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ट्रैफिकिंग बिल के प्रावधानों को लेकर सेक्स कर्मियों में आक्रोश!

क्या विधेयक का इरादा यौन कर्मियों को प्रताड़ित करना है?

डॉ० कविता सुरभि

बचपन बचाओ आन्दोलन

केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने लोकसभा में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग बिल (ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन (प्रिवेंशन, प्रोटेक्शन एंड रिहेबिलीटशन) बिल, 2018) पेश किया, तो वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और सेक्स श्रमिकों, चाइल्ड एंड ट्रांसराइट एक्टिविस्ट के एक बड़े समूह ने इस विधेयक के विरुद्ध आवाज़ उठाई और कहा गया कि इस बिल में सेक्स वर्कर को निशाना बनाया गया है।”

दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) वस्तुत: है क्या ?

मानव दुर्व्यापार (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) मनुष्यों का व्यापार है। इसमें किसी क्षेत्र या स्थान से किसी की पहचान होती है और शोषण करने के इरादे से, धमकी देकर, बल प्रयोग करके या किसी अन्य प्रकार से प्रताड़ित करके अथवा अपहरण करके या धोखा और कपट द्वारा अथवा शक्ति का दुरुपयोग करके या प्रलोभन और लालच देकर उसे किसी दूर देश में किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया जाता है। आर्थिक लाभ के लिए उस व्यक्ति का शोषण किया जाता है।

मानव दुर्व्यापार (ह्यूमन ट्रैफिकिंग) संगठित अपराध कैसे है?

ड्रग्स और हथियारों के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध माना जाता है, क्योंकि दुर्व्यापार का अपराध करने वाले ज़्यादातर अपराधी आमतौर पर एक-दूसरे के साथ मिलकर अपराध करते हैं और क्षेत्रीय, स्थानीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करते हैं। जब व्यक्ति का दुर्व्यापार किया जाता है, जिससे गंतव्य स्थान पर पहुंचकर उसे बलपूर्वक बेगार/बंधुआ मज़दूरी के लिए विवश किया जा सके; तब गंतव्य स्थल पर पहुंचने से पहले भी वह कई अपराधों का शिकार हो जाता है, जैसे-

भेड़-बकरियों की तरह खरीदना-बेचना
बंधुआ मज़दूरी
जबरन श्रम
बाल श्रम
मसाज पार्लर आदि में यौन शोषण
वेश्यावृत्ति
अश्लील साहित्य या इसी तरह के उद्देश्यों के लिए यौन शोषण
जबरन विवाह
बाल सैनिक (युद्ध में बच्चों का उपयोग)
अंगों को जबरन हटाना/अंगों का दुर्व्यापार आदि।

ट्रैफिकिंग की कमाई गूगल, ईबे और अमेज़न जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कुल सलाना कमाई के बराबर कैसे है?

2014 में आई अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, मानव दुर्व्यापार से हर वर्ष पूरी दुनिया में करीब 150 विलियन डॉलर का व्यापार होता है।

मानव दुर्व्यापार से संबंधित अपराधों में आनुपातिक रूप से महिलाओं और बच्चों की संख्या सबसे ज़्यादा है।

दुर्व्यापार के शिकार कुछ लोगों की कथाएं, जिनसे पता चलता है कि इस संगठित अपराध में कितना पैसा घूमता है-

नबाव के पिता दिहाड़ी मज़दूर हैं, जब वह 11 साल का था, तब एक दलाल, जिसे गांव का चाचा कहा जाता था, उसके मां-बाप को बहला-फुसलाकर उसे दिल्ली ले आया और एक जींस फैक्ट्री में उसे बाल मजदूर बना दिया। जहां प्रतिदिन 16-18 घंटे उससे काम कराया जाता था और खाना मांगने या तबियत खराब होने पर काम में ढिलाई आने पर उसकी पिटाई भी की जाती थी।

कहीं वह भाग ना जाए, इस कारण से उसे फैक्ट्री से बाहर नहीं निकलने दिया जाता था, परिणामस्वरूप उसकी आंखें सूरज की रौशनी सहन नहीं कर पाती थीं।

शीला को उसका प्रेमी शादी का झांसा देकर शहर लाया और 26,000 रुपये में उसे बेच दिया। उसे किसी के घर में काम के लिए भेजा जाता है और बहुत अच्छे से समझाया जाता है कि तुझे हर हफ्ते वापस आना है और हर दो-तीन महीने में हम तेरा घर बदलेंगे। वह लड़की किसी घर में दे दी जाती है और वहां से किसी और घर में उसे भेज दिया जाता है। उसे एक पैसा नहीं दिया जाता किन्तु हर रोज़ 15-16 घंटे जी-तोड़ मेहनत कराई जाती थी।

काम पसंद ना आने पर उसे मारा-पीटा भी जाता था। मालिक द्वारा उसके साथ बलात्कार भी किया गया और गर्भवती होने पर उसका गर्भपात (एबॉर्शन) करा दिया गया। वह अपनी मौसी के साथ रह रही थी क्योंकि उसके पिता उसकी मां को छोड़कर चले गए थे और मां गंभीर रोग का शिकार होकर तथा उचित स्वास्थ्य लाभ ना पाने के कारण चल बसी थी। उसकी परिस्थितियों का फायदा दलाल ने उठाया और उसे बेहतर जीवन जीने और अच्छी नौकरी का लोभ दिखाकर दिल्ली में एक प्लेसमेंट एजेंसी को बेच दिया था।

