केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित सबरीमला मंदिर पिछले काफी समय से विवादों में है। विवाद का कारण है मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवेश करने का आदेश देना। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश का आदेश दिया है। इससे पहले इस मंदिर में मासिक धर्म होने वाली स्त्रियों का प्रवेश वर्जित था। हालांकि आदेश के बाद भी स्थिति नहीं सुधरी और धर्म के नाम पर ढोंग करने वाले लोगों ने मासिक धर्म होने वाली महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया।
मंदिर में जवान स्त्रियों का प्रवेश इसलिए वर्जित है, क्योंकि खुद को धर्म का ज्ञाता मानने वालों का कहना है कि मंदिर के स्वामी भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं, इसलिए मंदिर में रजस्वला (जिन्हें पीरियड्स होते हैं) स्त्रियों को प्रवेश नहीं दिया जा सकता।
इन रूढ़िवादी लोगों से बस कुछ प्रश्न है, पहला- भगवान के दर्शन करने का रजस्वला होने से क्या नाता है? दूसरा प्रश्न- भगवान के ब्रह्मचारी होने से पीरियड्स का क्या संबंध? (ब्रह्मचारी तो मारुति नंदन हनुमान भी हैं। उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए तो मंगलवार को भक्तों की कतार लगती है। उनके दर्शन के लिए तो देश में कहीं भी रोक नहीं है।) तीसरा प्रश्न- किस पुराण में लिखा है कि ब्रह्मचारी पुरुष महिलाओं से दूर रहे, जिस आधार पर ये लोग महिलाओं को मंदिर में दर्शन करने से रोक रहे हैं। इन धर्म के ठेकेदारों से बस एक ही अपील है कि पहले जाकर ब्रह्मचर्य को ठीक से जाने।
यह बड़े ही दुख की बात है कि भारत जैसे देश में जहां स्त्री को सबसे ऊंचा और पवित्र स्थान दिया गया है, वहां की कुछ महिलाओं को अपनी महिला होने पर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। देश में जहां एक ओर मासिक धर्म को पूजा जा रहा है। वहीं दूसरी ओर मासिक धर्म की वजह से महिलाओं को पूजा करने से रोका जा रहा है।
सबरीमला विवाद का समर्थन करने वाले लोगों को असम में स्थित मां कामाख्या देवी मंदिर को नहीं भूलना चाहिए। इन समर्थकों के लिए बताते हैं मंदिर से जुड़ी कुछ बातें-
यह देश का इकलौता मंदिर है जहां मां कामाख्या की योनि की पूजा की जाती है। इस मंदिर में भक्तों को प्रसाद के तौर पर मां कामाख्या के पीरियड्स का कपड़ा दिया जाता है। यह मंदिर हर साल जून में तीन दिन के लिए बंद कर दिया जाता है, कहते हैं इस दौरान मां रजस्वला होती हैं, इसलिए मां को आराम दिया जाता है।
मंदिर को बंद करने से पहले मंदिर में बनी योनि के पास एक सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है, जो कि तीन दिन बाद लाल हो जाता है। इसे ही प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। असम में पीरियड्स को गंदगी ना मानकर पूजा जाता है। यहां जब कोई लड़की पहली बार रजस्वला होती है, तो उसके लिए जश्न का आयोजन होता है। सबरीमला के धार्मिक ज्ञाता इसे क्या मानेंगे? यह भी तो धर्म और एक देवी से जुड़ा मंदिर है, जिसे वर्षों से पूजा जा रहा है।
पौराणिक कथाओं की माने तो भगवान अयप्पा शिव के पुत्र हैं और मां कामाख्या शिव की पत्नी। इस हिसाब से मां कामाख्या भगवान अयप्पा की मां हुईं। तो जो प्राकृतिक क्रिया भगवान की मां से साथ होती है उसे वह भला क्यों गलत मानेंगे। इससे ऐसा ही प्रतीत होता है कि खुद को भगवान अयप्पा का भक्त बताने वालों को उनके जीवन से जुड़ी आम बातों की ही जानकारी नहीं है।
सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने वाले यह क्यों भूल रहे हैं कि जिस वजह को मुद्दा बनाकर वह प्रदर्शन कर रहे हैं, उसी वजह के कारण वह इस दुनिया में आए हैं। एक प्राकृतिक कारण को शुद्ध-अशुद्ध बताने वाले वह कोई नहीं होते। ऐसी दकियानूसी सोच रखने वालों को यह सोचना होगा कि भगवान लिंग के आधार पर अपना आशीर्वाद किसी को नहीं देते। वह सभी के लिए एक समान है और सभी को एक जैसा मानते हैं।
यह दुर्भाग्य की बात है कि देश में अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन भी नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में दर्शन के लिए रोकी जा रही महिलाओं को ही कदम उठाने होंगे।