कविता- “नायिका भी हो”
नायिका भी हो तुम्ही खलनायिका भी हो |
1. तुम अनन्त गगन में ठहरी कल्पना मन की |
अधखुले अधरों सी कोई कली उपवन की |
बाँहों में घिरने को आतुर प्यास हो तन की |
तुम्ही तो हो हेतु कवि के मोह बन्धन की ||
इस अधूरी प्रीति की परिचायिका भी हो |
नायिका भी हो तुम्ही खलनायिका भी हो ||
2. हास्य के मुख की अलंकृति ‘अश्रु’ के कण भी |
मिलन का सुख भी तुम्ही हो विरह के क्षण भी |
‘अश्रु’ का हो त्याग तुम कवि का समर्पण भी |
एक तृषित देही के हित तुम दर्श तर्पण भी ||
‘अश्रु’ की हो धार सौख्य प्रदायिका भी हो |
नायिका भी हो तुम्ही खलनायिका भी हो ||
3. तुम हो स्वीकृति मौन सी तुम बिन कहा प्रण हो |
वल्लरी हो प्रेम की तुम तरु हो तुम तृण हो |
तुम ही तो कविता हो कवि की छवि का दर्पण हो |
हो निठुर जीवन का धन सर्वस्व अर्पण हो ||
तुम ही प्रीति छिपी स्नेह की दायिका भी हो |
नायिका भी हो तुम्ही खलनायिका भी हो ||
4. युग-युगान्तर के प्रणय की तुम निशानी हो |
किसी लेखक ने लिखी आधी कहानी हो |
बावरी हो बयार तुम अल्हड़ अजानी हो |
नयन पावस से बहे ‘अश्रु’ का पानी हो ||
किसी के प्रेमी लबों की गायिका भी हो |
नायिका भी हो तुम्ही खलनायिका भी हो ||
*-कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’*
*ग्वालियर, मध्यप्रदेश*
*सम्पर्क- 86028-10884*