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सोच बदलेगी तभी  देश बदलेगा

महिला  उत्पीड़न का एक और मामला सामने आया 12 दिसम्बर की एक मौत जो दहेज की  प्रताड़ना को बयां करती है। बयां करती है  समाज के सोच की  गन्दगी को। आरती नाम की एक महिला  मारी  जाती  है और मौत  की कारण आत्महत्या बताई जाती है। परिवार का पूर्ण  मानना है की उनकी बेटी आत्महत्या नहीं  कर  सकती  है,  उनका  मानना  है उसके  ससुराल वाले उसकी मौत की वजह है। हमें न्याय  चाहिए।  और जब रोता बिलखता परिवार  पुलिस  के  पास  पहुँचता  है तो  उन्हे मुँह की  खानी पडती है। पुलिस, FIR  दर्ज  नहीं  करती,  तो न्याय  की  आस  भाई को सोशल मीडिया का   रास्ता दिखाती  है।

दहेजप्रताड़ना, रेप, घरेलु हिन्सा, भ्रूण हत्या… इन सब  का एक ही और इशारा है  महिलाओं के ऊपर बढता अत्याचार। NCRB की रेपोर्ट  के मुताबिक सबसे  ज्यादा उत्पीड़न से महिलाओं  की मौत भारत मे  होती है। 2012 की  एक सर्वे के  अनुसार 8233 मौत  सामने आई है  जिसमे महिलाओं को जला दिया जाता है या आत्महत्या  के लिए उकसाया जाता है। हर  90  मिनट  मे एके दुल्हन की मौत, सामाज मे बढती भूख को दर्शाता है।

अगर कोई आपसे  एक कलम  भी  माँग  ले  तो  आप  एक बार सोचते हैं। बेटियाँ तो ज़िगर का टुकड़ा होती  है ।  कन्या दान के समय  एक  पिता  अपनी  बेटी  का हाथ बहुत भरोसे के साथ एक अनजान के हाथों मे सौपता है। लेकिन पैसों की  भूख  इन्सानों  को अन्धा  कर देती है  और यही घरेलू हिन्सा का रूप ले लेती है।हिन्सा बढते- बढते एक दिन मौत की शक्ल में  इन्सानों   की दहेज की भूख सामने आती है।

दहेज की बढ़ती मांग की वजह से ही बेटियाँ पिता के सर बोझ बन जाती हैं। और साथ ही एक और डर पिता को चैन की साँस लेने नहीं देती। बेटियां आज कहीं महफूज नहीं है। कभी नज़रो से डर तो तो कभी अपनों की भय बेटियों को महफूज नहीं रखती है। अपनी बेटी की सुरक्षा की वजह से ही एक पिता को यह बोलने पे मज़बूर होना पड़ता है-
नज़रे गढ़ाए, आँखे तिरे
दुनियां खड़ी, लाडो चली
कभी दहेज, कभी नज़रों से डरी
बन पिता की माथे की सिकन
अब न आना इस देश लाडो,
अब न आना इस देश।।

सवाल ये उठता है कि आखिर एक पिता को ऐसा क्यों बोलना पड़ता है ? वर्तमान की ही घटना पर नज़र डालें तो पाएंगे की एक परिवार जो अपनी बेटी की मौत का न्याय चाहता है ।
पुलिस थानों का चक्कर काट रहा होता है। लकिन F.I.R दर्ज नहीं की जाती है। सोशल मीडिया को सहारा बनाया जाता है। तब कहीं जा पुलिस की नींद खुलती है और F.I.R दर्ज की जाती है । 4-5 दिन बीत जाने पर भी उनके हाथ कुछ नहीं लगता और अब तक पुलिस इस बात को भी सामने नहीं ला पायी है की ये हत्या थी या आत्महत्या।
सवाल पुलिस की देरी की नहीं, सवाल समाज की सोच पर है।  16 दिसंबर 2012 को एक घटना होती है। जहाँ देश की एक बेटी के साथ निर्दयता की हद हो जाती है। देश में रोष का माहौल बन जाता है। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक मुहीम छेड़ देते है। निर्भया को न्याय दिलाने की। वो बेटी तो दुनिया को अलविदा कह चली जाती है लेकिन अपने पीछे कई आस छोड़ जाती है। एक बार ऐसा लगता है इस घटना के बाद शायद महिलाओं पर होते अत्याचार कम होंगे। पर स्वरुप वही है बल्कि  उससे भी बदतर है। आज भी कुछ नहीं बदला , बदली तो सिर्फ बढ़ती घटनाएँ।

सवाल उस जनता से है- जो नारी स्वरूप को पूजती है। तो फिर नारी के साथ अन्याय क्यों? सवाल है समाज के सोच की। सोच बदलेगी तभी देश बदलेगा।

ARADHYA HARSHITA (BAJMC SEM 1)

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