ये कहानी एक उसूलों पर चलने वाली लड़की रिया की है. जिसकी पूरी ज़िन्दगी ही एक संघर्ष बन गयी और कुछ बच गया तो वो है इज़्ज़त।
रिया एक मिडिल क्लास में जन्मी लड़की थी. जहाँ 20 किलो सब्ज़ी मोलभाव करके लिए जाता था. फ्री में धनिया मिर्ची ले आए तो वो माउंट एवेरेस्ट चढ़ना जैसा था. जहाँ रसगुल्ले से अधिक खुशी रसगुल्ले वाले डब्बे से होती है जिसमे सब्जी सिमट कर रह जाती है.
कान्वेंट स्कूल से पढ़ाई की जिसमे कई बार माता-पिता को अपनी भूख मारनी पड़ी. आँखों में हायर स्टडी का सपना देखा तो माँ-बाप ने सोचा कुछ दिन और ही कष्ट सही लेकिन बेटी को उड़ान भरनी है. पढ़ाई पूरी हुई और रिया का पढ़ने का सपना भी. अब बारी थे माँ-बाप के कष्ट को दूर करने की. अभी तक के सफर में रिया की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आये लेकिन रिया के उसूल किसी भी भवर में नहीं घिरा। घिरता भी कैसे पिता ने सीख जो दी थी, उसूल ही इज़्ज़त है.
रिया उड़ान भरने के लिए नौकरी करने लगी. ये सफर उसके ज़िंदगी का सबसे कठिन सफर था. जिनके ऊपर आशीर्वाद रहा वो ऊपर गए और जो अकेले थे वो अकेले ही रह गए. मक्खन लगा कर कुछ लोगों ने अपनी ज़िन्दगी मक्खन के रोटी के साथ खाई और बाकि जली हुई रोटी के साथ। कुछ लोगों को आगे बढ़ने के लिए सीढियाँ भी दे दी गयी और कुछ लोग ज़मीन पर ही रह गए. रिया इनमें से एक थी जो पीछे रह गयी.
रिया टूट चुकी थी सोचा अब यहाँ कुछ नहीं, घुटने टेकने का वक्त आ चूका है. लेकिन हाथ फैलाना उसने सीखा नहीं था अपने कर्म पर भरोसा था. पिता की सीख पर भरोसा था. उसूल नहीं टूटे थे रिया के क्यूंकि वो ही इज़्ज़त है.