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सफेद आदमी

               सफेद आदमी

एक बड़ा पका पेड़ काटा जाता है –
फिर उसकी सिल्लियांँ बनायीं जाती हैं,
बाबा कहते थे :
एक सिल्ली जो रखी है वर्षों से,
कोने में दुआर पर,                          /दुआर : द्वार
कटवायीं थीं उनके बबुआ ने;            /बबुआ : पिता
कई बरस पहले।
गौर से देखना कभी उस सिल्ली को-
समय के साथ उसका;
खोईया निकलने लगता है ।                 / खोईया: छाल
परत दर परत , साल बीतने के साथ-साथ;
सिल्ली बिना खोईये के ;
एकदम सफेद हो जाती है ।
अक्सर अंधेरे में;
कुत्ते मूतते हैं उस पर;
एक टाँग उठाकर ।
पर वह पकी सफेद सिल्ली ;
प्रतिवाद नहीं करती;
कोरा इन्सान पक चुका है,
सफेद सिल्ली की तरह।
धूल-धक्कड़ से परे,
दुआर के कोने में पड़ा ;
हर रोज कुछ कुत्ते मूता करते हैं …
……….  ।।

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