जब हम टीवी ऑन करते हैं, तब टीवी पर एंकर चीख रही होती हैं कि क्या देश में डर का माहौल है? फिर वह कहती हैं कि यह मैं नहीं कह रही, यह तो फला नेता, अभिनेता या बुद्धिजीवी कह रहा है। इसके बाद स्टूडियो में कुछ लोग बैठे होते हैं, जो अखलाक, पहलू खान या गौरक्षकों की दनदनाहट का हवाला देकर कहते हैं, “जी हां, देश में डर का माहौल है।”
फिर अचानक दूसरा पक्ष पूछ उठता है कि आज एक घटना पर डरने वाले यह लोग 1984 के दंगों पर क्यों नहीं डरे? 90 के दशक में कश्मीर में पंडितों के साथ हुई भयानक साम्प्रदायिक त्रासदी के वक्त इनका डर कहां था? ताज होटल पर हमले के वक्त या दिल्ली मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के समय इन लोगों को डर क्यों नहीं लगा? इन सबके बीच सवालों और जवाबों से स्टूडियो का माहौल गर्मा जाता है। अंत में हमेशा की तरह शो खत्म हो जाता है।
असल में सच यही है कि देश में कुछ लोग डरे हुए हैं और कुछ लोग डरा रहे हैं। डरे हुए कुछ लोग वे हैं जिनके पास करोड़ों, अरबों की संपत्ति, नाम और पहचान है या जो सत्ता की कुर्सी से बाहर हैं।
अब इन्हें डरा कौन रहा है? बस कुछ ऐसे ही लोग हैं जो इन्हें डरा रहे हैं। ऐसे माहौल को लेकर कुछ लोग चिंतित भी जरूर हैं, इनमें चिंता करते हुए कुछ पत्रकार हैं, कुछ नेता हैं और कुछ अभिनेता भी शामिल हैं। देश के आम आदमी अपनी रोज़ी रोटी के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, वह अभी इस डर से बाहर हैं मगर कोशिश जारी है कि वह भी कुछ इसी तरह का अपना डर व्यक्त करें।
यह डर का माहौल तब खड़ा होता है जब एक अति उत्साहित नेता ताव में आकर बयान दे देता है और तब अचानक डर के कई बयान सामने आते हैं। मीडिया डर की इस व्यवस्था का हिस्सा बनी हुई है। बहुत पहले मीडिया का जुनून सार्वजनिक हित के मुद्दे होते थे पर आज उसका जुनून इस डर का माहौल खड़ा करने का शेष रह गया है।
जब नेता डरे हुए बयान नहीं देते तब यह लोग चोटी कटने की घटनाओं को लेकर खौफनाक साउंड के साथ लोगों को डराते हैं। कभी बुराड़ी में एक परिवार की आत्महत्या को लेकर डरावने एपिसोड बना डालते हैं तो कभी भूत-प्रेत की चीज़ें दिखाते हैं। यकीन ना हो तब सुबह-सुबह टीवी ऑन कीजिए, फिर पता चलेगा कि सभी चैनलों पर बैठे बाबा किस तरह राहू-केतु से लेकर शनि मंगल, अमंगल और राशियों से लोगों को डरा रहे होते हैं।
हिंसा और हत्या हर एक शासक के काल में होते रहे हैं और इससे कोई भी युग अछूता नहीं रहा है। बड़े-बड़े सम्राटों से लेकर आज की वर्तमान लोकतांत्रिक प्रणाली तक, कोई एक वर्ष ऐसा नहीं रहा होगा जब काल के चेहरे पर रक्त के छींटे ना पड़े हों। उस इतिहास के एक भी पन्ने पर हमने अपनी एकता, समरसता से कभी डर को निकट नहीं आने दिया।
आज स्वतंत्र रूप से बड़े-बड़े आलिशान बंगलों में सुरक्षाकर्मियों के बीच रहते हुए यदि हम भय महसूस करें तब इसमें राजनीति कितनी है और डर कितना? आप खुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं।
सोचने वाली बात है कि पद से उतरते हुए एक उपराष्ट्रपति क्यों डर जाते हैं या फिर अचानक सुप्रीम कोर्ट के बड़े जज क्यों डर जाते हैं? फिर नसीरुद्दीन शाह क्यों डर जाते हैं? डर कुछ ऐसा है कि कभी अचानक से राहुल गाँधी डर कर कहते हैं, ‘देश में डर का माहौल है और पाकिस्तान जैसी स्थिति है।’ कभी आमिर खान इसी डर के बारे में सुरक्षित देश खोजने की बात करते हैं तो कभी अरुण शौरी बात करते हुए कहते है कि देश में डर और बेबसी का माहौल है।
हालांकि यह डर सबको नहीं डराता, सिर्फ उन्हें डराता है जिनको इससे डर लगता है। ऐसे ही लोगों के आस-पास डर का माहौल रचा जाता है। यही वो माहौल है जहां से एक बुद्धिजीवी दूसरे बुद्धिजीवी को, एक नेता दूसरे नेता को, एक अभिनेता दूसरे अभिनेता को डरा रहा है। इसके बाद इस डर को मीडिया पर्दे पर लेकर आती है ताकि देश के लोग भी इस डर को महसूस करें।
इन लोगों के मुताबिक देश का आम आदमी कुछ बोल नहीं पा रहा है, वह डरा हुआ है लेकिन क्या सच में ऐसा हो रहा है? या फिर डर का एक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि मुझे बाज़ारों में, सड़कों पर, मेट्रो या किसी सार्वजनिक स्थान पर डरे हुए लोग नहीं मिल रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि लोग बिलकुल निडर हैं, कभी डरते नहीं है। लोग डरते हैं मगर तब डरते हैं जब एक मासूम बच्ची को उठाकर कुछ दरिन्दे रेप कर देते हैं। लोग तब डर जाते हैं जब सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नहीं मिलता। हम तब तक डरे रहते हैं जब तक शाम को बेटी सकुशल घर नहीं लौट जाती।
हम तब तक डरे हुए रहते है, जब तक बिना रिश्वत दिए बेटे की नौकरी नहीं लग जाती और बिना दहेज के बेटी की शादी नहीं हो जाती। बिना रिश्वत दिए या बगैर थाने के चक्कर काटे जब तक एक जांच पूरी नहीं होती या बिना पैसे और विनती के बिजली का बिल ठीक नहीं हो जाता।
इन्हीं वजहों से हम डरते हैं बाकी हमारे और कोई डर नहीं हैं। यह जो हर रोज़ जो बयानों के डर खड़े किए जाते हैं, यह आम आदमी के डर नहीं हैं। यह सोचने का समय किसी के पास नहीं है कि ऐसे डर देश को आर्थिक, राजनीतिक और विदेशी ताकतों से कैसे निकाल पाएंगे। फिलहाल, बस कोई एक डरा रहा है और दूसरा डर रहा है। मुझे नहीं पता इससे देश के आम नागरिकों को क्या मिल रहा है।