संघीय ढांचा और एक देश-एक चुनाव
‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ जिन देशों की तर्ज़ पर लिया जा रहा है, उन्हें भारत के बारे में अपनी समझ विकसित करने की आवश्यकता है। आप इसे ऐसे समझिए, सरकार कहती है कि हम ‘आर्टिकल 356’ के तहत विधानसभा भंग करवा देंगे।
भारत के संविधान में केन्द्र और राज्य दोनों को ही अपने-अपने स्तर पर काफी स्वतंत्रता दी गई है। राज्य को केन्द्र का पिछलग्गू नहीं बनाया गया है। हर राज्य के अपने-अपने अधिकार हैं, ऐसे में ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की बात करते हुए आप भारत की संघीय व्यवस्था पर आघात कर रहे हैं।
यह इतना आसान काम नहीं है कि आप हर विधानसभा चुनाव को भंग कर दें। अगर अपने तानाशाही तरीके से ऐसा करने में सफल भी हो जाते हैं, तब सरकार बनने या किसी राज्य में त्रिशंकु सरकार आने के बाद अगर सरकार गिरी और गठबंधन दल ने समर्थन वापस लिया तो?
ऐसे में कई बड़े सवाल हैं जो हर ज़हन में उठने शुरू हो गए हैं। यदि भारत में ‘एक देश-एक चुनाव’ लागू कर दिया जाता है फिर क्षेत्रीय मुद्दों और पार्टियों का क्या? कहां जाएंगे क्षेत्रीय पार्टियां? स्कूलों के शिक्षक या तमाम सरकारी संस्थानों के कामकाज को आप कैसे संभालेंगे? जब पूरे देश में आचार संहिता लागू होगी तब विकास की योजनाओं का क्या होगा?
बड़ा सवाल यह भी है कि लोकतांत्रिक गरिमा को ध्यान में रखते हुए देश के लोकसभा चुनाव और 29 राज्यों की विधानसभा चुनावों को कैसे कराएंगे? इस मुल्क को इसका स्पष्ट जवाब चाहिए।
तर्क और डिबेट लोकतंत्र की आत्मा है लेकिन बीते कई वर्षों से नेताओं ने अवाम को कठपुतली बना रखा है। मेरा मानना है कि ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ भारत में फिलहाल किसी भी कीमत पर संभव नहीं है।