यह कहानी हमारे खेतों में काम करने वाले राम स्वरूप की पत्नी की है। करीब एक महीने पहले की बात है जब राम स्वरूप की पत्नी सुबह- सुबह हमारे घर आ गई। बहुत रो रही थी, साथ में उसका छोटा सा बेटा भी था, वह भी बहुत रो रहा था। खैर! वह तो बच्चा है, बच्चे का रोना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन एक शादीशुदा औरत का इस तरह रोते हुए हमारे घर पर आना, और वो भी अकेले…
शादी के बाद तो अकेले औरत का अपने मायके जाना भी एक सवाल होता है जो लोगों के चेहरे पर आपके पहुंचने से पहले ही पहुंच जाता हैं। अकेले आ गई? पति छोड़ने नहीं आए? पड़ोसी तो जवाब सुनने से पहले ही अपनी सोच ज़ाहिर कर देते हैं, जरूर झगड़ा करके आई होगी! इसलिए अकेले पीहर तो क्या, घर से बाहर भी नहीं निकल सकते। सब जानते हुए भी आज इनको अपने घर की दहलीज़ पार करनी पड़ी, यह भी नहीं सोचा जब किसी को पता चलेगा तो लोग क्या कहेंगे।
माँ ने बुलाकर बैठने को कहा और फिर चाय बना कर दी। माँ ने बड़े प्यार से पूछा, क्या हुआ है? वह रोते हुए बोली, ‘मुझे सौ रुपए दे दो, रिपोर्ट लिखवाने पुलिस थाने जाना है।’ माँ ने फिर पूछा, ‘लेकिन हुआ क्या है? किसकी रिपोर्ट दर्ज करानी है?’
राम स्वरूप की पत्नी और ज़ोर से रोने लगी मानो औरत होने के कारण अपने आपको बहुत असहाय महसूस कर रही हो, उसकी हालत देख कर शायद कोइ भी उसके असहाय होने का अंदाज़ा लगा सकता था। 6-7 कि.मी पैदल चलकर आई थी, उपर से छोटा बच्चा भी साथ था।
बात करने पर उसने बताया कि मेरे जेठ-जेठानी और हम एक ही घर में रहते हैं। मेरे जेठ जी रोज़ कोई ना कोई बात पर लड़ाई-झगड़ा करते हैं और फिर गालियां देने लगते हैं। कभी कभी मेरे उपर चीजे़ें भी उठाकर फेंक देते हैं। आज तो हद ही हो गई, उन्होंने मुझे मारने के लिए चुल्हे से जलती लकड़ी तक उठा ली। मेरे ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनकर जेठानी आ गई और आकर बड़ी मुश्किल से मुझे बचाया। मुझे उनके खिलाफ थाने में रिपोर्ट लिखवानी है, उन्हें जेल में बंद करवाना है।
यह बातें सुनकर माँ हैरान रह गई और उससे पूछा, ‘राम स्वरूप को नहीं पता तेरे साथ ऐसा हो रहा है?’ माँ द्वारा यह पूछे जाने पर वह कहती है, ‘उनको सब पता हे भाभी जी! लेकिन मेरे पति छोटे भाई हैं, बड़े भाई के सामने कुछ नही बोल पाते।’
मैं मानती हूं कि बड़ों की इज्ज़त करना हमारे संस्कारों में है लेकिन जब बात सही गलत की हो तब क्या हमारा यह फर्ज़ नहीं बनता कि हम सही के साथ खड़े रहें। ऐसा किसने कहा कि बड़े हैं तो हमेशा सही ही होगें। राम स्वरूप की पत्नी की ही कहानी उठाकर देख लीजिए जहां सारा फर्ज़ और कर्तव्य सिर्फ बड़े भाई के लिए ही है, पत्नी के लिए कुछ नहीं है।
आखिर वह भी अपना घर, माँ-बाप, परिवार सब कुछ छोड़कर सिर्फ एक इंसान पर भरोसा करते हुए आती है। वह कितनी निराश होती होगी जब उसे उस इंसान का भी साथ नहीं मिलता होगा। खैर, यह सब बातें ज़हन में चल ही रहीं थी कि पिताजी भी आ गए। पिताजी पेशे से वकील हैं और इस लिहाज से जब राम स्वरूप की पत्नी ने उन्हें देखा तब उसकी आँखों में उम्मीद की एक किरण जागी। वैसे भी पिताजी गाँव में लोगों की काफी मदद करते हैं।
