उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में कल कानून की लाश बिछा दी गई। दावे के हिसाब से भीड़ को किसी गाय के शव के अवशेष मिले, भीड़ उस अवशेष को लेकर पुलिस थाने चली गई। पुलिस के समझाने के बावजूद भीड़ बेकाबू हो गई और पुलिस पर पत्थरबाज़ी शुरू कर दी। भीड़ ने पुलिस की गाड़ियों को आग लगा दिया और पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दी जिससे इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की गोली लगने से मृत्यु हो गई। एक स्थानीय युवक की भी मौत हो गई।
योगी आदित्यनाथ चुनावी रैलियों में व्यस्त हैं और लोगों को हैदराबाद से भगाने की धमकी दे रहे हैं। क्या उन्हें पता है कि उनके राज्य से कानून का राज भाग चुका है?
पत्थरबाज़ी और वर्दीधारियों को मारने का काम तो आतंकी करते हैं ना? लेकिन मैं कश्मीर की बात नहीं कर रहा हूं, बुलंदशहर की बात कर रहा हूं। इसलिए आप ये मान सकते हैं कि उन शांति पसंद लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो गई होंगी जिससे वो पुलिस पर हमला करने के लिए मजबूर हो गए।
सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग रोकने के लिए सभी राज्यों की पुलिस को स्पेशल टीम बनाने का निर्देश दिया था, और भी बहुत निर्देश दिए थे। अब भीड़ इतना वीभत्स रूप ले चुकी है कि सुप्रीम कोर्ट को पहले निर्देश जारी करना चाहिए कि पुलिस अपनी सुरक्षा खुद कैसे करे।
एक भीड़ का गाय के नाम पर पुलिस चौकी को घेरकर पुलिस इंस्पेक्टर को सरेआम गोली मार देने की घटना भी अगर आपको विचलित नहीं कर रही है तो आप गहरी नींद में हैं। नींद से जल्दी जाग जाइए वरना ऐसा ना हो कि जब तक आपकी आंखें खुलें तब तक आपके घरों के नौजवान भी इस भीड़ का हिस्सा बन जाएं।
हापुड़ लिंचिंग में पुलिस ने भीड़ द्वारा मारे गए युवक के परिवार पर केस वापस लेने का दबाव बनाया और गाय के नाम पर हुई मॉब लिंचिंग को सड़क दुर्घटना का नाम देने की कोशिश की। इसी हापुड़ लिंचिंग केस में एनडीटीवी के सौरभ शुक्ला ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया जिसमें मुख्य आरोपी राकेश सिसोदिया कैमरे पर कहता है कि पुलिस भी उनके साथ है और उसने पुलिस के सामने गर्व से बोला कि उसने गाय की रक्षा करने के लिए हत्या की और आगे भी करेगा।
क्या पुलिस को अब भी समझ नहीं आ रहा कि इन 4 सालों में कैसे नेताओं ने उन्हें अपनी कठपुतली बना कर एक ऐसा राजनीतिक माहौल बना दिया है कि कोई भी भीड़ गाय के नाम पर किसी को भी मार देती है और कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। जब केंद्रीय मंत्री भीड़ बनाकर हत्या करने वाले लोगों को माला पहनाएंगे तो ऐसा ही माहौल बनेगा। क्या बिना राजनीतिक सहारे के भीड़ में इतनी हिम्मत आ सकती है कि पुलिस चौकी घेर कर इंस्पेक्टर को गोली मार दे?
लेकिन क्या पुलिस अब भी चुप रहेगी? कम से कम अपने इंसाफ के लिए तो आवाज़ उठा ही सकती है पुलिस।
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की लाश का तो पोस्टमार्टम हो गया लेकिन क्या किसी को कानून की लाश पड़ी दिखाई दे रही है? अगर कानून की लाश पोस्टमॉर्टम के लिए भेजी जाएगी तो उसको लगी गोली पर सत्ता का नाम लिखा मिलेगा।