बिहार की 10वीं की छात्रा को उसकी बहन के घर छोड़ने के बहाने करीबी रिश्तेदार ने 30 हज़ार रुपये में बेच दिया। मौका पाकर छात्रा ने कॉल कर सूचना बहन को दी तो पुलिस की मदद से एक कोठी पर छापा मारकर उसे मुक्त कराया गया। उसने बताया, 5 आदमियों ने उसका बलात्कार (गैंग रेप) किया, उसकी वीडियो बनाई। होश आने पर उसे दिखाई और कहा, यह वीडियो तेरे घर और जान-पहचान में एवं बाकी सब जगह जायेगी। उस पर कई तरह के अत्याचार हुए, उसे सिगरेट से जलाया गया, मारा-पीटा गया। अंतत: वह टूट गई और वेश्यावृत्ति के लिए सहमत हो गई।

प्लेसमेंट एजेंसी द्वारा घरों में काम करवाना और घरेलू श्रमिकों को पैसा ना देना तथा साथ ही उनका यौन शोषण एक पहलू है और दूसरा पहलू वह है, जो वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियों का दुर्व्यापार किया जाता है। सरकारी आंकड़ा है कि एक दिन में 5 से 15 सेक्सुअल एनकाउंटर्स उनके साथ हो रहे हैं। एक सेक्सुअल एनकाउंटर के बदले में उन्हें 200 से 1000 रुपये तक के बीच दिया जाता है।

भारत सरकार कह रही है कि 33 लाख महिलाएं देश में यौन शोषण और वेश्यावृत्ति में लगी हुई हैं। एक बड़ी रिसर्च राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने की थी, जिसमें कहा गया था कि लगभग 81 प्रतिशत लड़कियां, जो यौन शोषण (sexual exploitation) का शिकार हैं, उनका पहला सेक्सुअल एनकाउंटर जब हुआ था, तब वे बच्ची थीं।

भारत में3.2 मिलियन लोग वेश्यावृत्ति में संलग्न हैं, जिनमें से 1.2 मिलियन नाबालिग हैं (स्रोत: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, 2007)। ‘क्राइम इन इंडिया’ रिपोर्ट 2016 के अनुसार, वर्ष 2016 में कुल 15,379 लोग ट्रैफिकिंग के शिकार हुए, जिनमें से 9034 बच्चे थे और 10150 लडकियां और महिलाएं हैं।

इतना धन इस संगठित अपराध (organised crime) से कमाया जाता है। दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) एक निरंतर होने वाला अपराध है, जो स्रोत क्षेत्र से पारगमन (ट्रांजिट) और गंतव्य तक जारी रहता है।

उपर्युक्त घटनाएं तब सामने आईं, जब दुर्व्यापार के शिकार उन लोगों को समाजसेवी संगठनों द्वारा मुक्त कराया गया। मानव दुर्व्यापार के शिकार व्यक्तियों का अपने जीवन और उसे जीने के तरीकों पर तब तक कोई नियंत्रण नहीं होता, जब तक उनके बचाव का प्रयत्न नहीं किया जाता।

विधेयक का इरादा यौन कर्मियों को प्रताड़ित करना है, अथवा उनके प्रति संवेदनशील रुख है, जो सेक्स रैकेट से पीड़ित हैं?

यह विधेयक उन महिलाओं को बचाने की बात करता है, जिन्हें दलालों ने बहला-फुसला कर या जबरन वेश्यावृत्ति में धकेल दिया है| विधेयक के अध्याय XII के तहत अपराधों की सूची में केवल उस व्यक्ति को अपराधी माना गया है, जो शोषण के उद्देश्य से अन्य व्यक्तियों को खरीदता है और बेचता है।

इस विधेयक में यौन शोषण को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 370 के अनुसार परिभाषित किया गया है तथा ‘शोषण’ पद के अंतर्गत शारीरिक शोषण का कोई कृत्य, किसी प्रकार का यौन (लैंगिक) शोषण, दासता अथवा दासों के सामान व्यवहार या अंगों को हटाने के लिए मजबूर करने जैसी प्रथाएं शामिल हैं| दुर्व्यापार के अपराध के निर्धारण में पीड़ित की सहमति को महत्वहीन माना गया है|

असल में यह विधेयक कुछ स्थितियों में उन पीड़ितों की प्रतिरक्षा की भी गारंटी देता है, जो अपराधी भी हो सकते हैं, जिन्होंने ऐसा कोई अपराध किया है, या करने का प्रयास  किया है, जिसकी सजा दस वर्ष या आजीवन कारावास या मृत्यु से दंडनीय है; बशर्ते यह अपराध करने के लिए उन पर किसी प्रकार का दबाव, जोर, धमकी, डर इत्यादि का इस्तेमाल किया गया है या ऐसा करते समय पीड़ित पर उसकी या उससे संबंधित किसी व्यक्ति की मृत्यु या गंभीर चोट या नुकसान पहुंचाने की आशंका के साथ उस पर दबाव बनाया गया हो|

अत: इस विधेयक में कहीं भी न तो स्वेच्छा से यौन काम को अपराध बताया गया है और न ही किसी भी समय पीड़ित को अपराधी मानकर उसे हिरासत में लिया गया है।

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