माँ ने सब कुछ पिताजी को बता दिया, पिताजी का जवाब सुनकर तो मानो उम्मीद के सारे दीये एक साथ बूझ गए हो। उन्होंने कहा, “यह सब छोटे-मोटे झगड़े होते रहते हैं, मारने के लिए लकड़ी उठाई लेकिन मारा तो नहीं ना। तेरे शरीर पर मार के निशान भी नहीं हैं, वहां थाने में तेरी कोइ नहीं सुनेगा। तू घर जा मैं उसको फोन करके समझा दूंगा। दूसरी बात, चल तेरे कहने पर मैं थाने में रिपोर्ट भी लिखवा दूंगा पर तुझे रहना तो उसी घर में है, घर की बात बाहर जाएगी और फिर बदनामी होगी। इन सब चक्करों में अगर तेरे पति ने तुझे छोड़ दिया तो तू कहां जाएगी?”
पिताजी की बातों को वह सुन तो रही थी लेकिन ऐसा लग रहा था कि वह पूर्ण रूप से सहमत नहीं है। राम स्वरूप की पत्नी ने फिर पिताजी से कहा, ‘भाईसाब, बहुत दिनों से वह मुझे परेशान कर रहा है और आज बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर यहां आई हूं। अगर कुछ किए बिना चली गई तो उसकी हिम्मत ओर बढ़ जाएगी।’
खैर, पिताजी ने उसकी बातों को अनसुना कर दिया और निराश होकर उसे घर जाना पड़ा। माँ ने जाते वक्त उसे सौ रुपये भी दे दिए लेकिन अब लग रहा था जैसे उसे इन सौ रुपयों की ज़रूरत नहीं रही। उसके जाने के साथ ही मेरी बेचैनी बढ़ने लगी और मैं यह सोचने लग गई कि वह क्या सोच रही होगी, किसी ने मेरा साथ नहीं दिया। अब क्या करेगी और कहां जाएगी वह?
यह कहानी सिर्फ राम स्वरूप या उसकी पत्नी की नहीं है बल्कि ऐसी कितनी औरतें हैं जो कभी समाज के डर से तो कभी पति के छोड़ देने के खौफ से यातनाएं झेलती रहती हैं। यह चीज़ें खासकर ग्रामीण इलाकों में ज़्यादा देखने को मिलती हैं।
हमारे देश में रोज़ ना जाने कितनी औरतों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है। उन्हीं महिलाओं में से अगर कोई महिला हिम्मत दिखाते हुए अपनी आवाज़ उठाती भी हैं तब किसी ना किसी डर से उसे दबा दिया जाता है। आखिर ऐसा क्यों? अगर औरत होने के नाते मैंने आवाज़ उठाई, पुलिस में जाकर एफआईआर करा दी तब इससे घर की बदनामी होगी?
मुझे यह सब करने पर मजबूर किसने किया? मुझ पर हाथ उठाने से पहले मेरे पति के अंदर भी तो यही डर होना चाहिए। क्या रिश्ते निभाने की पूरी ज़िम्मेदारी सिर्फ औरतों की ही होती है? अगर गलती से भी कभी उसने अपने आत्म-सम्मान को बचाने की कोशिश की तब वह सब रिश्तों मे अकेली पड़ जाती है।
मैं मानती हूं कि बहुत सी महिलाएं अपने अधिकारों का दुरुपयोग भी करती हैं और ऐसे कई मामले वर्तमान में सामने आए हैं लेकिन इससे सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। मैं अंत में उन सभी महिलाओं से यही कहूंगी कि यह लड़ाई आपकी है और कोई दूसरा आपके लिए अपनी आवाज़ बुलंद करने नहीं आएगा। यह लड़ाई आपको खुद लड़नी होगी।