Site icon Youth Ki Awaaz

पर्यावरण ही बन जाये नरक, तो

इस सच्चाई को मान लेना कितना मुश्किल है कि हम एक ऐसे शहर, ऐसे देश और ऐसे ग्रह पर रहते हैं जो बहुत तेज़ी से मर रहा है। जहां जीव-जन्तुओं की प्रजातियां नष्ट होती जा रही हैं, जहां नदियां मर रही हैं, जहां जंगल खत्म हो रहे हैं, जहां ज़मीन बहुत तेज़ी से बंजर होती जा रही है, जहां का पानी पीना शराब पीने से ज़्यादा हानिकारक है, जहां की हवा में ज़हर घुला हुआ है, जो हमारी सांसों के ज़रिये हमारे फेफड़ों की गहराईयों में ऐसे कचरे की तरह जमा हो रहा है जिसे रीसायकल नहीं किया जा सकता है। WHO के अनुसार साल 2014 में दिल्ली दुनिया के 1600 शहरों में सबसे प्रदूषित शहर था। WHO के ही अनुसार पूरी दुनिया में सालाना 20 लाख लोगों की अकाल मृत्यु इसलिए हो जाती है क्योंकि उन्हें साफ हवा नसीब नहीं हो पाती है। जिसमें से 5 लाख लोग तो भारत में ही मर जाते हैं। जो कि आतंकवादी हमलों में होने वाली मौतों से कहीं ज़्यादा है। WHO के ही अनुसार दुनिया के 92 फीसद लोगों को साफ़ हवा नसीब नहीं हो पा रही है

अगर बात करें तो भारतीय संस्था (CPCB) सेंट्रल पोल्युसन कंट्रोल बोर्ड द्वारा किये गए सर्वे के अनुसार पिछले एक साल में दिल्ली या दिल्ली के आसपास के इलाके को एक दिन भी मानक पैमाने के अनुसार साफ हवा नसीब नहीं हुई। दिल्ली से 160km दूर राजस्थान के अलवर में लोगों को सिर्फ 2 दिन के लिए तय पैमाने के अनुसार साफ हवा नसीब हुई। Indiaspend संस्था के अनुसार दिल्ली में प्रदूषण की दिक्कत सर्दियों में ज़्यादा हुआ करती थी पर अब पिछले कई सालों से प्रदूषण निरंतर हर मौसम में एक ही तरह का होता है, जिसका स्तर हमेशा ही ‘खतरनाक’ पर बना रहता है। हाल का दिल्ली की हवा का स्तर PM2.5 है।

वर्ल्ड एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार दिल्ली की हवा अब ‘हज़र्ड्स’ यानी खतरनाक स्तर पर पहुंच गयी है। इन सब आंकड़ों के हिसाब से हम एक तरह की धूल और देखा और सुंघा ना जा सकने वाले ज़हर के नरक में रहकर अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे हैं। अगर हम इंतज़ार नहीं कर रहे हैं तो हमें इन सवालों को ढूंढने में लग जाना चाहिए। वायु प्रदूषण क्या है? इस प्रदूषण के कारण क्या हैं? इस प्रदूषण का ज़िम्मेदार कौन है? और इसके क्या हल हो सकते हैं?

वायु प्रदुषण क्या है?

वायु प्रदूषण जानने से पहले वायु क्या चीज़ है यह जानना बेहद जरूरी है। वायु कई गैसों का मिश्रण होता है जो हमारे गृह को सांसें देती है। गृह को सांसे देने से मतलब है कि वायु जीव-जन्तुओं, पौधों और जंगलों को ज़िन्दगी देती है जिनकी वजह से यह गृह ज़िन्दा नज़र आता है। खूबसूरत दिखता है. मुख्यतः वायु में 2 गैसे 1. नाइट्रोजन (78%)  2. ऑक्सीजन (21%) और बाकी 1% कई गैसे का मिश्रण जैसे CO2, ओजोन, SO2, कार्बन मोनोऑक्साइड, Particulates Matter, होती हैं. इसी के बरक्श वायु प्रदुषण ठीक उपर दी गयी वायु की परिभाषा के उल्टा होता है, इसका मतलब जब तय गैसों के अनुपात से अलग कोई अनुपात वातावरण में शामिल हो जाये  या फिर यूँ कहें कि जब पेड़-पौधे, जीव-जंतुओ के विकास में बाधा उत्पन्न होनी शुरू हो जाये, कई जीव विलुप्तप्राय हो जाएँ, कई वनस्पति मरने लगे, नदियाँ मरने लगे, भयानक और नई-नई बीमारियाँ फैलनी शुरू हो जाये तो इसका मतलब वायु प्रदुषण है.

इस प्रदुषण का कारण क्या है?

इसके मुख्यतय 3 कारण है

  1. ट्रेफिक (पेट्रोल, डीजल से चलने वाले वाहन)
  2. फैक्ट्री
  3. पॉवर प्लांट्स

-इस प्रदुषण का जिम्मेदार कौन है?

पूरी दुनिया की आबादी लगभग 8 अरब है और पूरी दुनिया में लगभग 50 करोड़ पेट्रोल डीजल से चलने वाले निजी वाहन है. 2 लोगों पर औसतन 1 वाहन भी माने तो इसका मतलब हुआ की लगभग 25 करोड़ लोग 7 अरब 75 करोड़ लोगों के मुकाबले प्रदुषण बहुत ज्यादा फैलाते हैं. और जिनके पास अपनी निजी गाडी है वो लोग गरीब लोग नहीं है. और फेक्ट्री और पॉवर प्लांट्स भी गरीबो के नहीं होते. इस आंकड़े से इतनी बात गौर करने वाली है कि जो जितना ज्यादा अमीर है वो उतना ही ज्यादा प्रदुषण फैलाते हैं. अमीरी और गरीबी की ये खाई रोज-ब-रोज बड़ी होती जा रही है और उसी हिसाब से प्रदुषण की समस्या भी बड़ी होती जा रही है

-इसके क्या हल हो सकते हैं?

ओद्योगिक क्रांति के बाद बढे उत्पादन से होने वाले बड़े मुनाफे की लूट की भूख आज के दौर में भी बढ़ी ही है. मुनाफे की लूट के भूखे इतने भूखे हैं कि वो अपनी खुद की लाश के सौदे में भी मुनाफा ही चाहते हैं उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि प्रयावरण पर इससे क्या प्रभाव पड़ेगा. अगर उन्हें फर्क पड़ता तो वे पेट्रोल डीजल, का विकल्प तलाशते, और फक्ट्रियों में उतना ही उत्पादन करते जितना की जरूरी हो, कचरे को साफ़ करने के नए नए तरीके खोजते, ऐसा नहीं है की तरीके खोजे नहीं जा सकते हैं, लेकिन संसाधनों पे भी इन्ही भूखे पूंजीपतियों कब्ज़ा है तो शोध कहाँ से हो, तरीके कहाँ से खोजे जाएँ. तो हल सिर्फ एक ऐसी व्यवस्था ही हो सकती है जिसके केंद्र में इंसान, जंगल, जानवर हो न कि मुनाफा.

Exit mobile version