कल यानी विधानसभा चुनावों के नतीजों के दिन जहां मध्यप्रदेश में दिन के खत्म होने तक भी यह साफ नहीं हो पाया था कि बहुमत का आंकड़ा किसको मिलने जा रहा है, तो वहीं राजस्थान में 99 सीटों के साथ कॉंग्रेस अपने सहयोगी के साथ मिलकर सरकार बनाती हुई नज़र आने लगी। छत्तीसगढ़ में जहां भाजपा का कॉंग्रेस ने सफाया कर दिया है, वहीं मिज़ोरम में कॉंग्रेस का सफाया हो गया है और तेलंगाना में भी कॉंग्रेस की हार हुई है।
नतीजे भले ही 5 राज्यों के आये हो लेकिन नज़र सबकी 3 राज्यों पर थी, जहां भाजपा की सरकार थी और जिन राज्यों का 2019 के नज़रिये से महत्त्व भी है। उन तीन राज्यों के नतीजे बता रहे हैं कि कॉंग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया है लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सत्ता हासिल करने के लिए कॉंग्रेस को 2 राज्यों में काफी मेहनत करनी पड़ी है और रास्ता इतना सरल नहीं रहा है।
5 बड़ी बातें जो इन राज्यों से आये नतीजों से समझ सकते हैं-
1. जोड़ियां नहीं जनता है सुप्रीम-
वैसे तो हर विधानसभा के अपने मुद्दे होते हैं और उन मुद्दों पर बहस के बाद जनता अपना फैसला देती है लेकिन 2014 के बाद माहौल कुछ ऐसा बनाया गया कि अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी को हराया नहीं जा सकता। जहां भाजपा अपनी नीतियों की वजह से हार भी रही हो वहां यह जोड़ी पार्टी को जीत दिला देती है।
चुनाव के नतीजों से साफ है कि इस देश की जनता को मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है और आप भले ही संगठित तौर पर मज़बूत हो लेकिन चुनाव जितने के लिए आपको मुद्दों पर ही बहस करनी पड़ेगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जनता अपना मूड बदल सकती है, क्योंकि लोकतंत्र में चाणक्य नीति या जोड़ियां नहीं जनता सुप्रीम है।
2. कॉंग्रेस की नहीं है सुनामी-
छत्तीसगढ़ को छोड़कर राजस्थान और मध्यप्रदेश में यह दिख रहा है कि कॉंग्रेस अपनी तरफ माहौल बनाने में विफल रही है और भाजपा को सत्ता से बाहर करने के बावजूद जीत उस तरह से नहीं मिल पाई जिसकी उम्मीद कॉंग्रेस ने की होगी।
कॉंग्रेस ने अपना संगठन भले ही मज़बूत किया हो और चुनाव डटकर लड़ी हो लेकिन आंकड़ें बता रहे हैं कि किसी भी तरह का एकतरफा माहौल कॉंग्रेस नहीं बना पाई है। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा ने कड़ी टक्कर दी और कॉंग्रेस को एक-एक सीट के लिए कड़ा मुकाबला करना पड़ा, जो कॉंग्रेस के लिए 2019 के लिहाज़ से एक सोचने का विषय है।
3. मोदी जी की हवा नहीं-
मोदी जी की हवा की चर्चा विधानसभा चुनावों में इसलिए हुई क्योंकि चुनाव में रैली कर प्रधानमंत्री अपने काम जनता को बता रहे थे। भाजपा का अनुमान यह था कि भले ही राज्य सरकार इतनी मज़बूत ना हो लेकिन प्रधानमंत्री की रैलियों से माहौल बदल जायेगा क्योंकि प्रधानमंत्री की हवा चल रही है।
यहां पर यह बताना भी ज़रूरी है कि छत्तीसगढ़ में 55 सीटों से ज़्यादा जितने की बात और बाकी 2 राज्यों में सरकार बनाने की बात भाजपा इतने भरोसे से इसलिए कर रही थी क्योंकि प्रधानमंत्री अपने किये गए कामों पर भी वोट मांग रहे थे।
लेकिन किसी भी प्रकार की हवा किसी भी राज्य में देखने को नहीं मिली और छत्तीसगढ़ में तो एक तरह से भाजपा का सफाया ही हो गया।
4. राहुल गाँधी को कमज़ोर नहीं समझ सकते-
तीनों राज्यों में कॉंग्रेस ने अपने मुख्यमंत्री के चेहरे का ऐलान नहीं किया था तो इस बात को दरकिनार नहीं कर सकते कि कॉंग्रेस अध्यक्ष के नाम इस जीत को सजाया जायेगा। उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी थी कि वो इस देश को समझने में विफल रहे हैं लेकिन इन तीनों राज्यों के चुनावों में इस देश को समझने की ललक और जिज्ञासा साफ देखने को मिली है, जहां वो जनता से बात करके उनकी समस्याओं को सुन रहे थे।
भाजपा का कोई भी नेता राहुल गाँधी को मज़बूत नेता मानने को तैयार नहीं था और शायद उनका यह अहंकार उनपर भारी पड़ गया, राहुल गाँधी एक नेता के तौर पर उभरकर आये।
यहां पर यह भी नहीं भूलना होगा कि उनको उभारने में भाजपा ने अहम योगदान दिया है क्योंकि जितना वो राहुल गाँधी का मज़ाक बनाते रहे हैं, उतना उनको अहमियत देते गए। इसका नतीजा यह हुआ कि 2019 से पहले राहुल गाँधी ने अपनी एक पहचान तो बना ली। इसके साथ ही उन्होंने यह भी साबित कर दिया कि वह चुनाव भी जीत सकते हैं।
5. ना अली ना बजरंग बली, बेरोज़गारी और किसानों की समस्या है मुद्दा-
योगी आदित्यनाथ को जब स्टार प्रचारक के तौर पर चुनाव प्रचार के लिए भेजा गया तो उन्होंने कहा 3 राज्यों में भाजपा की सरकार आनी तय है क्योंकि नतीजों का ऐलान मंगलवार को होना है और हनुमान जी भाजपा के साथ हैं।
अब नतीजे तो मंगलवार को ही आये लेकिन वो भाजपा के पक्ष में नहीं आए। तो सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या हनुमान जी को दलित कहने से हनुमान जी भाजपा से नाराज़ हो गए हैं ।
देश के युवाओं को रोज़गार चाहिए और किसान आज गहरी समस्या से जूझ रहा है जिसका हल निकालने का सपना दिखाकर भाजपा ने 2014 में सरकार बनाई थी। सवाल यह नहीं है कि कौन अली की तरफ है और कौन बजरंग बली के साथ। मुद्दा देश के सामने है कि 2019 का चुनाव आने वाला है और 2014 में किये हुए वादों में से कितने भाजपा सरकार ने पूरे किये हैं।
चुनाव में हार जीत तो लोकतंत्र का हिस्सा है लेकिन पत्रकार और मीडिया वर्ग को प्रधानमंत्री से अब यह तो पूछ ही लेना चाहिए कि आप रटे रटाये सवालों के इंटरव्यू से दूर प्रेस कॉंफ्रेंस कब करेंगे। शायद इस हार के बाद उनको यह सवाल पूछने की थोड़ी हिम्मत तो आ ही सकती है क्योंकि चुनावी राजनीति और लोकतंत्र में कोई भी राजा बनकर नहीं रह सकता।