भारत में भ्रष्टाचार का इतिहास काफी पुराना रहा है। हम भारतीय यह जानते हैं कि अंग्रेज़ों ने भारत मे लंबे समय तक शासन किया था। अंग्रेज़ पहले व्यापार करने के इरादे से यहां आए थे परन्तु यहां के महत्वकांक्षी जागीरदारो और शासको के भ्रष्ट आचरण ने इस विशाल देश को अंग्रेज़ों के हवाले करते हुए लोगों को गुलाम बनने पर मजबूर कर दिया। अंग्रेज़ों की नीति ही यही थी कि अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिये शाम-दाम-दंड-भेद सब का इस्तेमाल करो।
अंग्रेज़ कई ऐसे लोगों को पदों और शासन का लालच देकर उसे अपना गुलाम बनाते थे और ऐसे लोग उनके जाल मे फंसकर तलवे चाटने लग जाते थे। ऐसे लालची लोगों को नैतिकता और अनैतिकता मे कोई भेद नहीं दिखता। ऐसे चंद भ्रष्टाचारी लोगों के लालच के कारण ही हज़ारों भारतीयों ने अंग्रेजों के गुलामी से इस देश को आज़ाद कराने के लिए अपने खून बहाए।
ज़ुल्म और शोषण के खिलाफ कई जन-आंदोलन हुए फिर भी यह भ्रष्टाचार की बीमारी इस देश को आज भी जकड़ी हुई है। अंग्रेज़ों से मुक्त हुए भारत को लगभग 70 वर्ष पूरे हो गए लेकिन अंग्रेज़ों की दी हुई भ्रष्टाचार को आज भी हमारे इस देश में कुछ महत्वकांक्षी लोगों ने बड़ी शिद्दत से संजो कर कुछ रखा है।
आज भले ही अंग्रेज़ों का शासन खत्म हो गया है लेकिन गुलाम बनाने की वह लालसा किसी भयानक रोग की तरह समाज में फैली हुई है। पहले भी राजसत्ता में जागीदारों और साहूकारों का लालच व दोगलापन कमज़ोर पर प्रबल था और आज भी स्वतंत्र भारत में कमज़ोर जनता को रिश्वत देकर अपना काम करवाना पड़ता है। भ्रष्टाचार की यह बीमारी विदेशी शासको द्वारा विरासत मे कुछ लालची लोगों को मिली है। भ्रष्टाचार करने के लिए वे स्वाभाव से ही मजबूर हैं। इसमें उनका कोई दोष नहीं है।
आज अगर हम भ्रष्टाचार की बात करते हुए अतीत पर नज़र डालें तब कई जघन्य घोटाले इस देश मे हुए जिनपर कोई राजनीतिक दल खुल कर राष्ट्रीय स्तर पर परिचर्चा नहीं करते हैं और ना ही कभी वे करना चाहेंगे। हम यह सोचते है कि इस देश की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था बदल डालेंगे तो यह एक मील का पत्थर साबित होगा, क्योंकि इस भ्रष्टाचार ने देश मे सामाजिक असमानता की खाई खोद दी है जिसे शायद खत्म करने में यह सदी कम पड़ जाए। भूत और वर्तमान के आधार पर हम एक बेहतर भारत का भविष्य तय नहीं कर सकते।
चाहे वह घर बनाने की बात हो या फिर नौकरी पाने से लेकर बेटी की शादी कराने, वोट देने और इलाज कराने तक हर जगह आपको भ्रष्टाचार का व्यापक रूप दिखेगा। अगर आप इसका विरोध करते हैं तब लोगों को यह कहते हुए शर्म भी नहीं आती है कि, ‘अरे भाई सब चलता है।’
चुनाव संबंधित घोटाले होते रहे हैं जिसमें खुलकर रिश्वतखोरी, अव्यवस्था और गैर ज़िम्मेदारी के आरोप लगते रहे हैं। विडम्बना यह है कि सारे के सारे मामले किसी धुंध मे कहीं खो जाते हैं। यही पर कर्तव्यनिष्ठ और इमानदार लोगों की हार होती है और पुनः नये घोटालों का सृजन होता है।
हमारे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अतीत में कई महत्वपूर्ण आदोलनों के होने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ा है। विदेशों से कालाधन वापस लाने के लिए बाबा रामदेव ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन बाद मे पतंजलि जैसी कंपनी में अरबों के मालिक बन गए। अन्ना हज़ारे ने भी जन-लोकपाल विधेयक के लिए अनशन किया था जिसके उपरांत आम आदमी पार्टी का उदय हुआ।
08 नवम्बर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यह कहते हुए नोटबंदी का फैसला लिया गया कि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगा। इससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण तो नहीं लग पाया लेकिन कई अवसरवादी लोगों ने इसी बहाने करोड़ों रुपये के वारे न्यारे कर दिए। देश कतारों में खड़ा था ताकि किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े।
ऐसे में अब देश की जनता को यह तय करना होगा कि अंग्रेज़ों से आज़ादी पाने के बाद क्या अब वे भ्रष्टाचार की गुलामी में जकड़े रहेंगे, या फिर रिश्वत मुक्त समाज की नींव रखी जाएगी।