने का समय पहले से सूचित किया जाए ताकि जाम की हालत ना बनें। अगर दुपहिया, रिक्शा और कार के लिये अलग-अलग सड़क लाइन बना दी जाये और इसका सख्ती से पालन करवाया जाये तो यहां एक्सीडेंट होने से बहुत हद तक रोका जा सकता है।
मुख्य सड़क पर बाकी रास्तों के मिलान का रखा जाए खयाल