लखनऊ में इस वर्ष 28 सितंबर की रात दो पुलिसकर्मियों द्वारा की गई विवेक तिवारी हत्या मामले में 80 दिनों के बाद एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है। रिपोर्ट के मुताबिक सिपाही प्रशांत को विवेक की गाड़ी से कोई खतरा नहीं था। अगर विवेक भागने की कोशिश करता, फिर भी सिपाहियों को खतरा हो, ऐसी कोई स्थिति नहीं थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निशाना लगाकर गोली चलाना आर्म फायरिंग के नियमों के विरुद्ध है और प्रशांत ने गोली चलाने का अंजाम जानते हुए भी फायर किया था। मामले में दाखिल की गई चार्जशीट में प्रशांत पर आईपीसी की धारा 302 और साथी संदीप पर 323 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
क्या थी उस दिन की पूरी कहानी
28 सितंबर की रात लखनऊ की सड़कों पर कुछ ऐसा हुआ जिसने एक परिवार की खुशियों को महज़ 38 सेकंड में तबाह कर दिया। एक आदमी अपनी सहकर्मी के साथ कार से देर रात लौट रहा था। पब्लिक की सुरक्षा के लिए रखे गए खाकीपोशों ने उन्हें रोका और फिर संदिग्ध परिस्थितियों में गोली मार दी।
मामले ने जब तूल पकड़ी तब सामने आया कि मृत व्यक्ति विवेक तिवारी सेल्स मैनेजर था और ऑफिस की एक पार्टी के बाद घर लौट रहा था। पुलिस हरकत में आई और उसने विवेक की सहकर्मी सना को उठा लिया जो पूरी वारदात की चश्मदीद थी। पुलिस महकमा आरोपी को बचाने में जुटा था लेकिन मीडिया का लगातार उन पर बढ़ता दबाव उनकी मुश्किलें तेज़ कर रहा था।
जिस पुलिस वाले ने गोली चलाई वह खुला घूम रहा था, घूम ही नहीं रहा था बल्कि थाने में क्रॉस एफआईआर के लिए अपनी सिपाही पत्नी के साथ हंगामा भी कर रहा था। आरोपी प्रशांत ने पत्रकारों को दो बयान दिए और दोनों में वह सेल्फ डिफेन्स की अलग-अलग कहानी बनाता दिखा।
अब तक सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस की बहुत किरकिरी हो चुकी थी इसलिए आरोपी को आनन-फानन में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। एक और बात जो अत्यंत महत्वपूर्ण है वो यह कि यूपी पुलिस के डीजी ओपी सिंह गाज़ियाबाद में थे और करीब 11:30 से 12:30 के बीच उन्होंने पत्रकारों को बताया कि सिपाही प्रशांत और उसके साथी को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन इसके ठीक विपरीत उसी समय वो थाने में सरेआम हंगामा कर रहा था।
सेल्फ डिफेन्स के कुतर्क को सच साबित करने में कुछ लोग इतनी जल्दी जुट गए थे मानो वारदात के समय मौके पर वह मौजूद थे। ज़्यादातर लोग पुलिसकर्मी थे और खुलेआम प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ा रहे थे। आपको बता दें कि लखनऊ समेत प्रदेश के कई थानों में पुलिसकर्मियों ने ‘ब्लैक डे’ मनाया था और काली पट्टी बांधकर खुलेआम एक आरोपी का समर्थन किया था।
कहानी में एक मोड़ यह भी आया कि सिपाही प्रशांत के लिए चंदा जुटाया जाने लगा, 5 करोड़ रुपये देने का लक्ष्य रखा गया और कुछ ही समय में लाखों रुपये इकट्ठा हो गए।
आपको जानकर हैरत होगी कि यह सब संवेदनाओं का माहौल बनाकर किया जा रहा था जिसमें आरोपी सिपाही को बेकसुर बताकर पूरा खेल खेला जा रहा था। उसी दौरान कई पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई भी हुई लेकिन कहीं ना कहीं ऐसी मानसिकता का पनपना खतरे की घंटी भी है क्योंकि किसी को भी मारकर सेल्फ डिफेन्स का केस बनाने की फिल्मी कहानियां अब हकीकत में सामने आने लगी हैं।