आम जनता की निजी जानकारियां कभी फेसबुक तो कभी गूगल द्वारा लीक होने की खबरें सामने आती हैं। यहां तक कि आधार कार्ड का डेटा भी लीक हो जाता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि आम जनता के निजता का हनन करना अब बड़ी कंपनियों और सरकार का पेशा बन गया है।
इस बीच आम जनता के अधिकारों का हनन करते हुए एक और खबर ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। जी हां, देश की सुरक्षा एजेंसियां किसी भी व्यक्ति के कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक गैजट में जनरेट, ट्रांसमिट, रिसीव और स्टोर किए गए किसी भी दस्तावेज़ों को देख सकती है। इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 20 दिसंबर 2018 को देश में चल रहे किसी भी कंप्यूटर में सेंधमारी कर जासूसी करने की इजाज़त दे दी है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय एवं सूचना सुरक्षा प्रभाग द्वारा गृह सचिव राजीव गाबा के ज़रिए यह आदेश जारी किया गया। इस आदेश के मुताबिक जिन 10 केंद्रीय जांच एजेंसियों को कंप्यूटर्स की निगरानी करने की मंजूरी दी गई है वे इस प्रकार हैं।
- खुफिया ब्यूरो (आईबी)
- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी)
- प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)
- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी)
- राजस्व खुफिया निदेशालय (डी आर आर आई)
- केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई)
- राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए)
- रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ)
- सिग्नल खुफिया निदेशालय (जम्मू कश्मीर पूर्वोत्तर और असम में सक्रिय), और
- दिल्ली के कमिश्नर ऑफ पुलिस
इन्हें अब सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत भी कंप्यूटर या इलेक्ट्रॉनिक गैज़ट में स्टोर की गई जानकारियों को देखने का अधिकार होगा। आदेश के मुताबिक, “उक्त अधिनियम (सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69) के यह सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी कंप्यूटर सिस्टम में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना के अंतरावरोधन (इंटरसेप्शन), निगरानी (मॉनिटरिंग) और विरूपण (डिक्रिप्शन) के लिए प्राधिकृत करता है।
यह सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 69 के तहत किसी भी कंप्यूटर संसाधन पर नज़र रखने या उन्हें देखने के लिए निर्देश जारी करने की शक्तियों से जुड़ी है। पहले के एक आदेश के मुताबिक़, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के तहत फोन कॉल्स की टैपिंग और उनके विश्लेषण केे लिए खुफिया एजेंसियों को अधिकृत करने या मंजूरी देने का भी अधिकार है।
अगर कोई भी व्यक्ति इस आदेश की अवहेलना करेगा तब उसे 7 वर्ष की सज़ा भुगतनी पड़ेगी। हालांकि सरकार के इस आदेश के बाद लोगों में रोष है। वे इसे निजता पर हमला बता रहे हैं और विपक्ष इस मामले पर काफी हमलावर है। ज़ाहिर तौर पर सरकार का यह फैसला निजता पर प्रहार है, ऐसे में बवाल होना ही था।
निजता का अधिकार मौलिक अधिकार माना जाता है। कोई भी आम नागरिक अपनी निजता से समझौता नहीं करना चाहेगा। उसे अपने कामों में ताक-झांक या जासूसी बिल्कुल रास नहीं आएगी। यह फैसला लोकसभा चुनाव के पहले आया है और विपक्ष इस मुद्दे को पूरी तरह भुनाने का प्रयास करेगी।
लोग अपने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज़रिए शॉपिंग करते हैं, इंटरनेट बैंकिंग का प्रयोग करते हैं या फिर कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें ऑनलाइन किया जाता है। थोड़ी सी चूक होते ही इसके दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो भले ही यह फैसला राष्ट्रहित में हो लेकिन इसके विपरित परिणामों से किनारा नहीं किया जा सकता है।