आज देश के 5 राज्यो में चुनावो के रिजल्ट आये, ये चुनाव भी हर चुनाव की तरह मुद्दों पर लड़े गए, मसलन अली, बजरंग बली, गोत्र,धर्म, जात, पात, गाय, गोबर। सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य तो होता रहेगा पहले ये हो जाये तो अच्छा है।
खैर उम्मीद थी कि राजस्थान में वसुंधरा के खिलाफ जो लोगो में गुस्सा है, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जो 15 साल के शासन की सत्ता विरोधी लहर है उसके बीच काँग्रेस अपने मुद्दों को जनता तक ले जायेगी और सम्मानजनक बहुमत पाने में सफल रहेगी परंतु ऐसा हुआ नहीं। काँग्रेस भी बीजेपी की शैली में बात करने लगी और किसी के गोत्र तो किसी की जाति पर टिप्पणी होनी लगी। शायद राहुल गांधी के नेतृत्व वाली काँग्रेस की विचारधारा नेहरू की तुलना में राजीव गांधी के ज़्यादा करीब है।
राजस्थान और मध्यप्रदेश में तो गिरते पड़ते बहुमत के करीब तक पहुंच पायी है लेकिन छत्तीसगढ़ में अच्छा कर गयी जिसका यकीन शायद खुद कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं हो रहा होगा। तेलंगाना, मिज़ोरम में काँग्रेस कुछ खास कर नहीं पायी है।
यह परिणाम देखकर मैं यह ज़रूर कह सकता हूं कि इन तीनों राज्यों में अंकों के मामले में बीजेपी ज़रूर हारी है पर ये जीत जनता की है काँग्रेस की नहीं है क्योंकि जनता ने बीजेपी की जनविरोधी नीतियो के खिलाफ वोट दिया है, और कोई और विकल्प न होने के कारण कांग्रेस को चुना गया है। क्योंकि जहा भी जनता को कोई तीसरी ताकत खड़ी होती दिखी जनता ने उसका खुले दिल से स्वागत किया है।
यही कारण है कि राजस्थान में अन्य के खाते में लगभग 27 सीटें गयी हैं जो आमतौर पर होता नहीं है और लगभग 10 सीटों पर गैर कांग्रेसी-गैर बीजेपी उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे है। यह आंकड़े साफ बताते हैं कि जनता बीजेपी से तो नाराज़ है परंतु काँग्रेस को भी नहीं जीताना चाहती है।
काँग्रेस को अतिउत्साहित नहीं होकर आत्ममंथन की ज़रूरत है कि वो इतना अच्छा क्यों नहीं कर पायी है क्योंकि अगर वो इसी तैयारी के साथ 2019 चुनाव में उतरी तो हार तय है। बीजेपी के पास एक अच्छा काडर, मजबूत लीडरशीप, अच्छा चुनाव प्रबंधन, बूथ लेवल के कार्यकर्ता और आरएसएस जैसा मज़बूत संगठन है। आरएसएस 5 साल तक ज़मीन पर काम करता है जनता के मुद्दों को उठाकर आंदोलन करता है और मुद्दे ना हो तो मुद्दे बनाकर आंदोलन करता है, जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है। काँग्रेस इन सब चीज़ों में आज भी बीजेपी से पीछे है राजस्थान में वामपंथ ज़्यादा देखने को नहीं मिलता पर पिछले 5 सालो में काँग्रेस से ज़्यादा और बड़े आंदोलन तो वामपंथी संगठनों ने किये हैं।
निश्चित तौर पर इन चुनावों के बाद काँग्रेस 2019 चुनाव जीतने का सपना देख रही होगी। यह इतना आसान नहीं है क्योंकि बीजेपी ने चुनाव प्रचार में 2014 में जो प्रयोग किये थे उनके सामने काँग्रेस कुछ भी नहीं थी। शायद 2019 में भी बीजेपी जनता को खीचने के लिए कुछ नया ले आये परंतु काँग्रेस अपनी 70 साल वाली पारम्परीक राजनीती से आगे नहीं निकल पायी है। बीजेपी ने 2014 में सोशल मीडिया का जिस तरह प्रयोग किया था वैसा प्रयोग काँग्रेस आज तक नहीं कर पा रही है।
एक बात साफ है, 2019 उतना आसान होगा नहीं क्योंकि जनता यह भी जानती है कि वो राज्य में वोट दे रही है या केंद्र में। बीजेपी को हराने के लिए पूरे देश की विपक्षी पार्टियो का गठबंधन बनाना होगा जिसकी कवायद चल भी रही है पर यह कितना आसान होगा यह कोई नहीं बता सकता। गठबंधन बन भी जाता है तो सीटों का बंटवारा और नेतृत्व की लड़ाई तो जारी ही रहेगी और नरेंद्र मोदी के सामने बिना चेहरे के आम चुनाव लड़ना और जीतना मुश्किल ही है। आप बेशक मोरारजी देसाई और वी. पी. सिंह का उदहारण दे सकते हैं पर आज की भारतीय राजनीति के संदर्भ में चेहरे की महत्ता कुछ और है।
जहां तक राहुल गांधी की बात है उनका नेतृत्व ना तो जनता को स्वीकार्य है ना ही गठबंधन की दूसरी पार्टियों को तो ऐसे में 2019 का चुनाव काँग्रेस के लिए बहुत मुश्किल होने वाला है।